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Dr DK Garg
भारतीय धर्मगुरू और मातांतर अध्ययन
परमहंस योगानन्द का जन्म 1893 में हुआ और मृत्यु ५९ वर्ष की अल्प आयु १९५२ में हुई। इनका जन्म का जन्म गोरखपुर ,उत्तरप्रदेश में अहीर जाति में हुआ था ,ये एक आध्यात्मिक गुरू थे। योगानन्द के पिता भगवती चरण घोष बंगाल नागपुर रेलवे में उपाध्यक्ष के समकक्ष पद पर कार्यरत थे। उनके माता पिता क्रियायोगी लाहिड़ी महाशय के शिष्य थे जिससे उन्होंने क्रिया योग सीखा तथा विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया।
योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। योगानन्द ने १९२० में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया और संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति योगी कथामृत की लाखों प्रतियां बिकीं और वह सर्वाधिक बिकने वाली आध्यात्मिक आत्मकथा रही है।
आत्मकथा में वह बताते हैं, मेरे बचपन में पिछले जन्म की घटनाओं की स्मृतियां उभर रही थीं। बहुत पहले के एक जन्म की साफ यादें मुझमें जागती थीं, जब मैं हिमालय में रहने वाला एक योगी था। इन झांकियों ने एक अज्ञात कड़ी से जुड़कर मुझे भविष्य की झलक दिखाई दी।
उनके शिष्य उन्हें ईश्वर का अवतार मानते रहे हैस वे अपने जीवन में तरक्की के लिय गुरु का चमत्कार मानते है। अब स्वामी चिदानन्दजी इन दोनों संस्थाओं के पाँचवें अध्यक्ष हैं।
विश्लेष्ण–परमहंस योगानन्द के विषय में ज्यादा जानकारी नहीं मिलती है लेकिन उपलब्ध जानकारियों के आधार पर समझना उचित रहेगा।
1 जिस समय योगानंद का जन्म हुआ तब भारत अंगेजो की जुलमी का दंश झेल रहा था और ये अवतार उस समय कुछ नहीं कर रहे थे सिवाय अपनी पूजा कराने और विदेश यात्राएं करने के। इनकी जीवनी में ऐसा कुछ नहीं मिला जिससे मालूम हो की उस समय गुरूजी ने देश भक्ति का लाख जगाया और इस अवतार ने भगत सिंह की फांसी के विरुद्ध कुछ किया हो।
कुछ बाबा स्वयं को हनुमान,गणेश ,शिव, ब्रह्मा आदि का अवतार बताते है लेकिन इनके चेले सीधे ही इनको परमपिता , सर्वव्यापी,अजन्मा ,निर्विकार ईश्वर का अवतार बताने लगे और ये भी कहते है की एक से अधिक अवतार लिया है।
२.ये ध्यान की क्रिया द्वारा ईश्वर से मिलाने का दावा करते है ,जब गुरु जी स्वयं ईश्वर का अवतार है तो किसी और ईश्वर से क्यों मिलाते हैं?
३ पिछले कई जन्म के बाते याद रहने का भी दावा किया है जो बिलकुल असत्य है ।लाखो में एक दो बच्चो को कुछ समय के लिए पिछले जन्म की धुंधली याद हो सकती है वह भी नाम मात्र की,लेकिन समय के साथ वह ये सब भूल जाते है। यदि ऐसा था तो उसका प्रमाण क्यों नहीं दिया और सत्यता की जांच क्यों नही हुई?
