कुंडलियां … 28 …… महल लियौ चिनवाय

IMG-20230719-WA0021
           82

आनन्द बसे संतोष में, मानव भयौ मतिमूढ़।
धन माया को जोड़कर , वहां रहयौ है ढूंढ।।
वहां रहयौ है ढूंढ, पत्थर बुद्धि पर पड़ गए।
गिद्ध के घर मांस ढूंढते, सब मूरख अड़ गए।।
इसी को कहते बालकपन, यही होय मतिमंद।
विवेकपूर्ण बुद्धि से ही, मिलता सत्य आनंद ।।

        83

चिकने पत्थर खोजकै , महल लियौ चिनवाय।
आहें कितनों की पड़ी, तनिक भी सोचौ नाय ।।
तनिक भी सोचौ नाय , मजदूरी उनकी मारी।
मजबूरी का लिया लाभ, इच्छा कर ली पूरी ।।
आयौ एक हवा का झोंका, हो गए तितर बितर ।
ढूंढे से भी ना मिले, कहां गए चिकने पत्थर ?

          84

विद्याहीन मानव हुयौ, भूल गयौ निज रूप।
शिक्षा पाय बौरा गयौ, अपनों से हुयौ दूर।।
अपनों से हुयौ दूर, करे रिश्तों में अनबन।
सीमा तोड़े निशदिन ,मर्यादा का करे हनन।।
‘महाभारत’ होती हर घर में , लोग हुए मतिहीन।
अनुशासन खूंटी टंगा, सब हो गए विद्याहीन।।

दिनांक : 9 जुलाई 2023

Comment: