सामरिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण लक्षदीप पर ध्यान देती मोदी सरकार

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शिवेश प्रताप

देश की आजादी के बाद से पहली बार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा हमारे द्वीप समूहों के विकास, उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने के साथ-साथ देश के सामरिक एवं रणनीतिक महत्व के लिए उचित महत्व दिया जा रहा है।

जब भारत के हिंद महासागर में प्रभुत्व की बात होती है तो न केवल अंडमान-निकोबार द्वीप समूह अपितु एक और महत्वपूर्ण द्वीप समूह भारत की रणनीतिक स्थिति को अरब सागर में मजबूत करता है इसका नाम है लक्षद्वीप। यह द्वीपसमूह भी भारत के सबसे महत्वपूर्ण सामरिक संपत्तियों में से एक है। लक्षदीप का शाब्दिक अर्थ है एक लाख द्वीपों वाला समूह। यह भारत की मुख्य भूमि से 400 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

यह द्वीप समूह 9 डिग्री चैनल तथा 11th समानांतर उत्तरी रेखा के द्वारा तीन भागों में विभाजित होता है। 9° चैनल का रणनीतिक महत्व इस प्रकार से समझा जा सकता है कि यहां से हर मिनट 12 व्यापारिक जहाज गुजरते हैं। यह वैश्विक व्यापारिक जलमार्ग की जीवन रेखा है। यह जलमार्ग अदन की खाड़ी तथा ओमान की खाड़ी को सिंगापुर, मलेशिया और ऑस्ट्रेलिया को जोड़ने वाला विशिष्ट जलमार्ग है। भारत सरकार के द्वारा एक बेहद महत्वपूर्ण निर्णय लेते हुए लक्षद्वीप के मिनीकाय द्वीप पर एक हवाई पट्टी के निर्माण का निर्णय लिया गया है। भारत के इस निर्णय से इस समुद्री क्षेत्र में चीन एवं पाकिस्तान की किसी भी गतिविधि पर त्वरित प्रत्युत्तर दिया जा सकेगा।

32 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैले हुए 36 द्वीपों के समूह में मात्र 10 द्वीप ऐसे हैं जिसमें कुल 60000 लोग निवास करते हैं। भारत के मुख्य भूमि की अपेक्षा यह लगभग नगण्य क्षेत्रफल सामरिक एवं भू राजनैतिक कारणों से बेहद महत्वपूर्ण है। लक्षद्वीप में पाए जाने वाले लागू तथा एक्सक्लूसिव आर्थिक क्षेत्र में मत्स्य व्यापार के साथ ही बेहद महत्वपूर्ण मिनरल्स के भी भंडार हैं।

मालदीव की राजनीतिक अस्थिरता तथा चीन के स्ट्रिंग आफ पर्ल्स में एक सहयोगी की भूमिका निभाने के कारण मालदीव भारत के लिए एक संभावित संकट हो सकता है। ऐसी किसी भी परिस्थिति में लक्षद्वीप का मालदीव के बेहद करीब होने का भारत को लाभ अवश्य मिलता है। अदन की खाड़ी तथा सोमालिया के कारण अरब सागर में समुद्री लुटेरों का जो संभावित संकट रहता है उस पर लक्षद्वीप के द्वारा भारत बेहतरीन नियंत्रण स्थापित कर पाता है। भविष्य में और बेहतर नियंत्रण स्थापित करने की संभावनाएं सदैव मौजूद हैं।

समुद्र के रास्ते 2008 में आतंकवादियों द्वारा घुसकर मुंबई हमले को अंजाम देने की घटना, मालदीव में बढ़ता हुआ कट्टरवाद और पाकिस्तान की घुसपैठ आदि भारत की सुरक्षा चिंताएं बढ़ाने वाली हैं। इंदिरा गांधी के शासनकाल में दक्षिणी वायु सेवा कमान का मुख्यालय त्रिवेंद्रम में स्थापित किया गया परंतु एयर बेस तमिलनाडु के सुलुर में होने के कारण अरब सागर में वायुसेना का युद्धक नियंत्रण कमजोर हो गया। भारत में देश की आजादी के बाद से ही तटीय सुरक्षा को लेकर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया गया। सरकारों के द्वारा गंभीरता से इस विषय पर मुंबई आतंकी हमले के बाद विचार करना प्रारंभ किया गया। कई खुफिया एजेंसियों के द्वारा सूचनाओं प्राप्त हुई कि पाकिस्तान का लश्कर-ए-तैयबा लक्षद्वीप के किसी निर्जन द्वीप का प्रयोग अपने बेस के तौर पर कर सकता है।

