ब्राम्हण महासभा ने ईद की बधाई दी व मनायी* *ब्राम्हण-मुस्लिम एकता जिंदाबाद, मुंतशिर जिंदाबाद* ==
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मैं आज अपने कमरे से प्रेस क्लब आ रहा था। बस पकडने के पूर्व मेरी नजर एक दीवार पर पड़ी। मैं दीवार को देख कर दंग रह गया। आश्चर्यचकित रह गया, यह क्या है, क्या ऐसा भी हो सकता है? दीवार पर एक पोस्टर सटी हुई थी। पोस्टर में ब्राम्हण महासभा बकरीद की बधाई दे रही है। बकरीद पर अरबों जीवों का नाश-संहार होता है।
बकरीद की बधाई देने वाला बालकिशन शर्मा है। बालकिशन शर्मा का परिचय यह है कि वह ब्राम्हण महासभा दिल्ली प्रदेश का अध्यक्ष है। जब मैंने छानबीन की तो मालूम हुआ कि उसने बकरीद पर खूब खुशियां बांटी और ब्राम्हण-मुस्लिम भाईचारे का खूब मिसाल पेश की। धर्मेन्द्र मिश्रा नाम का एक व्यक्ति ने बताया कि बालकिशन शर्मा भाजपा से विधायक और पार्षद का टिकट भी मांगता है।
दिल्ली को विधर्मियों की शरणस्थली बनाने में ब्राम्हणों और ब्राम्हणवादी संगठनों की भूमिका बहुत ही ज्यादा है। दिल्ली में कोई एक-दो साल नहीं बल्कि पूरे पन्द्रह साल शिला दीक्षित की सरकार बनवाने में ब्राम्हणों की भूमिका बहुत ही ज्यादा थी। उस काल में 99 प्रतिशत ब्राम्हण शिला दीक्षित को वोट करते थे। ब्राम्हण महासभा सभा कर शिला दीक्षित के पक्ष में प्रचार करती थी। मैंने वह दौर देखा है। शिला दीक्षित कभी खूद एक नन हुआ करती थी। उमाशंकर दीक्षित की कृपा से राजनीतिज्ञ बन गयी। शिला दीक्षित ने अपनी बेटी की शादी धूमधाम से विधर्मी से की थी। उस विधर्मी ने शिला दीक्षित का पूरा पैसा मार लिया, उसकी बेटी को छोड़ दिया। फिर उस विधर्मी ने शिला दीक्षित की भतीजी को भगा कर ले गया और निकाह कर लिया। फिर भी ब्राम्हण शिला दीक्षित को ब्राम्हण मान कर वोट देते रहे थे।
बकरीद की बधाई देने वाला पोस्ट क्या सिर्फ मैने ही देखी है? नहीं। सैकड़ों हजारों लोगों ने देखी होगी। ब्राम्हण महासभा के लोगों ने भी देखी होगी। लेकिन किसी एक ने भी इसके खिलाफ आवाज क्यों नहीं उठायी? बालकिशन शर्मा के अनुसार अगर ब्राम्हण और बकरीद वाले भाई-भाई हैं तो फिर इनमें शादियां क्यों नहीं शुरू होनी चाहिए।
बालकिशन शर्मा जैसे लोगों को जब लाभ लेना होता है तो ब्राम्हणवादी हो जायेंगे और हिन्दुत्व के ठेेकेदार हो जायेंगे। जबकि उनके अंदर में हिन्दुत्व विरोधी होने कीड़ा हमेशा काटता है। कभी ये जातिवादी ब्राम्हण मुस्लिम की पत्नी इंदिरा गांधी को भी ब्राम्हण मानते थे। उस काल में ब्राम्हण कांग्रेस के सत्ता सूत्र थे। आज भी ब्राम्हणो को राहुल गांधी भी पंडित लगता है। इंदिरा गांधी ने गौ हत्या रोकने की मांग करने वाले हजारों साधु-संतों की हत्या करायी थी, दिल्ली की सड़कें साधु-संतों के खून से लाल हो गयी थी।
अगर आप ब्राम्हणों के जातिवाद और ब्राम्हणों की यूनियनबाजी का विरोध करेंगे, आलोचना करेंगे तो फिर ये आपकों नुकसान करेंगे, आपको गालिया बकेंगे, आपको ब्राम्हण विरोधी घोषित कर देंगे। अभी-अभी मनोज मुंतशिर के प्रश्न पर अधिकतर ब्राम्हणों की बोलती बंद थी। बालकिशन शर्मा जैसे लोगों को ब्राम्हण खूद क्यों नहीं खारिज करते हैं?
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आचार्य विष्णु हरि सरस्वती
नई दिल्ली।