प्रह्लाद सबनानी
यदि साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं तो तुरंत पुलिस को इसकी सूचना दी जानी चाहिए। पुलिस विभाग द्वारा विशेष रूप से साइबर ठगी के मामलों के लिए अलग से साइबर सेल एवं पुलिस थाने बनाए गए हैं, जहां केवल साइबर ठगी के मामलों के सम्बंध में ही शिकायतें दर्ज की जाती हैं।
आज दुनिया के अनेक देशों में आर्थिक व्यवहार ऑनलाइन किए जा रहे हैं। मोबाइल फोन एवं लेपटॉप पर इंटरनेट के माध्यम से प्रतिदिन करोड़ों की संख्या में इस तरह के आर्थिक व्यवहार किए जा रहे हैं। कई बार सामान्यजन इन व्यवहारों को करते समय सावधानी नहीं रख पाते हैं एवं साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं। अर्थात, उनके जमा खातों से भारी भरकम राशि साइबर ठगों द्वारा निकाल ली जाती है। हालांकि इंटरनेट के माध्यम से देश विदेश के नागरिक एक दूसरे से सफलतापूर्वक बहुत आसानी से जुड़ पाते हैं परंतु जरा-सी असावधानी बहुत भारी नुक्सान का कारण भी बन जाती है। साइबर ठग इसी असावधानी का फायदा उठाकर आम नागरिकों को नुक्सान पहुंचाने में सफल हो जाते हैं। साइबर ठगी में कुछ असामाजिक तत्व आम नागरिकों के मोबाइल फोन एवं इंटरनेट पर कुछ विशेष प्रकार के सॉफ्टवेयर का उपयोग कर आम नागरिकों के मोबाइल फोन एवं लेपटॉप से व्यक्ति विशेष के समस्त प्रकार के निजी डाटा, बैंक सम्बंधी जानकारी, आदि को चुरा लेते हैं और इस जानकारी का उपयोग कर साइबर ठगी को पूर्ण करते हैं।
साइबर ठगी इतनी सफाई से की जाती है कि कुछ लोगों को तो पता ही नहीं चलता कि उनके साथ साइबर ठगी हो चुकी है। यह सब साइबर ठगी के प्रति जागरूक न होने के चलता ही सम्भव हो पाता है। साइबर ठगी का शिकार अक्सर महिलाएं होती पाई जाती हैं। भारत की लगभग एक तिहाई महिलाएं किसी न किसी प्रकार की साइबर ठगी का शिकार हो चुकी हैं एवं इनमें से केवल 35 प्रतिशत महिलाओं ने ही इस सम्बंध में शिकायत दर्ज कराई है, जबकि लगभग 47 प्रतिशत महिलाओं ने इस सम्बंध में कोई शिकायत दर्ज ही नहीं कराई है। साथ ही, लगभग 18 प्रतिशत महिलाएं ऐसी भी हैं जिन्हें पता ही नहीं चला है कि उनके साथ साइबर ठगी हो चुकी है। यहां भी जानकारी का अभाव अधिक नजर आता है, क्योंकि आम नागरिकों को पता ही नहीं है कि उनके साथ साइबर ठगी होने के बाद उन्हें कहां एवं किस प्रकार शिकायत दर्ज कराना है। आम नागरिकों के जागरूक नहीं रहने के चलते भारत में साइबर ठगी अपने चरम पर पहुंच चुकी है।
वैश्विक स्तर पर जारी की गई एक जानकारी के अनुसार, कैलेंडर वर्ष 2022 में साइबर ठगी के कुल 800,944 मामले दर्ज किए गए थे, इसमें लगभग 42.2 करोड़ नागरिक प्रभावित हुए थे तथा इन मामलों में 6 लाख करोड़ अमेरिकी डॉलर की राशि शामिल थी। ऐसा माना जाता है कि वैश्विक स्तर पर प्रतिदिन लगभग 2,328 साइबर ठगी के मामले घटित होते हैं। वर्ष 2001 से वर्ष 2021 तक पिछले 21 वर्षों के दौरान, साइबर ठगी के मामलों में कुल 2,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। एक अन्य अनुमान के अनुसार, साइबर ठगी से साइबर ठगों को प्रति वर्ष 1.50 लाख करोड़ रुपए की कमाई होती है और प्रतिवर्ष लगभग 43 प्रतिशत साइबर ठगी के हमले छोटे व्यवसाईयों पर होते हैं।
यह सही है कि आज की भाग दौड़ भरी जिंदगी में, विशेष रूप से महानगरों में, आम नागरिकों का इंटरनेट के बगैर गुजारा करना बहुत मुश्किल है। परंतु यदि इंटरनेट का उपयोग सावधानी पूर्वक किया जाये तो साइबर ठगी से बहुत बड़ी हद्द तक बचा जा सकता है। इस संबंध में कुछ विशेष सावधानियों पर ध्यान देना आवश्यक होगा। जैसे मुफ्त में प्राप्त हो रही इंटरनेट (वाई फाई) की सेवा के उपयोग से बचा जाना चाहिए, क्योंकि कुछ ऐसे वाईफाई भी होते हैं जिनके माध्यम से मोबाइल फोन एवं लेपटॉप से डाटा को चुरा लिया जाता है, अतः केवल सुरक्षित इंटरनेट की सेवा का ही उपयोग किया जाना चाहिए। आम नागरिकों को चाहिए कि वे इंटरनेट का उपयोग करने के पूर्व अपनी समस्त एप्लिकेशन पर मजबूत पासवर्ड का इस्तेमाल करें एवं मोबाइल फोन तथा लेपटॉप पर उपयोग किए जाने वाले ऑपरेटिंग सिस्टम एवं इंटरनेट के सॉफ्टवेयर को नियमित रूप से समय