देश की नई संसद में होने वाले मानसून सत्र से पहले देश में बढ़ती राजनीतिक गर्मी
नरेन्द्र नाथ
इस बार संसद का मॉनसून सत्र सियासी तौर पर बेहद अहम माना जा रहा है। इस सत्र में विपक्ष जोर-शोर से अपनी एकजुटता की मुहिम का सियासी रिहर्सल करना चाहेगा। दूसरी ओर सत्ता पक्ष यानी सरकार विपक्षी खेमे की तमाम कोशिशों को सदन के अंदर ही परास्त कर उसके नैरेटिव को शुरू होने से पहले समाप्त कर देना चाहेगी। संसद के मॉनसून सत्र के बाद केंद्र सरकार के दूसरे टर्म में सिर्फ दो और सत्र बचेंगे। साल के आखिर में होने वाला शीतकालीन सत्र और उसके तुरंत बाद नए साल की शुरुआत में होने वाला बजट सत्र। संसद का मॉनसून सत्र 20 जुलाई से शुरू होने जा रहा है। यह 12 अगस्त तक चलेगा और इस दौरान 17 बैठकें होंगी। विपक्षी गठबंधन के लिए मॉनूसन का संसद सत्र बहुत अहम होने वाला है। इसमें कई स्तर पर विपक्ष की परीक्षा भी होगी। संसद का पिछला सत्र अडाणी मुद्दे पर पूरी तरह बाधित हो गया था। तब विपक्ष भी कई स्तरों पर बंटा-बंटा दिखा था। विरोध करने के स्वरूप को लेकर विपक्षी दलों में एकरूपता नहीं थी। सत्र के बाद ही विपक्षी एकता की नई पहल की गई और नीतीश कुमार ने एक तरह से अभियान चलाकर कांग्रेस सहित कई पार्टी नेताओं से मुलाकात की। इसके बाद विपक्षी एकता की दिशा में पहली मीटिंग पटना में हुई और दूसरी मीटिंग इन दिनों बेंगलुरु में चल रही है।
विपक्ष के लिए लिटमस टेस्ट
पहले पटना और अब बेंगलुरु में हो रही मीटिंग का असर कितना हुआ, और यह एकता मुद्दों पर टिकी रह पाएगी या नहीं, संसद का मॉनसून सत्र उसके लिए भी एक लिटमस टेस्ट की तरह होगा। वहीं सत्र के दौरान दिल्ली ऑर्डिनेंस का ऐसा मुद्दा आएगा, जिसमें विपक्षी दलों को अपनी एकजुटता दिखाने का बड़ा मौका मिलेगा। विपक्ष को उम्मीद भी होगी कि इस मुद्दे पर एनडीए सरकार को राज्यसभा में परास्त कर आम चुनाव से पहले वह एक बड़ा संदेश दे सकता है। अगर ऑर्डिनेंस के मुद्दे पर विपक्ष सरकार को हराने में सफल रहे, तो इसका बड़ा मनोवैज्ञानिक लाभ मिलेगा। इसके अलावा मणिपुर के हालात और जांच एजेंसियों की कार्रवाई के दो ऐसे मसले हैं, जिन पर संसद में जोरदार हंगामा देखने को मिल सकता है।
सत्र के दौरान यह भी देखना दिलचस्प होगा कि सदन के अंदर कांग्रेस विपक्षी दलों की अगुवा बनती है या नहीं। पिछली बार सत्र के दौरान भले ही कांग्रेस और टीएमसी विरोध में थे, लेकिन वे अपना विरोध प्रदर्शन अलग-अलग कर रहे थे। इसके अलावा विपक्ष सरकार की आर्थिक नीतियों पर इस बार बड़ा हमला कर सकता है। पिछले कुछ सत्रों से विपक्ष के अंदर दो तरह के विचार रहे हैं। एक वर्ग संसद के अंदर बहस करके सरकार को घेरना चाहता है। इस मत के पक्षधर नेताओं का मानना है कि हंगामा करने से सरकार को बहस से भागने का मौका मिल जाता है, जिससे कहीं न कहीं उसकी मंशा पूरी हो जाती है। लेकिन विपरीत राय वालों का मानना है कि अगर सरकार