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हिंदुस्तान के मुसलमानों का बड़ा तबका समर्थन करता है समान नागरिक संहिता का

रज्जाक अहमद

आज दुनिया में भारत जय -जय कार हो रही है। इसके उपरांत भी बड़े दुख के साथ कहना पड़ता है कि भारत में आये दिन ऐसी ऐसी नई चर्चाए पैदा होती है जिनका कोई आधार नहीं है। अब नया सगुफा शुरु हुआ ‘ यूनिफार्म सिविल कोड़ ‘ जिसका अभी ड्राफ्ट भी तैयार नही हुआ। यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में जैसे ही चर्चा आरंभ हुई तो मौलानाओ को लगा कि यह तो सिर्फ मुसलमानों के खिलाफ है, बस उन्हें इस्लाम खतरे में नजर आने लगा और शुरू हो गयी बयान बाजी। इसका जवाब दिया दुनिया के सबसे बड़े मुस्लिम सँगठन विश्व मुस्लिम लीग के प्रमुख व सउदी अरब के पूर्व न्याय मंत्री मोहम्मद विन अब्दुल करीम अल-ईशा ने।
11 (भारत यात्रा के दौरान )जुलाई को उन्होंने बहुत ही स्पष्ट शब्दों में दिल्ली में भारत के ज्ञान व संविधान की तारीफ की। भारतीय ज्ञान को दुनिया भर में मानवता, शांति और स्थिरता मे योगदान देने वाला बताया। उन्होंने तो यहां तक कह दिया दुनिया भारत से “शाँति” सीखे। उन्होंने अपने बयान में कहा कि भारत एक हिन्दू बहुल राष्ट्र है फिर भी इसका संविधान धर्मनिरपेक्ष है,जाति,धर्म व वर्गो को समान अधिकार देने व एकजुट रखने वाला भारतीय संविधान पवित्र है। भारत में इस्लाम ही नहीं अन्य कोई मजहब खतरे से नहीं है। शायद यह जवाब उन कटटरपंथियों के लिये काफी है जो हिंदुस्तान में बात बात पर इस्लाम को खतरे में देखने के आदी हो गए हैं और अपनी इसी फितरत के चलते मुस्लिमों को भड़काने का काम करते रहते हैं।
हम सभी जानते हैं कि हमारे देश की संविधान निर्मात्री सभा अनेक बुद्धिजिवियों व कानून के ज्ञाताओं से बनी थी। उन्होने भी संविधान पेश करते समय यह गुंजायश रखी थी कि समय के साथ व्यक्तिगत कनूनों मे बदलाव संभव है। भारत की पहली संसद (1952-1957 ) मे भी इस पर चर्चा हुयी थी,उस वक्त इसके सबसे प्रबल समर्थक पंडित जवाहर बाल नेहरू व खुद संविधान सभा के अध्यक्ष बाबा साहब अम्बेडकर थे। उस समय कुछ संकीर्ण सोच के लोगों ने (उस वक्त के सांसद) इसका विरोध किया था, जो आज भी है। तब से अब तक इस पर समय-2 पर चर्चा तो होती रही लेकिन अमल नहीं हो सका। कुछ नेता हैं जिन्हें भारत में शांति अच्छी नही लगती। उन्हें तलाश रहती है किसी भी मौके की। अब उन्हें मुद्दा मिल गया है “यूनिफार्म सिविल कोड” का। लिहाजा इसी को आधार बनाकर अब वे शोर मचाने लगे हैं।
तमाम मुस्लिम देशों के लोग भारत की धर्मनिरपेक्ष छवि से प्रभावित हैं। अरब समेत कई ऐसे मुस्लिम देश है जो भारतीय धर्म निरपेक्ष नीति की तारीफ कर रहे हैं । उनका मानना है कि भारत में शासन की नीतियों में किसी भी वर्ग के प्रति किसी प्रकार का द्वेष नहीं होता। इसके उपरांत भी देश विरोधी एजेन्डा चलाने वाले चन्द लोग भारत मे इस्लाम खतरे में बता रहे हैं । दुनिया में मुस्लिम मजहब के 72 मत (फिरके) हैं । जिनमें से सभी भारत में मौजूद हैं।
मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी खुद इनके बारे में जानकारी नहीं है। वह इनके मानने वालों के नाम तक नही बता सकते और वह सब पूर्ण आजादी के साथ अपने मत व अपने धर्म का पालन कर रहे हैं। किसी को किसी प्रकार की कोई शिकायत नही है। जो लोग यह कहते है कि भारत में इस्लाम खतरे मे है ,वह एक दम गलत हैं। दुनिया की मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा भारत में रहता है और भारत में रहने वाला मुसलमान जितना खुश है शायद दुनियां में और कही सुनने को नहीं मिलता ! भारतीय मुसलमानों का एक बड़ा तबका खास तौर पर बेटियां व महिलायें यू0सी0सी0 में बदलाव (व्यक्तिगत कानूनों के) का समर्थन करता है। जिसे जल्द लागू होना चाहिये।
धन्यवाद अल-ईशा

हिन्दुस्तान जिन्दाबाद,
भारत का संविधान जिन्दाबाद।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

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