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डॉ डी के गर्ग
इस विषय में अनेको पौराणिक कथाये सुनने को मिलती है इसलिए कुछ ही कथाओ को हम यहाँ लिख रहे है :
एक पौराणिक कथा के अनुसार गंगा शिव की जटाओ से निकली है। इन कथाओ के अनुसार गंगा नदी के तेज जल प्रवाह की वजह से उनका धरती पर सीधे ही आना संभव नहीं था, इसलिए भागीरथ ने शिव जी से प्रार्थना की कि उनके प्रवाह को कम करके धरती पर उतारें।
उस समय शिव जी ने गंगा नदी को अपनी जटाओं में प्रवेश कराया और काफी समय तक वो वहीं विराजमान हुईं। ऐसा भी कहा जाता है कि यदि भगवान शिव नदी को अपनी जटाओं में न समेटते तो वो अपने तीव्र प्रवाह की वजह से धरती को चीरकर पाताल लोक पहुंच जातीं।
एक अन्य मान्यता है कि गंगा अपनी शक्तियों की वजह से अत्यंत घमंडी थीं। इसी वजह से जब भागीरथ ने भगवान शिव से गंगा के प्रवाह को कम करने की प्रार्थना की तब उन्होंने अपने केशों की जटाएं खोलीं और उनमें गंगा समेटा, जिससे गंगा का घमंड चूर हो सके। जब गंगा को अपनी गलती का एहसास हुआ तब उसने क्षमा प्रार्थना की, तो शिव जी ने उन्हें अपने सिर से बहने दिया।
भगीरथ की कठोर तपस्या से मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं। उनकी तेज धारा के कारण देव लोक से सीधे धरती पर उनका आना संभव नहीं था। इसलिए भगवान शिव ने उन्हें धरती पर अवतरित कराने के लिए अपनी जटाओं में उतारा और लंबे समय तक जटाओं में ही गंगा घूमती रही। मान्यता है कि धरती को बचाने के लिए शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं में धारण किया।
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार गंगा नदी की उत्पत्ति उस समय हुई जब भगवान विष्णु ने वामन के रूप में अपने अवतार में ब्रह्मांड को पार करने के लिए दो कदम उठाए। उस समय दूसरे चरण में विष्णु के बड़े पैर के अंगूठे ने गलती से ब्रह्मांड की दीवार में एक छेद बना दिया और इसके माध्यम से गंगा नदी का पानी गिरा दिया।
विश्लेषण : इस विषय में कोई भी कथा प्रामाणिक नहीं है ,सभी में पूरी तुक्केबाजी की गयी है। और सच क्या है कोई नहीं समझना चाहता है ।
अगर हम भौगोलिक रचना की बात करें तो गंगा नदी का उद्गम हिमालय में स्थित गंगोत्री के ऊपर गोमुख स्थान से हुआ है।
ये स्थान भूतल से काफी उचाई पर है ,चारो तरफ बर्फीले पहाड़ है ,जिन पर बर्फ की चादर बिछी हुई दूर दूर तक दिखाई देती है। जो धुप मिलने पर दिन में पिघलती रहती है। ये छोटी छोटी जलधाराएं कही झरने के रूप में तो कही जलधारा के रूप में नीचे की तरफ बहती हुई दिखाई देती है। और आगे चलकर ये कई जगह आपस में मिलकर विशाल नदी का रूप भी लेती है। इसी क्रम में अऊर नीचे आने तक विशाल नदी का स्वररूप सामने आता है जिसको गंगा नदी का नाम दिया गया है।
यदि इस पानी को बहने से रोक लिया जाये तो पहाड़ो पर बाढ़ आ जाती है और कई बार ग्राम भी पानी में बाह गए है। इस समस्या का समाधान राजा भागीरथी ने निकाला था उन्होंने परिश्रम करके पानी के रुकाव को खत्म करके उसके बहाव को सुगन बनाया।
इसीलिए ये कहावत प्रसिद्ध है की भागीरथ की कठोर तपस्या के परिणामस्वरूप मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं।
बाल (जटाए)क्या है ? प्रत्येक बाल की यात्रा त्वचा की सतह के नीचे से शुरू होती है। हमारे बालों के रोमकूपों के अंदर मौजूद कोशिकाएं विभाजित होकर बढ़ती रहती हैं, जिससे पुरानी कोशिकाएं एक हेयर शाफ्ट का निर्माण करती हैं। टेलोजन चरण में प्रवेश करने और अंत में गिरने से पहले ये बाल एक निश्चित अवधि तक उगते हैं, जिसे एनाजेन चरण कहा जाता है। एनाजेन चरण की लंबाई बालों के प्रकार के आधार पर भिन्न होती है। यही कारण है कि हमारे पैरों के बालों की तुलना में हमारे सिर के बाल वर्षों तक कहीं ज्यादा लंबाई में उगते रहते हैं।बाल हमारे शरीर पर एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रखते हैं। हमारे सिर पर बालों का एक महत्वपूर्ण कार्य हमें सूर्य की तेज धूप से बेहतर सुरक्षा देना होता है। यहां तक कि हमारी भौंहें भी हमें सुरक्षा प्रदान करती हैं, जिनसे पसीना और बारिश का पानी इत्यादि हमारी आंखों से दूर रहता है। इसे प्रकृति के उपहार के रूप में देखा जाना चाहिए!
