60
वैरी भारी क्रोध है,करता सारा नाश।
मति को करता भंग है, करता सत्यानाश।।
करता सत्यानाश, जगत में होती ख्वारी।
घटता है व्यक्तित्व ,पतन की हो तैयारी।।
क्रोध के कारण नहीं रहे, कहलाते सम्राट।
खोजे से नहीं दिखते, जिनके हमको ठाट।।
61
बुद्धि जिसकी भंग है, वही क्रोध का दास।
रावण जैसे ना रहे, मिट गए कुल आवास।।
मिट गए कुल आवास, जगत करता हांसी।
मृत शरीर को आज भी जन देते हैं फांसी।।
व्यक्तित्व साधना हेतु , क्रोध से रहना दूर।
निखरेगा व्यक्तित्व और बिखरेगा फिर नूर।।
62
मन्यु की करो साधना, मांगो निशदिन तेज।
भगवान दयालु ईश हैं, भर देंगे निज तेज।।
भर देंगे निज तेज, तेरा बेड़ा पार लगावें।
कीचड़ से संसार की, पल भर में मुक्त करावें।।
मांगो केवल ईश से, जो जगत का पालनहार।
करतार वही भरतार वही, वही है सिरजनहार।।
दिनांक : 7 जुलाई 2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत