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गंदा नाला बनती जा रही यमुना को कैसे सुधारें

नई दिल्ली। अब वो दिन हवा हो गये लगते हैं जब नदियों का पानी इतना साफ होता था कि आप उनकी पैंदी को आराम से देख सकते थे। चलते हुए या ठहरे हुए साफ पानी में आप एक रूपया का ‘सिक्का’ डालते थे तो वह कहां जाकर बैठ गया है यह साफ दीख जाता था। पिछले 30-35 वर्षों में स्थिति अधिक खराब हुई है, पर्यावरण प्रदूषण बढ़ा है। प्रदूषण विभाग के निकम्मेपन के कारण जल प्रदूषण भी बढ़ा है। देश की प्रत्येक बड़ी नदी की स्थिति महानगरों ने खराब कर दी है। कभी महानगरों को अपने किनारे बसाकर नदियां गौरवान्वित हुआ करती थीं-बदले में लोग उनकी पूजा किया करते थे-लेकिन आज विज्ञान के युग में जड़ देवताओं की उपेक्षा हो रही है। पूजा के स्थान पर नदियों की प्रताडऩा प्रदूषण बढ़ाकर की जा रही है।

बात यमुना की करें तो इस नदी की स्थिति इस समय बड़ी दयनीय है। दिल्ली इसके लिए अभिशाप बन गयी है। देश की राजधानी का इतना अधिक कचरा, मलवा इस नदी में पड़ता है कि कालिंदी कुंज पर इस समय नरक कुंज सा लगता है। समझो कि यह नरकासुर की नगरी बन गयी हो। आज के सभ्य मानव की उल्टी चाल ने ऐतिहासिक स्थलों को रमणीक प्राकृतिक स्थानों को और भवनों को अपने आत्मोत्थान के लिए नही बल्कि विलासिता पूर्ण मौजमस्ती के लिए चुन लिया है। जिन स्थलों को कभी भारत में आत्मोत्थान के लिए, भजन योग करने के लिए प्रयोग किया जाता था उनकी ऐसी दशा देखकर स्वयं काल भी आंसू बहा रहा है। यमुना नदी भी आजकल आंसू बहाने वालों में शामिल है। इसके पास आप खड़े हों, इसके आंसू साफ साफ कुछ बयान करते हैं। मानो मानव से कह रहे हों कि खुश रहो अहले वतन अब हम तो सफर करते हैं। सचमुच यमुना अपनी मौत की घडिय़ां गिनती सी लग रही है। इसको बचाने के लिए उचित होगा कि दिल्ली के सारे मलबे को सीवर लाइन के माध्यम से आगरा कैनाल तक पहुंचाया जाए, या नदी की पैंदी में साथ साथ लगता एक नाला खोदा जाए और उसे उस नहर तक पहुंचा दिया जाए। जिससे यमुना का शेष पानी प्रदूषित होने से बच जाएगा और यमुना की विरलता बनी रहेगी। यदि हम इस नदी की मुख्यधारा में दीवार लगाते हैं तो उसे इतनी मजबूत बनाया जाए कि बाढ़ आदि से वह टूटे तो नही लेकिन जब बाढ़ आए तो उस दीवार को ऊपर से लांघकर उस नाले की गंद को बहाकर भी ले जाए। इससे मलवे से नदियों की पैंदी की होती ऊंचीकरण की प्रक्रिया रूकेगी। आगे नहर में जाकर जो पानी डाला जाए उसे खेतों की भराई के लिए प्रयोग किया जाए। उसको हम कुछ दूर जाकर फिल्टर भी कर सकते हैं, और उसे पीने योग्य भी बना सकते हैं। शहर के भीतर भी पानी को फिल्टर करने के उपाय खोजे जा सकते हैं।
उस पानी को दिल्ली के पार्कों के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इन उपायों से हम दम तोड़ती यमुना को प्रदूषण मुक्त कर सकते हैं। इसके लिए यमुना के पुल पर टोल टैक्स जैसी व्यवस्था करके आर्थिक संसाधन जुटाए जा सकते हें, या डीएनडी टोल टैक्स में ही पांच रूपये की वृद्घि कर पैसे की व्यवस्था की जा सकती है। हो सकता है कुछ लोग इस व्यवस्था का विरोध करें, लेकिन दूर भविष्य के लिए रक्षोपाय करने वाले लोग वर्तमान में कई बार आलोचना का तो शिकार होते ही हैं। इसलिए उनसे घबराना नही चाहिए। सरकार को इस ओर तुरंत ध्यान देना चाहिए। जिससे यमुना बचाई जा सके।

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