Dr DK Garg
इस कथन के दो अर्थ निकालते है-एक भौतिक
दूसरा आध्यात्मिक
पहला अर्थ तो हिमालय के राजा शिव के विषय में है जो कि शरीरधारी थे और हिम पर्वत पर रहते थे । आपने देखा होगा कि हिमालय के निवासी सवारी और अन्य कृषि कार्यों के लिए याक (बैल) का उपयोग करते है जिसका आकार और उपयोग गौ, बैल की तरह ही किया जाता है। पहाड़ पर याक को गौ की तरह की पूज्य मानते है। याक का दूध पीते हैं। याक पशु का बैल की तरह ही उपयोग किया जाता रहा है। ये केवल बर्फीले पहाड़ों पर ही जीवित रह सकता है ,समतल भूमि और गर्म तापमान में नही। इसके विपरीत भूमि पर पाया जाने वाला बैल हिमालय पर जीवित नहीं रह सकता। इससे स्पष्ट है कि महाराजा शिव याक यानी पहाड़ी बैल की सवारी करते होगे ।
और दूसरा अर्थ आध्यात्मिक रूप में ईश्वर शिव के लिए। यदि ये कहे की भगवान वास्तव में बैल की सवारी करता है ,तो मूर्खता हैं क्योंकि ईश्वर आकार कल्पना से परे हैं,वह एक निराकर ,सर्वशक्तिशाली सत्ता है। जो पृथ्वी ,समुंद्र और आकाश में सूर्य तथा इससे भी दूर अनेकों सौरमंडल का स्वामी है। जिसकी कृपा से विमान ,रेल,समुंद्र जहाज, चंद्रयान आदि का निर्माण संभव हुआ है ।
इस विषय को संक्षेप में और ध्यान से समझे। तीन अनादि सत्ताये है जो कभी समाप्त नहीं होती -ईश्वर, जीव और प्रकृति।
ईश्वर ने मनुष्य जीव को कर्म करने के लिए बनाया है जिसको यजुर्वेद में
` कृतो ‘कहा गया है और बाकी जीव जैसे पशु , पक्षी , जलचर आदि को भोग योनि का नाम दिया है जो अपने कर्मो का फल भोगते है। इसी क्रम में ईश्वर ने मनुष्य को ये छूट दी है की वह इनका सदुपयोग भी कर सकता है ताकि मानव सभ्यता और अधिक विकास कर सके।
दुसरे अर्थो में समस्त जीवों में केवल मनुष्य जाति ही ईश्वर की कल्पना और स्तुती करके उसके समीप जा सकता है ,इसीलिए ईश्वर प्रार्थना को उपासना कहा जाता है। मनुष्य ईश्वरीय गुणों को धारण करने की भीं सीमित छमता रखता है ,इसलिए ऐसे ज्ञानवान मनुष्य स्वयं को ईश्वर की संतान,बंधू ,सखा आदि कहलाने का अधिकार रखता है। और ऐसे कल्याणकारी मनुष्य को शिव की भी उपमा दी गयी है और इस आलोक में ईश्वर की महाशिव की उपमा से सम्बोधित किया गया है।
उपरोक्त के आलोक से स्पष्ट है की मनुष्य इन पशु आदि पर अपना अधिकार रखता है और इनका उपयोग करता है ।पशुओं में गौ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है जिसका दूध,मूत्र और गोबर मानव कल्याण के लिए है ।और नर पशु में बैल मनुष्य के कार्यों में सहायता के लिए अत्यंत उपयोगी होता है ।बैलगाय की तुलना में बैल अधिक मांसल वाले होते हैं, उनकी हड्डियाँ मोटी होती हैं, पैर बड़े होते हैं, गर्दन बहुत मांसल होती है ।जो शरीर श्रम द्वारा मनुष्य की खेती,सवारी आदि में मदद करते है।
मनुष्य को परमात्मा ने बुद्धि दी है तो इसका उसे सदुपयोग करना है। यदि वह इसका सदुपयोग नहीं करेगा तो निश्चय ही इससे यह सब इन्द्रियां, करण व यन्त्र आदि छीन लिये जायेंगे। पशु व पक्षी आदि योनियों को देखकर परमात्मा के इस न्याय की पुष्टि होती है।
अरस्तू ने मनुष्य को प्रकृति के अस्तित्व के पैमाने में सबसे ऊपर रखा। उन्होंने कहा, क्योंकि जानवरों में तर्क की कमी होती है, वे स्वाभाविक रूप से मानव उपयोग के उपकरण हैं।
उपरोक्त के आलोक में बैल की उपयोगिता से स्पष्ट है मनुष्य को बैल के पालन और इनके सदुपयोग की सलाह दी गई है । और इस तथ्य को संक्षेप में समझने के लिए शिव की सवारी बैल यानि पशु की उपमा दी गयी है।
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