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लेखक आर्य सागर खारी 🖋️
सन 1832 में लेफ्टिनेंट कर्नल जोसेफ बोडेन ने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में संस्कृत की चेयर स्थापित की जिसमें जर्मन इंडोलॉजिस्ट मैक्स मूलर को कथित तौर पर संस्कृत ग्रंथो की विशेषता वेदों के अनुवाद का काम सौंपा गया था। अंग्रेजों का उद्देश्य वैदिक संस्कृति साहित्य का ज्ञान पिपाशा की दृष्टि से अध्ययन नहीं था उनका उद्देश्य वैदिक साहित्य संस्कृति को नष्ट करना था। जिससे वे भारत में दूरगामी शासन स्थापित कर सकें। उन्हें प्रत्येक उस विचारक से नफरत थी जो संस्कृत व संस्कृत साहित्य का मुरीद था चाहे जर्मन दार्शनिक शॉपेनहार ही क्यों ना हो ।विलियम जॉन्स ,मैक्स मूलर ,मैकाले जैसे कथित संस्कृत के पंडित माने जाने वाले अंग्रेजों ने संस्कृत साहित्य की व्याख्या के नाम पर जमकर विष वमन किया। आर्य द्रविड़ का विवाद, वेद गडरिया के गीत हैं ज्ञान-विज्ञान के आदि स्रोत नहीं है ऐसी दुष्ट भ्रामक सिद्धांत स्थापित किए। इस अवसर का मैकाले ने भरपूर फायदा उठाया । अधिकांश कुलीन सुधारवादी भारतीय देव वाणी संस्कृत के अध्ययन से विमुख हो गए । अंग्रेजों ने संस्कृत को पढ़ने उसकी व्याख्या करने के लिए अपने ही आधार बनाये। इसका दुष्परिणाम यह है आज भी देश व देश के बाहर अधिकांश विश्वविद्यालयों में संस्कृत वेदों अध्ययन अध्यापन की बात आती है तो प्रमाण पाश्चात्य विचारकों के लिए जाते हैं। भारतीय ऋषि-मुनियों विद्वानों व्याख्यानो का तो वर्णन ही नहीं होता। 19वीं शताब्दी में ही आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद ने पश्चिमी विचारकों के इस बौद्धिक षड्यंत्र को भाप लिया था ।उनका मैक्स मूलर से पत्र व्यवहार हुआ था महर्षि दयानंद ने उसके संस्कृत वेद के सम्बन्ध सतही खोकले ज्ञान को भाप लिया था उस को फटकार लगाते हुए कहा था तुम संस्कृत के ज्ञान के मामले में बच्चे हो जितनी संस्कृत तुम्हे आती है उतनी संस्कृत तो भारत के गली-गली में एक बच्चा भी बता सकता है। जिस देश में कोई वृक्ष नहीं होता वहाँ अरंड को ही बड़ा मान लिया जाता है मैक्स मूलर ऐसा ही संस्कृत का पंडित है यह महर्षि दयानंद का कथन था। मैक्स मूलर के मुंह पर सबसे बड़ा यह तमाचा था । दुर्भाग्य से 19वीं शताब्दी के महर्षि दयानंद ऐसा करने वाले वे प्रथम व अंतिम भारतीय सुधारक थे ।
वैदिक साहित्य और संस्कृति पर मैकाले मैक्समूलर सरीखे शातिर पाश्चात्य कथित इंडोलॉजिस्ट ने जो हमला 19वीं शताब्दी में किया उससे भी भयंकर हमला आज 21वीं शताब्दी में भारतीय संस्कृति ,साहित्य पर हो रहा है। पहले इंडोलॉजिस्ट शब्द को समझते हैं इंडोलॉजिस्ट उस व्यक्ति को कहा जाता है जो संस्कृत भाषा साहित्य ग्रंथों पर विशेषज्ञता अर्जित करता है। इसे साउथ एशियन स्टडी भी कहा जाता है।
वैदिक संस्कृति साहित्य के विरुद्ध जो जहरीला बौद्धिक षड्यंत्र अंग्रेज कर्नल बोडेन के धन से हुआ दुर्भाग्य से आज वही षड्यंत्र भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति के व उसके परिवार के सहयोग से हो रहा है। नारायणमूर्ति की पत्नी सुधा मूर्ति उसके बेटे रोहन मूर्ति ने 52 लाख अमेरिकी डॉलर से ‘मूर्ति क्लासिकल लाइब्रेरी ऑफ़ इंडिया’ की स्थापना की है।