की शर्त पर ही बहस हो तो इसका संदेश जाता है कि विपक्ष झुक गया है और सरकार पहले से अधिक मजबूत बन कर निकली है। वहीं इस सत्र में तेलंगाना की सत्तारूढ़ पार्टी BRS पर भी नजर रहेगी। फिलहाल BRS खुद को विपक्षी एकता की मुहिम से अलग कर चुकी है। ऐसे में सत्र के दौरान उसका स्टैंड क्या रहता है, यह देखना दिलचस्प होगा। सत्र में खासकर राज्यसभा में विपक्षी दलों के सामने नई चुनौतियां भी आ सकती हैं। पिछले सत्र में सभापति जगदीप धनकड़ ने संकेत दिया कि सदन के अंदर हंगामे को अब और बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पिछले सत्र में कुछ विपक्षी सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई भी हुई। इस मुद्दे पर विपक्ष से कड़वाहट बढ़ी और दोनों पक्षों के बीच आरोप-प्रत्यारोप भी खूब हुए।
वहीं सरकार और बीजेपी को भी पता है कि संसद का मॉनसून सत्र उनके लिए अहम है। वे किसी भी सूरत में इस सत्र में अपनी पकड़ कम नहीं होने देना चाहेंगे। सरकारी पक्ष के लिए इस बार संसद के मॉनसून सत्र में सबसे बड़ी चुनौती तकरार को कम करने की होगी। संसद के पिछले कुछ सत्रों से दोनों पक्षों में कड़वाहट बढ़ी है। विपक्ष ने सरकार पर बिना विश्वास में लिए बिलों को पास कराने का आरोप लगाया। ऐसे में सरकार के लिए संवाद स्थापित करना सबसे अहम अजेंडा हो सकता है। वहीं इस सत्र में सरकार विपक्षी खेमे में सेंध लगाने की भी कोशिश कर सकती है। पहले ही एनसीपी और शिवसेना दो हिस्सों में बंट चुकी हैं, जिनमें एक खेमे का समर्थन बीजेपी के पास है। इससे सरकार को राज्यसभा में भी अपना नंबर मजबूत करने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा सरकार उन दलों के भी करीब आना चाहेगी, जो शुरू से ही तटस्थ मोड में रहे हैं।
कुनबा बढ़ाने की पहल
सरकार को इस सत्र में भी उम्मीद है कि बीजेडी, YSR जैसे दल विपक्षी अजेंडे के साथ नहीं दिखेंगे। दरअसल सत्र से ठीक पहले बीजेपी ने एनडीए का कुनबा बढ़ाने की पहल की। सूत्रों के अनुसार संसद के अंदर भी बीजेपी और सरकार की मंशा रहेगी कि इस दिशा में काम जारी रहे। हालांकि सत्र के दौरान यूनिफॉर्म सिविल कोड से जुड़े बिल के पेश होने की संभावना थी। संभावना तब और भी बढ़ी, जब लॉ कमिशन ने इस विषय पर लोगों से 14 जुलाई तक राय देने को कहा। फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस पर सार्वजनिक मंच से अपनी दो टूक राय रखी कि देश में सभी के लिए एक कानून होना चाहिए। इसके बाद माना जा रहा था कि सरकार सत्र के दौरान इससे जुड़ा बिल पेश कर सकती है। लेकिन लॉ कमिशन ने आम लोगों की राय लेने के लिए तय सीमा अब 28 जुलाई तक बढ़ा दी है। इसके बाद अब संभावना कम हो गई है कि इससे जुड़ा कोई बिल कम से कम संसद के मौजूदा सत्र में आए।
डिसक्लेमर : ऊपर व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं
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