54
धन बढ़े है दान से, यश का बने आधार।
महकता जीवन रहे , छा जाती है बहार।।
छा जाती है बहार, मन भी चंगा रहता।
हृदय मुदित रहने से प्रसन्न आत्मा रहता।।
जग के व्यापार का संतुलन सही बना रहे।
दान से जीवन का मर्यादा पथ सजा रहे।।
55
दान जगदाधार है, यही यज्ञ का रूप।
जड़ चेतन में व्याप्त है दान का स्वरूप।।
दान का स्वरूप , सब लोकों का धरता।
यज्ञ को आधार बनाके हर कोई चलता।।
शशि चांदनी देता है ,और सूरज प्रकाश ।
बादल पानी देता है,जीवन की जो आश।।
56
हर प्राणी संसार में निभा रहा निज रोल।
जिसकी सुंदर भूमिका वही बना बेमोल।।
वही बना बेमोल, ईश्वर का रूप उसी में।
राम का है रूप, कृष्ण की छवि उसी में।।
जानता जगत की हर घटना का हल वही।
प्रबल आत्मशक्ति से, हल करता है सही।।
दिनांक : 5 जुलाई 2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत