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कविता

कुंडलियां … 29 , संसार के माया जाल में…..

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सुख देते संसार के, विषय भोग कछु नाय।
जिसको सुख हम मानते, वह कहां से आय ?
वह कहां से आय , करते रहे हम माथापच्ची।
जिन बातों में सुख बतलाया, हुई नहीं सच्ची।।
जितने भोग्य पदारथ हैं, हमें सारे ही दुख देते।
व्यर्थ जीवन बिता दिया, विषय हमें सुख देते।।

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संसार के माया जाल में, फंसा हंस अनमोल।
जीवन बीता व्यर्थ में, पंख सका न तोल।।
पंख सका न तोल , गुड़ में लिपट गई मक्खी।
दशा देख खुद अपनी, रह गई हक्की बक्की।।
जानै मायाजाल को तोड़ा, हो गया भव से पार।
जो भी इस में अटक गया, उजड़ गया संसार।।

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करता छोटे काम तू, चाहे बड़ा परिणाम।
ऐसा तो संभव नहीं, कहत वेद भगवान।।
कहत वेद भगवान , काम करने हैं सुंदर।
काम करोगे बेहतर, फल भी होगा बेहतर।।
कर्म भोग के चक्र में, क्यों व्यर्थ में पड़ता ?
अमृत पुत्र होकर भी, बात जहर की करता।।

दिनांक : 9 जुलाई 2023

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