समय पर अपडेट करते रहें, ताकि कोई भी हैकर सॉफ्टवेयर से निजी डाटा नहीं चुरा पाए। सोशल मीडिया खातों पर व्यक्तिगत जानकारी साझा करने में भी सावधानी बरतनी चाहिए। विशेष रूप से व्यापारी वर्ग को तो अपनी वेबसाइट को बहुत ही सुरक्षित तरीके से चलाना चाहिए एवं समय समय पर पासवर्ड को भी बदलते रहना चाहिए। किसी भी अनजान व्यक्ति से प्राप्त लिंक को क्लिक नहीं करना चाहिए, क्योंकि कई बार साइबर ठग इस प्रकार की लिंक भेजते हैं एवं इस लिंक को क्लिक कर खोलने से वे संबंधित मोबाइल एवं लैपटॉप की सारी जानकारी हैक कर लेते हैं और साइबर ठगी करने में सफल हो जाते हैं। इस पद्धति से की गई साइबर ठगी को फिशिंग कहा जाता है और आजकल अधिकतर इस प्रकार की कार्य प्रणाली से ही साइबर ठगी की जा रही है।
पूर्ण सावधानी रखने के बाद भी यदि साइबर ठगी का शिकार हो जाते हैं तो तुरंत पुलिस को इसकी सूचना दी जानी चाहिए। पुलिस विभाग द्वारा विशेष रूप से साइबर ठगी के मामलों के लिए अलग से साइबर सेल एवं पुलिस थाने बनाए गए हैं, जहां केवल साइबर ठगी के मामलों के सम्बंध में ही शिकायतें दर्ज की जाती हैं। साइबर ठगी से जुड़े मामलों की शिकायत के लिए विशेष हेल्पलाइन फोन क्रमांक भी जारी किया गया है। यदि साइबर ठगी आपके क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड के माध्यम से की जा रही है तो इस सम्बंध में अपने बैंक से भी तुरंत सम्पर्क करना चाहिए तथा अपना क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड ब्लाक करवाने की कार्यवाही करनी चाहिए ताकि क्रेडिट एवं डेबिट कार्ड के माध्यम से की जा रही साइबर ठगी को रोका जा सके। साथ ही अपने बैंक खाते को भी फ्रीज कराया जा सकता है। केंद्र सरकार ने साइबर ठगी की जानकारी साझा करने के उद्देश्य से एक अलग पोर्टल www.cybercrime.gov.in भी बनाया है। इस पोर्टल पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज की जा सकती है। साइबर ठगी से जुड़े अधिकतर मामलों में सूचना प्रौद्योगिकी कानून 2000 के अंतर्गत कार्यवाही की जाती है। इस कानून के अनुसार, साइबर ठग द्वारा की गई ठगी की श्रेणी तय की जाती है और उसके अनुसार आरोपी ठग के खिलाफ कार्यवाही की जाती है। कई मामलों में ठग के विरुद्ध धारा 43, 65, 66 और 67 के तहत केस चलते हैं। साथ ही, आईपीसी की धारा 420, 120बी और 406 के तहत भी अपराधी ठग पर मामला दर्ज किया जाता है।
साइबर ठगी के मामलों में यदि तुरंत पुलिस की सहायता ली जाये तो कई मामलों में साइबर ठगों द्वारा लूटी गई राशि की वसूली सम्भव हो जाती है। जैसे पटना के एक व्यक्ति को साइबर ठगों ने एक पोस्ट लाइक करने के नाम पर ठग लिया था। उस व्यक्ति को साइबर ठगों ने झांसा दिया कि पोस्ट लाइक करने पर कुछ राशि का भुगतान किया जाएगा और कुछ राशि का भुगतान किया भी, इस प्रकार साइबर ठगों ने उस व्यक्ति के बैंक खाते का पता कर लिया कि उसमें कितनी राशि जमा है और साइबर ठगी करते हुए उन्होंने 9.63 लाख रुपए से अधिक की राशि उस व्यक्ति के बैंक खाते से निकाल ली। पुलिस ने हेल्पलाइन क्रमांक 1930 पर जानकारी प्राप्त होते ही साइबर ठगों के खातों पर रोक लगाने में सफलता अर्जित कर ली और इस प्रकार साइबर ठगों से पूरी राशि उस व्यक्ति को वापिस करा दी। इसी प्रकार, पटना की रहने वाली एक महिला डॉक्टर ने पोलैंड में रहने वाली अपनी बहन को ‘ट्रांसफर वाइज ऐप’ के जरिए 4.8 लाख रुपए की राशि भेजी थी। परंतु यह राशि उनकी बहिन के खाते में जमा ही नहीं हुई। तब उनकी बहन ने पोलैंड से हेल्पलाइन क्रमांक 1930 पर अपनी शिकायत दर्ज कराई। साइबर पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए पूरी राशि साइबर ठगों के खातों में फ्रीज कराते हुए उस महिला डॉक्टर को वापिस करा दी। इस प्रकार की सफलता की लाखों कहानियां हैं। केवल आवश्यकता है कि साइबर ठगी के बारे में पता चलते ही तुरंत साइबर पुलिस में अपनी शिकायत दर्ज कराने की ताकि साइबर ठगों के विरुद्ध पुलिस द्वारा तुरंत कार्यवाही की जा सके। तुरंत कार्यवाही से साइबर ठगों से राशि की जब्ती सम्भव हो जाती है।
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।