गंगा भारत में 2,071 किमी और उसके बाद बांग्लादेश में अपनी सहायक नदियों के साथ 10 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के अति विशाल उपजाऊ मैदान की रचना करती है।गंगा नदी हिमालय के गंगोत्री ग्लेशियर में शुरू होती है। ग्लेशियर 3,892 मीटर (12,769 फीट) की ऊंचाई पर स्थित है। गंगा नदी भारत और बांग्लादेश के देशों से होकर बहती है।
इसकी कुल लंबाई 2525 किलोमीटर,चौड़ाई कही कम कहीं ज्यादा है और औसत गहराई 33 मीटर है।गंगा नदी पर कुल 6 बांध और 4 बैराज बने हैं।
सारांश–उपरोक्त के आलोक में आप ईश्वर को भी समझे कि ईश्वर क्या है और उसका अस्तित्व क्या है?पूरी श्रृष्टि की रचना ईश्वर ने ही की है.
यदि आप मानते है कि गंगा का उदगम किसी शरीरधारी शिव की जटाओं से हुआ हैं तो अपना ज्ञान सही कर ले क्योकि ईश्वर निराकार है और इस प्रकार की नदिया पूरे विश्व में पहाड़ो से निकलती है। लेकिन गंगा को लेकर भारतीय कवियों और लेखकों ने बहुत ज्यादा लिखा है। किसी शरीर धारी के लिए ऐसा संभव नहीं है।और यदि ऐसा मान ले तो फिर तो गंगा के निरंतर प्रवाह बनाए रखने के लिए शिव ईश्वर तो हिमालय के ग्लेशियर पर ही हमेशा के लिए कैद हो जायेगा। ईश्वर सर्वातर्यामी है, अकेले हिमालय के बद्रीनाथ की तरफ रहने से ईश्वर पूरी सृस्टि को कैसे चलाएगा ?सच ये है कि ईश्वर का कोई शरीर नहीं होता , तो जटा होने का तो कोई सवाल ही नहीं।
आप जब भी किसी पहाड़ी क्षेत्र को देखें तो चारो तरफ पढ़ो के झुण्ड दिखाई देंगे और उनके मध्य जलधारा बहती हुई मिलेगी।ईश्वर की प्रकृति की संरचना अद्भुत और निराली है ,चारो तरफ पर्वत माला ,औषद्धि के वृक्ष ,घुमते हुए बादल ,उनके बीच सूर्य की किरणे देख ऐसा लगता है की ईश्वर के साक्षात् दर्शन हो रहे हो। सदियों से कवि और लेखक इस कला को अपने अपने तरीके से अलंकार की भाषा में बयान करते रहे है। इसी उपमा के तहत कवियों ने अपनी भावनाओं की उड़ान में यहाँ तक कह डाला की गंगा का उदगम शिव की जटाओ से हुआ है। उन्होंने यहाँ की पर्वत माला और घने व्रक्षों की श्रंखला को शिव की जटा की उपमा दी डाली।
आशा है आपको अलंकार की भाषा का तथ्य समझ आ गया होगा।
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