2010 में भारत सरकार द्वारा कवारत्ती एवं मिनिकॉय द्वीपों पर भारतीय तटरक्षक स्टेशन को कमिशन किया गया। 2016 में मोदी सरकार के द्वारा एंड्रॉट द्वीप पर एक नेवल अटैचमेंट भी कमिशन किया गया। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार लक्षद्वीप में एक उच्च स्टार का नवल बेस बनाने की परियोजना पर विचार कर रही है। इस नवल बेस की सहायता से भारत सरकार इस संपूर्ण क्षेत्र में निगरानी एवं नियंत्रण स्थापित कर स्मगलिंग, समुद्री लूट एवं आतंकवादी गतिविधियों पर नियंत्रण स्थापित कर सकेगी।

चीन द्वारा श्रीलंका में हम्बनटोटा पोर्ट का निर्माण तथा मालदीव के कई द्वीपों पर नियंत्रण स्थापित करने से उप संकट का निवारण लक्षद्वीप के आत्मनिर्भर नेवल बेस से संभव हो सकेगा। भारत सरकार अगाती द्वीप पर स्थित हवाई पट्टी को 1000 मीटर से बढ़ाकर 3200 मीटर किए जाने की दिशा में विचार कर रही है। इस हवाई पट्टी के माध्यम से नौसेना की बोइंग P-8I पोसायडन एयरक्राफ्ट तथा INS रजाली पर स्थित अल्बेट्रॉस स्क्वाड्रन को भी यहां स्टेशन किया जा सकेगा। द्वीप से उड़ान भरने के बाद पोसायडन विमान की पहुंच अफ्रीका तक हो जाएगी। इन द्वीपों पर विकसित होने वाली हवाई पट्टियां युद्ध की स्थिति में नौसेना को एक फॉरवर्ड पोजीशन उपलब्ध करा पाएंगी।

अरब सागर में अपने नियंत्रण को मजबूत बनाने के लिए कर्नाटक में निर्माणाधीन कारवार नेवल बेस प्रोजेक्ट के पूर्ण होते ही लक्षद्वीप का नियंत्रण यहां से होगा। कारवार नेवल बेस का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि यह सुएज कैनाल के पूर्व में स्थित सबसे बड़ा एवं सबसे महत्वपूर्ण नेवल बेस होगा। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार अंडमान की तर्ज पर लक्षद्वीप में भी बेहतर इंटरनेट कनेक्टिविटी के लिए इसे समुद्री केबल से जोड़ने की योजना पर कार्य कर रही है। वर्तमान में भारत सरकार मिनिकॉय द्वीप पर ढाई किलोमीटर लंबी हवाई पट्टी के निर्माण की परियोजना पर कार्य कर रही है। यह भारत की सामरिक शक्ति को मजबूत करने के साथ ही लक्षद्वीप में टूरिज्म की संभावनाओं को विस्तार देने के लिए बनाया जा रहा है।

देश की आजादी के बाद से पहली बार केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा हमारे द्वीप समूहों के विकास, उन्हें राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने के साथ-साथ देश के सामरिक एवं रणनीतिक महत्व के लिए उचित महत्व दिया जा रहा है। साथ ही तटीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए इन सुंदर द्वीप समूह पर जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास भी किया जा रहा है। आने वाले समय में भारतीय पर्यटकों को मालदीव, फिजी आदि देशों के पर्यटन के स्थान पर अपने ही देश में यह सुविधा मिलने लगेगी। पर्यटन से अंडमान, निकोबार एवं लक्षद्वीप के लोगों के जीवन स्तर एवं आय में व्यापक सुधार होने का पूर्ण विश्वास है।

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