मरुस्थल में महक रहा आस्था का उद्यान

रेतीले धोरों के बीच झरता है देवी मैया का नेह

  • डॉ. दीपक आचार्य

9413306077

पश्चिमी राजस्थान का समूचा क्षेत्र दैवीय शक्तियों और दिव्य ऊर्जाओं से आप्लावित माना जाता है। समूचे क्षेत्र में शाक्त उपासना कोने-कोने में विद्यमान होने के साथ ही देवियों और लोक देवियों के प्रति श्रद्धा और आस्था का ज्वार सदियों से उमड़ता रहा है।

मरुस्थलीय क्षेत्रों में देवी की कृपा और स्नेह वृष्टि के कई प्रपात हैं जहाँ दिव्य और दैवीय ऊर्जा कण-कण में विद्यमान है। देवी के प्रमुख तीर्थ धामों के साथ ही जन-जन में देवी उपासना का जो प्रभाव देखा जाता है, वह अपने आपमें विलक्षण है।

इन्हीं में एक है जैसलमेर जिले का दूरस्थ और रेतीले टीलों के बीच बसा हुआ गांव बेरसियाला। यहाँ अवस्थित जगत जननी माँ जगदम्बा का मन्दिर जन-मन को सुकून देने के साथ ही जीवन में आने वाली समस्याओं और विभिन्न प्रकार की अड़चनों को दूर करने का माध्यम बना हुआ है। और यह सब संभव हो पाया है देवी मैया के साधक पं. श्री विनोद सारस्वत की बदौलत, जिनकी प्रेरणा से स्थापित यह मन्दिर आज दूर-दूर तक जाना जाता है। बहुत दूर-दूर से श्रद्धालु यहां आते हैं और जीवन का आनंद पाते हैं।

भारत-पाक सीमा पर सीमावर्ती जिले जैसलमेर में रेतीले धोरों के बीच अवस्थित इस गांव में बहता है श्रद्धा-भक्ति का ज्वार। यहां के जगत जननी माँ जगदम्बा का मन्दिर है, जहाँ प्राच्यविद्यामर्मज्ञ पं. श्री विनोद सारस्वत जी ने दशकों तक साधना कर देवी की कृपा पायी।

ब्रज भूमि से आकर जगायी देवी साधना की अलख

मीलों तक पसरे रेगिस्तान में रेतीले टीलों के बीच अपने परिश्रम, त्याग और तपस्या का परिचय देते हुए पं. श्री विनोद सारस्वत ने ऐसा सुकूनदायी और ऊर्जस्वित धर्म धाम स्थापित कर दिया है जो न केवल आस-पास के क्षेत्र बल्कि दूर-दूर तक श्रद्धा-भक्ति का ज्वार उमड़ाता रहा है। अन्यथा कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था कि निर्जन रेतीले समन्दर में सुकून की हरियाली का ऐसा मंजर देखने को मिल सकता है जहां आकर आत्मतोष और शाश्वत शान्ति का अहसास तन-मन को आह्लादित कर देने वाला होगा।

लोक सेवा का व्रत

देवी कृपा से प्राप्त दिव्य एवं दैवीय ऊर्जा शक्ति का उपयोग वे जन हितार्थ करने में कभी पीछे नहीं रहते। यही कारण है कि दूर-दूर से भक्तजन देवी मन्दिर के दर्शनार्थ एवं पं. श्री विनोद सारस्वत जी से जीवन और जगत के समाधान पाने के लिए आते रहते हैं।

आकर्षण जगाता है चौंसठ योगिनी यंत्र

इस मन्दिर में चौंसठ योगिनी यंत्र के साथ ही विभिन्न देवी-देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं जिनका रोजाना पूजन-अर्चन होता है। चौंसठ योगिनी का यहां स्थापित यंत्र अपने आप में विलक्षण और अन्यतम होने के साथ ही 64 योगिनियों की कृपा से साक्षात् कराता है।

रेत के समन्दर में भक्ति का दरिया

जगत जननी माँ जगदम्बा मन्दिर जहाँ स्थापित है, उस क्षेत्र को परोपकार धाम की संज्ञा दी गई है। इसमें देवी मैया की सुन्दर मूर्ति है। इनके साथ ही पूरे मन्दिर में विभिन्न देवी-देवताओं की आकर्षक प्रतिमाएं स्थापित हैं। इनमें भैरवनाथ, धन्वन्तरि, सरस्वती, शिव-पार्वती, गणेश, कार्तिकेय, हनुमानजी, राधा-कृष्ण, राम, लक्ष्मण, जानकी आदि की मूर्तियां प्रमुख हैं। मन्दिर परिसर के पृष्ठ भाग में एक और छोटा सा शिवालय है जिसमें कृष्ण वर्ण का शिवलिंग, पार्वती, नन्दी, गणेश एवं कार्तिकेय की श्वेत मूर्तियां स्थापित हैं। सवेरे शाम यहाँ आरती होती है।

वर्ष भर विभिन्न अवसरों पर यज्ञ और अनुष्ठानों का क्रम यहां बना रहता है। रेगिस्तान में जीवन की हरियाली का संचार यहां देखा जा सकता है।

पं. श्री विनोद सारस्वत मूलतः शिक्षाविद् हैं और राजकीय सेवाओं के सिलसिले में वे बेरसियाला आए तथा शिक्षा विभाग में सेवारत रहते हुए ही बेरसियाला में रहकर देवी साधना की और एक मन्दिर की संकल्पना को पूर्ण किया।

सेहत और सुकून का अहसास

सिद्ध संत-महात्माओं और वैद्यों के सान्निध्य में रहते हुए उन्होंने आयुर्वेद के सूक्ष्म तत्वों का ज्ञान पाया। आज वे बेहतर नाड़ी वैद्य होने के साथ ही रोगोपचार में आयुर्वेद के प्रयोग और पराविद्याओं से रोग एवं समस्या निवारण में सिद्ध हैं। उनकी इसी ख़ासियत को जानकर दूर-दूर से लोग उनके पास इस रेगिस्तानी क्षेत्र में आते हैं और समाधान पाते हैं।

मरुस्थल में ऐसे खूब सारे देवी धाम हैं जो भक्तों की अगाध आस्था और विश्वास की कीर्तिपताका फहराते रहे हैं।

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  • डॉ. दीपक आचार्य

35, महालक्ष्मी चौक,

बांसवाड़ा-327001

(राजस्थान)

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