यह डिजिटल प्रयोजना है जिसके तहत प्राचीन भारतीय संस्कृत के ग्रंथों का अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित किया जाएगा पुस्तक के रूप में साथ ही साथ समस्त मटेरियल को सभी को डिजिटलाइज किया जाएगा फिर इस स्टडी मैटेरियल को विश्व की तमाम यूनिवर्सिटीज में प्रोवाइड कराया जाएगा करार के तहत। इस परियोजना में मूर्ति परिवार का आर्थिक उद्देश्य इसमें ज्यादा निहित है। आप सोचते होगे संस्कृत वेद, वैदिक ग्रंथों के प्रमाणित अनुवाद के लिए मूर्ति परिवार ने किसी भारतीय संस्कृत के विद्वान को अधिकृत किया है तो आपकी धारणा गलत है इस काम की कमान उन्होंने सौंपी है कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अमेरिकी मूल के इंडोलॉजिस्ट सेल्डन पोलाक को ।
यह वही पोलाक है जो पिछले 30 वर्षों से वैदिक संस्कृत साहित्य वैदिक ग्रंथों की मनमानी आपत्तिजनक व्याख्या कर रहा है। संस्कृत भाषा के संबंध में पोलाक के विचार यदि आप जानेंगे तो आप भली-भांति समझ जाएंगे। भारतीय सभ्यता और संस्कृति के संबंध में उसके विचार कभी भी सम्मानजनक नहीं रहे।
पोलाक संस्कृत को मृत भाषा मानता है उसका मानना है संस्कृत के अध्ययन के साथ-साथ अंग्रेजी का भी अध्ययन जरूरी होना चाहिए बगैर अंग्रेजी के अध्ययन के संस्कृत भाषा पर आप की पकड़ नहीं हो सकती बगैर अंग्रेजी के संस्कृत में शोध नहीं हो सकता यह उसकी हास्यास्पद मान्यता है। उसके अनुसार भारत की कोई संस्कृति थी ही नहीं, ना कोई भाषा थी।
पोलाक के अनुसार संस्कृत ज्ञान विज्ञान की भाषा कभी नहीं रही यह तो दरबारी कुलीन लोगों की भाषा थी राजा महाराज को प्रसन्न करने के लिए संस्कृत की ग्रंथों की रचना की गई। इस भाषा ने महिलाओं और दलितों का अपमान किया है।
वेद और रामायण, महाभारत, गीता के बारे में आप उसके विचार जानेंगे तो मैकाले के मानस पुत्र गदगद ही हो जाएंगे। पोलाक के अनुसार वेद, बुद्ध के बाद की रचना है। रामायण का लेखन बुद्ध के बाद हुआ रामायण महाभारत कोई इतिहास नहीं है यह तो मनोरंजन के लिखे गये काल्पनिक काव्य है ।इनमें दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न से अधिक कोई आदर्श बात नही है। इनका अध्यात्म में कुछ भी लेना देना नहीं है।
सेल्डन पोलाक के अनुसार वेद निरर्थक हैं बाकी जितने भी शास्त्र है इनमे अपना कुछ नहीं है सब वेद से दबे हुए हैं ।यह राजाओं के प्रभाव को स्थापित करने के लिए जनता को दबाने के लिए उनके शोषण करने के लिए ब्राह्मणों द्वारा लिखे गए हैं ।रामायण को वह एक उदाहरण बताते हैं ।रामायण कोई इतिहास नहीं है। राम नाम का कोई व्यक्ति नहीं हुआ। रामायण केवल राजनीतिक महत्वाकांक्षा के लिए लिखा गया एक ग्रंथ है। उसके अनुसार पूरे संस्कृत साहित्य में ऐसा कुछ नहीं है जिसमें मनुष्य की स्वतंत्रता बौद्धिकता समानता की बात दिखाई पड़ती हो। हिंदुओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का अभाव रहा है। वेद शास्त्र संस्कृत साहित्य दलित विरोधी महिला विरोधी अल्पसंख्यक विरोधी है। पोलाक का मानना है रामायण के माध्यम से शासकों ने प्रजा के मन मंदिर में मुस्लिम विरोधी भावना को भड़काने का कार्य किया है। मुस्लिम काल के पश्चात रामायण काल आता है रामायण के माध्यम से मुसलमानों के प्रति शत्रुता का भाव भरने का प्रयास किया गया है।
अब आप समझ गए होंगे शेल्डन पोलाक कितना बड़ा धूर्त है और इस देश का आईटी क्षेत्र में सबसे धनी घराना नारायणमूर्ति परिवार कैसे राष्ट्र संस्कृति के साथ द्रोह कर रहा है ।एक ऐसे वामपंथी वैदिक संस्कृति साहित्य हिंदू विरोधी व्यक्ति को उन्होंने अपनी डिजिटल लाइब्रेरी परियोजना का चीफ फाउंडर एडिटर बनाया है ।जिसे सालाना यह परिवार करोड़ों रुपए का वेतन तमाम आधुनिकतम सुख सुविधाएं दे रहा है उसके ज्ञान पर गदगद हो रहा है। अनेकों राष्ट्रवादी विचारक मूर्ति परिवार को आगाह कर चुके हैं पोलाक के खतरनाक मंसूबों को लेकिन मूर्ति परिवार है की मानने को तैयार नहीं है। शेल्डन पोलाक को सम्पादक मंडल से नहीं हटाया जा रहा है। पोलाक की सुख सुविधाओं में बढ़ोतरी और कर दी गई है।
