वर्तमान में केंद्र सरकार समान नागरिक संहिता को भारत में नागरिकों के लिए एक समान कानून बनाने और उसी के अनुरूप उसे लागू करने के एक प्रस्ताव के रूप में ला रही है।
केंद्र सरकार ने इस संबंध में देश के जागरूक नागरिकों से, संगठनों से और राजनीतिक दलों से विचार मांगे हैं। जिससे एक ऐसी संहिता को लागू किया जा सके जिसमें सभी वर्गों की सर्व स्वीकृति प्राप्त हो जाए। ऐसे में अपेक्षा है कि सभी जागरूक नागरिक सामाजिक संगठन और राजनीतिक दल राष्ट्रहित में अपने अपने विचार सरकार को दें । परंतु ऐसा न करके राजनीतिक दलों के सेकुलर नेता केंद्र सरकार को कोसने के लिए खड़े हो गए हैं। लगता है विचारों को देने के नाम पर इनका दीवाला निकल चुका है। उनका कहना है कि केंद्र की मोदी सरकार 2024 के चुनावों को दृष्टिगत रखते हुए समान नागरिक संहिता लागू करना चाहती है। जिससे वह इसका राजनीतिक लाभ उठा सके ।
अब इन राजनीतिक दलों को कौन समझाए कि किसी भी प्रकार के राजनीतिक लाभ को उठाने से उन्हें किसने रोका है? यदि भाजपा समान नागरिक संहिता लागू करके राजनीतिक लाभ लेना चाहती है तो उन्हें भी कुछ ऐसा करना चाहिए कि भाजपा का मतदाता उनकी ओर आकर्षित हो। ऐसा तभी संभव है जब खींची गई लकीर के सामने बड़ी लकीर खींच दी जाए।
भाजपा का मतदाता राष्ट्रीय मुद्दों पर हो रही राजनीति को भली प्रकार समझ चुका है। सेकुलरिस्ट नेताओं ने किस प्रकार मुस्लिम तुष्टीकरण के नाम पर देश का अहित किया है ? – इसे भी देश का अधिकांश मतदाता समझ चुका है।
देश के सभी राजनीतिक दलों को यह समझना चाहिए कि वर्तमान समय में समान नागरिक संहिता भाजपा या भाजपा की राजनीति की आवश्यकता नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की आवश्यकता है। इस समय विपक्ष हर बार की भांति समान नागरिक संहिता को भी भाजपा या भाजपा की राजनीति की आवश्यकता मान रहा है और उसे राष्ट्र की आवश्यकता के रूप में ना देखने की भूल कर रहा है। ऐसे में सारा सेकुलर विपक्ष वैचारिक दिवालियेपन के दौर से गुजर रहा है। देश का हर जागरूक नागरिक यह मानता है कि इस मुद्दे पर राष्ट्रीय दृष्टिकोण रखते हुए सोचना ही उचित होगा। पर देश का विपक्ष ऐसा न करके अपनी ऊर्जा को नकारात्मक राजनीति के माध्यम से खर्च कर रहा है।
इस समय समान नागरिक संहिता भारत में नागरिकों पर उनके धर्म, लिंग और यौन अभिरुचि की चिन्ता किए बिना समान रूप से लागू होगा। जिन संप्रदायों के व्यक्तिगत ग्रंथों के आधार पर देश में उनके अपने कानून चल रहे हैं वे सब के सब समाप्त किए जाने समय की आवश्यकता है। भाजपा ने अपने जन्म काल से ही समान नागरिक संहिता को अपने चुनावी घोषणा पत्र में स्थान दिया है। 1999 से तो यह पार्टी निरंतर समान नागरिक संहिता लागू करने का वचन देश के मतदाताओं को देती आ रही है। यदि 2014 में देश के लोगों ने वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों में देश की कमान दी थी तो यह सोच कर ही दी थी कि उनके माध्यम से ही भाजपा समान नागरिक संहिता लाने का काम करेगी। भाजपा ने समान नागरिक संहिता के साथ-साथ राम मंदिर निर्माण और धारा 370 को हटाने जैसे मुद्दों को भी अपने चुनावी घोषणा पत्र में निरंतर स्थान दिया है। आज जब भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार संविधान की आपत्तिजनक धारा 370 को जम्मू कश्मीर से हटा चुकी है और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पूर्ण होने की स्थिति में आ चुका है , तब लोगों के सामने अपने आप ही यह प्रश्न भी आकर खड़ा हो जाता है कि भाजपा समान नागरिक संहिता को कब समाप्त करेगी ? निश्चित रूप से भाजपा धारा 370 को हटाने की भांति समान नागरिक संहिता को लागू करने के वचन के साथ सत्ता में बैठी है। उसे अपने वचन का पालन करते हुए समान नागरिक संहिता लागू करनी चाहिए।
