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जन्मदिवस कहे कान में जगत के धंधे छोड़।
कहां कीच में फंस रहा , दुनिया से मुंह मोड़।।
दुनिया से मुंह मोड़, यहां नहीं कुछ भी तेरा।
उड़ने पर इस डाल से, फिर होगा कहां बसेरा ?
हावी तुझ पर हो रही, स्याह रात की मावस।।
रजनी को दूर हटाना, बतलाता जन्मदिवस।।
74
निरोग मुझे नरतन मिला, सत्संगत का योग।
भूल गया मैं ईश को , हावी हो गए भोग।।
हावी हो गए भोग ,और फिर रोगों ने जकड़ा।
जन्म जन्म से झेल रहा हूं ऐसा ही मैं लफड़ा।।
बैठ प्रभु के चरणों में , अपनाना है योग मुझे।
मनोयोग से करने पर, ये कर देगा निरोग मुझे।।
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कम समय है पास में, काम का लग रहा ढेर।
ओ३म नाम भजते रहो, मिट जावें सब फेर।।
मिट जावें सब फेर, दिन भी अच्छे आते।
सत्कर्मों के फल मिलें तो दुर्दिन भी लद जाते।।
नित्य नियम से ध्यान लगा, तेरे दूर हटेंगे गम।
अमृत रस को पी ले बन्दे ,समय रहा है कम ।।
दिनांक : 8 जुलाई 2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत