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कविता

कुंडलियां … 31 नेता बनता खटमल…….

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खटमल की जूं चूसते, देश का नेता खून।
फितरत खूनी एक सी, एक ही जैसे गून।।
एक ही जैसे गून, बड़े दोनों ही निर्मम।
पीकर खून मानव का, रहते मस्त हरदम।।
खटमल ही होता नेता, उसको हम पूजते।
खुजली करते नेता, खटमल की जूं चूसते।।

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है गाली सबसे बड़ी, जो ‘नेता’ कह जाय।
दुर्व्यसनी और दुष्ट को , ये ही शब्द सुहाय।।
ये ही शब्द सुहाय, मनुजता के हैं हत्यारे।
लगी जोंक गात देश के, बने कसाई सारे।।
चिपक गात में रक्त चूसते, भर भरके प्याली।
करें कलेजा छलनी, इनके लिए है गाली।।

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झूठ और पाखंड की, लीन्ही खोल दुकान।।
वहां बैठ दुनिया ठगें, जानत इस में शान।।
जानत इस में शान , देश का कर दें सौदा।
लालच दे दे वोट खरीदें, मार झूठ का जूता।।
मतदाता हों दुखी देश के, जब बकें अंड बंड।
मंद मंद मुस्काता नेता, बोल झूठ पाखंड।।

दिनांक: 9 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य

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