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कविता

कुंडलियां … 15, शिक्षक ‘मृत्यु’ मानिये….

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शिक्षक ‘मृत्यु’ मानिये , मारे शिष्य के दोष।
कुसंस्कार देता मिटा, भरे सत्व का जोश।।
भरे सत्व का जोश, होश में करे संतुलन।
शिष्य को सुधार, बनाता सुंदर चाल चलन।।
गुरु शिष्य की परंपरा भारत को भव्य बनाती।
नित्य नियम से, पूज्य गुरु को शीश झुकाती।।

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गुरु के कारण शिष्य को मिला करे सम्मान।
गुरुवर के ही तेज से, बढ़े शिष्य की शान।।
बढ़े शिष्य की शान, जगत में आनंद पाता।
ज्ञानी ध्यानी बंद, स्वयं को पवित्र बनाता।।
गुरु संवारे शिष्य को, साधना करके उच्च।
सारे दुर्गुण दूर करे , भीतर भरे हैं तुच्छ।।

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भगवत मिलन की राह से गुरु कराता योग।
धीरे – धीरे रंग चढ़े, कटते जाते भोग।।
कटते जाते भोग, बनता है जीवन आला।
गुरु से मिले हमें रोशनी ना कोई जादू काला।।
भूत और वर्तमान का, गुरु ही पावन संगम।
कल भी उसके हाथ में , नहीं किसी से कम।।

दिनांक : 3 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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