यह 21वी सदी का सबसे बड़ा बौद्धिक हमला है वैदिक साहित्य संस्कृति पर। आप कल्पना कीजिए आने वाली पीढ़ी पुस्तकों से कम अध्ययन करेगी आज भी डिजिटल माध्यम से अध्ययन अध्यापन चल रहा है। चैट जीपीटी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले वर्षों में अधिक स्थापित हो जाएगा स्कूली शिक्षा व अकादमिक जगत में। हमारे बच्चे युवा प्रोढ अध्येता जब डिजिटल प्लेटफॉर्म पर वैदिक संस्कृति से जुड़ा हुआ कोई कंटेंट पढेगे वैदिक साहित्य पर शोध की ओर उन्मुख होंगे तो वह ऋषि-मुनियों वैदिक विचारको के मौलिक प्रमाणित साहित्य को नहीं शेल्डन पोलाक जैसे धूर्त के अनुवाद को अधिक प्राथमिकता देंगे। जैसे आज हम गूगल विकिपीडिया को प्राथमिकता देने लगते हैं जबकि वहां केवल इंफॉर्मेशन मात्र होती है उसकी प्रमाणिकता प्रमाण से अपेक्षित रहती है।
19वीं शताब्दी में संस्कृत के नाश के लिए जो कार्य मैकाले ने किया । वेद संस्कृत के ज्ञान के प्रचार प्रसार के लिए संस्कृत के ज्ञान के प्रचार-प्रसार के लिए गुरुकुल, पाठशाला, मंदिर ,गुरु -परंपरा इन सब प्रयासों को उसने चुन चुन कर दंडित किया नष्ट किया ।अंग्रेजी शासन विचार सरकार को स्वीकृत कराकर पठन-पाठन की परंपरा को ध्वस्त किया।
वही दुष्टता का कार्य शेल्डन पोलाक आज कर रहा है।
यह वही पोलाक है जिसने जेएनयू के टुकड़े-टुकड़े गैंग की मांग का समर्थन किया था कश्मीर के मुद्दे पर। 2005 -06 में गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के अमेरिकी दौरे का विरोध किया था वहां हस्ताक्षर अभियान चलाया था।
इस धूर्त के खतरनाक मंसूबों को भापने वाले प्रथम विचारक आर्य समाज के स्कॉलर आर्य समाज के संस्थापक महर्षि दयानंद की उत्तराधिकारी परोपकारिणी सभा अजमेर के यशस्वी मंत्री वैदिक विचारक पत्रकार लेखक स्वर्गीय डॉक्टर धर्मवीर थे उन्होंने अपने साप्ताहिक परोपकारिणी पत्र के अनेक अंक में इसकी धुर्तता वैदिक संस्कृति ,संस्कृत भाषा पर इसके द्वारा लगाए गए निराधार मूर्खतापूर्ण आक्षेपों का अपनी लेखनी से प्रमाण संयुक्त विचारोत्तेजक खंडन किया था। 72 वर्षीय हिंदू विचारक लेखक टेक्नोक्रेट राजीव मल्होत्रा ने भी अपनी पुस्तक बैटल फॉर संस्कृत में शेल्डन पोलाक को एक्सपोज किया है ।हम इन दोनो स्वदेश संस्कृति अभिमानी विद्वानों के ऋणि है लेकिन अब समय आ गया है इस धूर्त की विरूद्ध अभियान चलाया जाए । ओवरसीज में रहने वाले एनआरआई व भारतीय बुद्धिजीवियों को एकजुट हो जाना चाहिए ।आर्य समाज के उपदेशक प्रचारको को भी इस पर अपने मचं से हमला करना चाहिए। इसके षड्यंत्र को बेनकाब करना चाहिए। नारायणमूर्ति परिवार की भी नैतिक जिम्मेदारी जवाबदेही सुनिश्चित होनी चाहिए यह तब होगा जब जनशक्ति इस कार्य में लगे। मैकाले, मैक्स मूलर के द्वारा बोये गये रक्तबीजो से पनपे विभाजक षड्यंत्रकारी कटीले वृक्षों को यह देश अभी काट नहीं पाया है ।बढ़ती स्वर्ण दलित पिछड़े के बीच की खाई , हिंदी बनाम तमिल की लड़ाई ,जातिवाद, संप्रदायवाद अलग से ।आर्य द्रविड़ वाद का तो कहना ही क्या?
भारत के असंख्य ऋषि-मुनियों द्वारा अनुमोदित प्रचारित स्थापित एक देश, एक भाषा, एक भोजन, एक संस्कृति एक आचार की जो श्रेष्ठ भावना थी परियोजना थी उसे पुनः स्थापित करने में सबसे बड़ी बाधा 19 वी सदी का अंग्रेजों द्वारा उत्पन्न षड्यंत्र समुह आज भी बना हुआ है। ऐसे में 21वीं सदी का यह नया डिजिटल विदेशी षड्यंत्र है। प्रत्येक परंपरावादी भारतीय स्वदेश संस्कृति स्वभाषाभिमानी को इस विषय में जागरूक होना होगा।
आर्य सागर खारी✍