4.परमहंस योगानन्द की धार्मिक धर्म ग्रंथो की शिक्षा और योग्यता लगभग शुन्य थी ,अन्यथा वे किसी न किसी प्रमुख धर्मग्रंथ को प्रमुखता देते ,बजाय अपनी ढपली बजाने के।
5. ये हमारे देश का और पूरे विश्व का दुर्भाग्य है की बिना स्वाध्याय ,अभ्यास और ज्ञान के तुरंत ईश्वर से मिलाने ,साक्षात्कार कराने ,बिना सुकर्म किये मोक्ष्य दिलाने वाले बाबा पैदा होते रहते है , एक के बाद दूसरा। कुछ अंग्रेजी बोलकर तो कुछ जोकर की भाषा में संवाद द्वारा प्रसिद्द हो जाते है। उनकी भीड़ , नए नए आश्रम उनकी पूजी बनती रहती है जिसका लाभ उनकी मृत्यु के बाद परिजनों को मिलता है।
6. ये स्वयं को ईश्वर अवतार बताते है और योग द्वारा शतायु होने और मोक्ष का लालच देकर भोली जनता को बेवकूफ बनाना ठीक नहीं। ईश्वर की आयु ५९ वर्ष नहीं होती। और बाबा स्वयं अपनी आयु योग से नहीं बढ़ा सके ,इसका मुख्य कारण जो लगता है वो है की इनमे सांसारिकता और दिखावा ज्यादा , योग को ठीक से नहीं समझना ,दूसरो को योग की नसीहत देना और स्वयं कुछ नहीं करना ,अन्यथा अल्प आयु में मृत्यु नहीं होती। ये समझ ले की असत्य का प्रचार और योग के नाम पैर गुमराह करना मानवता और जन्म देने वाले ईश्वर के प्रति सबसे बड़ा अपराध है।
7.ध्यान क्या है ? ये समझ ले —
ध्यान को परिभाषित करते हुए महर्षि पतंजलि कहते हैं कि जिस स्थान पर धारणा की गई हो, उस धारणा का लम्बे समय तक बने रहना ध्यान कहलाता है ।
योगदर्शन में ध्यान को अष्टांग योग के सातवें अंग के रूप में स्वीकार किया गया है । ध्यान से पूर्व के छः अंग निम्न हैं – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार व धारणा । ध्यान हेतु इन सभी अंगों का पालन करना अनिवार्य बताया गया है । ये सभी अंग ध्यान को प्राप्त करने के लिए सीढ़ी का काम करते हैं ।
परंतु इसी कोई अष्टांग योग के पहले अंगो की बात ही ना करे और सीधे सातवे अंग ध्यान पर ले आए तो समझो की ये मूर्खता है,अज्ञानता है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
8 एक दो घंटे के प्रवचन और क्रिया द्वारा ध्यान सिखाने और ईश्वर से मिलाने वाले अनगिनत बाबा हुए है ,सभी की अपने तरह की ध्यान क्रियाएं है जो दूसरे की ध्यान क्रिया को झुटलाती है। इनमे महेश योगी,रविशंकर ,ओशो,गुरु मां और परमहंस योगानंद ज्यादा प्रसिद्ध हुए है ,अन्य हजारों गुरु सीधे ही अपनी सिफारिश द्वारा मोक्ष और भगवान से मिलवा देते है,लेकिन शर्त ये है की गुरु की चरण वंदना और दक्षिणा में कमी ना आनें पाए।इनका और इनके चेलों का पूरा ध्यान इस गुरु व्यवसाय को आगे ले जाने ,गुरु की महिमा मंडन करने ,पैसा एकत्र करने में लगा रहता है।
9 .ईश्वर और उसके विषय में वेद में पहले से बहुत ज्ञान उपलब्ध है , तंत्र, मंत्र योग आदि की कही कोई जरूरत नहीं है।झूठ और पाखंड पर कोई पंथ ज्यादा नही चल सकता ,समय के साथ सब विलुप्त होते रहते हैं।
10 किसी भी धर्म गुरु का प्रथम कर्तव्य अपने नाम से मंदिर बनवाना और चेलों को तुरंत ईश्वर से मिला देना आदि कार्य नहीं होते, बल्कि समाज को सबसे पहले ईमानदारी के रस्ते पर लाना ,धर्म के १० नियम जो मनु ने बताये है उनको उनके जीवन में उतार देना है। यदि गुरुजी का जीवन चरित्र देखोगे तो मिलेगा की इन्होंने ऐसा कुछ नही किया जिससे समाज शाकाहारी बने, छुआछूत, सतिप्रथा , जैसे कुरीतिया बीमारियां खतम हो
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