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कविता

कुंडलियां … 14 मधु का झरना देखकर…….

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मधु का झरना देखकर, हुआ बड़ा आनंद ।
कण-कण में मधु रम रहा पावे ना मतिमंद।।
पावे ना मतिमंद , अभागा यूं ही भटकता।
वेद से रहता दूर , मधु के ना पास फटकता।।
मधु का चस्केबाज , इसे पीता है हर दिन।
नाम जप का वह मधुरस, पीता है हर दिन।।

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प्रकृति में रम रहा, प्रेम मधु संगीत।
पर्वतों से रिस रहा मधुर मधुर सा गीत।।
मधुर मधुर सा गीत , कुछ हरियाली कहती।
प्रेमरस में भीगकर बस मधु मधु ही कहती।।
वन ,पर्वत, लता – सब मधु मधु ही बोलते।
बादल बरस धरा पर मधु की मुट्ठी खोलते।।

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मधुमय मेरी रात हो, मधुमय हो द्युलोक।
सूर्य भी मधुदान दे, मधुदाता सब लोक।।
मधुदाता सब लोक , चंद्र मधु से हर्षाए।
बिखरे जिव्हा पर मधु, मधु में मधु आए।।
सारे आसव हों मधु हो, औषध मधु युक्त।
मिले आत्मानंद, मैं हो जाऊं जीवनमुक्त।।

2 जुलाई 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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