संसार में जब तक आप उपयोगी हैं तभी तक आप आदरणीय हैं

संसार में जब तक आप उपयोगी हैं तभी तक आप आदरणीय हैं:-

स्वार्थ का संसार है,
बिन स्वार्थ नहीं नेह।
इसीलिए लगें,
धन,माया और देह॥2345॥

नोट- यहां माया से अभिप्राय है सांसारिक रिश्ते।

संसार उपनाम क्यों रखता है:-

आचरण के अनुरूप ही,
जग रखता उपनाम।
किसी को कहता संत-महात्मा,
कोई हो बदनाम॥2346॥

क्या है ? स्वर्ग का हाईवे:-

भक्ति-पथ आसान नही,
दो धारी तलवार।
ये तो श्रेय – मार्ग है।
भव से तारे पार॥2347॥

दु:ख – सुख के संदर्भ में:-

द्वन्दों का संसार है,
जीना इनके साथ।
कहीं रवि की रोशनी,
कहीं अंधेरी रात॥2348॥

बुद्धि के कौन से तीन गुण प्रमुख है:-

श्रद्धा युक्ति सात्विक,
बुद्धि के गुण तीन।
श्रद्धा में शक्ति बड़ी,
करे हरि में लीन॥2349॥

मूल की भूल कितनी घातक होती है:-

जह़रीली बोली हंसी,
दोनों ना माकूल।
महाभारत करवा गई,
यही मूल की भूल॥2350॥

सूक्ति :-

पत्थर जो टूट गया,
वह कंकर बन गया।
मगर जो पत्थर चोट को सह गया,
वह शंकर बन गया।

मां की महिमा :-

चेतन देवता मां सविता,
ईश्वर का प्रतिरूप।
मां की कोख से जन्मे हैं,
ऋषि – मुनि और भूप॥2351॥

चिंतन कैसा हो ?

i) चिंतन पावन हो सदा,
मत भूलै करतार।
एक दिन ऐसा आएगा,
सौवे पैर पसार॥2352॥

ii) नेकी नाम संग में चलै,
मत भटकै संसार।
ओ३म् नाम सत् नाम है,
बाकी सब असार॥2353॥

विष का अमृत कैसे बने :-

बदत्तर से बेहत्तर छिपा,
खोजी बना स्वभाव।
विष अमृत हो जाएगा,
पार लगेगी नाव॥2354॥

तत्वार्थ:- भाव यह है कि जीवन में विषम परिस्थिति हम सभी मनुष्य के सामने आती है किन्तु ऐसी स्थिति में धैर्य,विवेक,साहस का संतुलन सर्वदा बनाए रखें और प्रतिकूलता को अनुकूलता में बदलने का प्रयास निरन्तर करते रहे तो विषम परिस्थिति भी जो जहर के समान है अनुकूलता में बदल जाएगी जैसे कि मीरा और शिव का ज्वलन्त उदाहरण सर्वविदित है।
क्रमशः

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