आर्य समाज एक ऐसा गैर राजनीतिक जागरूक संगठन है जो देश की समस्याओं पर बहुत गहरी नजर रखने का आदी रहा है। क्योंकि राष्ट्र और राष्ट्रीय समस्याएं इसके राष्ट्रीय दृष्टिकोण में सदैव जीवंत बनी रहती हैं। इस संगठन को इस समय भी जागरूक होने की आवश्यकता है । पूरा देश यह जानता है कि इस संगठन के कोई राजनीतिक पूर्वाग्रह नहीं हैं। सबसे स्वस्थ सोच बनाकर राष्ट्र के बारे में सोचने की शैली केवल आर्य समाज के पास है। अब इस संगठन को विपक्ष के साथ साथ सत्ता पक्ष को भी अपना चिंतन प्रस्तुत करना चाहिए।
ध्यान रखने की आवश्यकता है कि चूक भाजपा से भी हो सकती है। इसलिए आर्य समाज को अपनी ओर से प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के लिए विशेष प्रकार का संबोधन पत्र तैयार करना चाहिए। सरकार को इस बात के प्रति जागरूक करना होगा कि आज भी देश के हजारों मंदिरों से अप्रत्यक्ष रूप में मुगलिया शासनकाल का जजिया कर लिया जा रहा है और उसे दूसरे संप्रदायों के ऊपर खर्च किया जाता है। अब यह बात सुनिश्चित करने का समय आ गया है कि देश के मंदिरों से लिया जाने वाला धन वेद और वैदिक संस्कृति के प्रचार-प्रसार पर, गुरुकुलों की स्थापना पर, संस्कृत की उन्नति पर और राष्ट्रभाषा हिंदी के विकास पर खर्च करते हुए राष्ट्रीय चरित्र निर्माण पर खर्च किया जाना चाहिए। देश के आयकरदाताओं का धन मुफ्त की रेवड़ी बांटने पर नहीं बल्कि जन कल्याण पर खर्च किया जाना आवश्यक है। समान नागरिक संहिता के माध्यम से यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि देश के मंदिरों से लिया जाने वाला धन युवा चरित्र निर्माण पर खर्च होगा।
भारत वेद और वेदों को मानने वाले लोगों का देश है। स्वामी दयानंद जी महाराज ने आर्यावर्त आर्यों के लिए इसलिए कहा था कि आर्य लोग ही वेद और वैदिक संस्कृति की बात कर सकते हैं। वेद और वैदिक संस्कृति के माध्यम से ही भारत विश्व गुरु बन सकता है और संसार में स्थायी शांति का निवास हो सकता है। इस बात के दृष्टिगत आज जोरदार ढंग से यह आवाज उठनी चाहिए कि देश की वैदिक संस्कृति को वैश्विक संस्कृति के रूप में स्थापित करने पर सरकार बल देगी और देश के मंदिरों से आने वाली धनराशि को वह वेद और वैदिक संस्कृति के उन मानवीय मूल्यों के प्रचार-प्रसार पर खर्च करेगी जिनसे भारत विश्व गुरु बन सकता है और संसार में स्थाई शांति आ सकती है।
देश के लोग धार्मिक श्रद्धा के वशीभूत होकर लोक कल्याण के लिए मंदिरों में जाकर दान देते हैं। यदि उनकी भावनाओं का ध्यान रखा जाए या उनसे पूछा जाए कि आपके द्वारा दिए गए दान को किन मदों पर खर्च किया जाए तो निश्चित रूप से उनकी आवाज यही होगी कि भारत की ऋषि परंपरा की ज्ञान प्रणाली को जीवंत बनाए रखने के लोक कल्याणकारी कार्यों पर इसे खर्च किया जाना अपेक्षित है।
देश की इस आम सहमति की आवाज बनकर आज अपने आप को प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। यह आम सहमति ही इस समय देश की सामान्य इच्छा है। सरकार को देश की इस आम सहमति और सामान्य इच्छा की पवित्र भावना का ध्यान रखना चाहिए। यहां पर यह बात भी उल्लेखनीय है कि चर्च या मस्जिदों या अन्य धार्मिक स्थलों से आने वाले धन को भी लोक कल्याण के लिए ही खर्च किया जाना चाहिए। हिंदुओं पर जारी जजिया कर को समान नागरिक संहिता के माध्यम से समाप्त करने का समय आ गया है।
डॉ राकेश कुमार आर्य
(लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं। )
मुख्य संपादक, उगता भारत