विकृत सेक्युलरवाद
बलवीर पुंज
असम में आग क्यों लगी और 11 अगस्त को मुंबई के आजाद मैदान में पाकिस्तानी झंडे क्यों लहराए गये? मुंबई के बाद पुणे, बैगलूर, हैदराबाद, लखनऊ, कानपुर और इलाहाबाद से रोहयांग और बांग्लादेशी मुसलमानों के समर्थन में हिंसा क्यों हुई? क्यों पूर्वोत्तर के करीब पचास हजार लोग विभिन्न शहरों से रेाजी रोटी छोड़ पलायन को मजबूर हुए? क्या देश यह आशा कर सकता है कि अब असम जैसी हिंसा आगे नही होगी? प्रधानमंत्री के बयानों को देखते हुए यह आशा बेमानी लगती है। विगत 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से बोलते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था, असम में हिंसा की घटनाएं दुर्भाग्यपूर्ण हैं। हमारी सरकार हिंसा के पीछे के कारणों को जानने के लिए हरसंभव कदम उठाएगी। असम में तीन बार से कांग्रेस का शासन है, किंतु उन्होंने यह भी कहा कि हमारी सरकार यह नही जानती कि समस्या की जड़ क्या है? ऐसा लगता है कि प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी जानते हैं कि समस्या का क्या कारण है। असम के मुख्यमंत्री तरूण गोगोई ने स्वीकार किया है कि भारत में सांप्रदायिक हिंसा फैलानी पाकिस्तान पोषित भारतीय नेटवर्क की साजिश थी। केन्द्रीय गृह सचिव आरके सिंह ने दावा किया है कि खुफिया एजेंसियों ने यह पता लगा लिया है कि पाकिस्तानी नेटवर्क से दंगा फैलाने के लिए आपत्तिजनक एमएमएस और तस्वीरें भेजी गयीं, जिन्हें यहां बैठे पाकिस्तानी पिट्ठुओं ने भारतीय मुसलमानों को भड़काने के लिए प्रसारित किया।
भारत को हजार घाव देना पाकिस्तान का जिहादी एजेंडा है। अन्य देशों में बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदाओं के समय खींची गयी तस्वीरे और एसएमएस पाकिस्तान से भेजे गये। पाकिस्तान अपने मकसद में कामयाब हो पा रहा है, क्योंकि उसके एजेंडे को पूरा करने के लिए उसे जो मानसिकता और हाथ चाहिए वे यहां बेरोकटोक पोषित हो रहे हैं। देश के कई हिस्सों में इस्लामी चरमपंथियों द्वारा बड़े पैमाने पर की गयी हिंसा और तोडफ़ोड़ में यह साफ हो चुका है कि भारत में एक वर्ग ऐसा है जो तन से तो भारत से है, किंतु मन पाकिस्तान से जुड़ा है। ऐसे देशघातकों को जब राजनीतिक संरक्षण प्रदान किया जाता है कि ऐसी मानसिकता के विरोध को सांप्रदायिक ठहराने की कोशिश होती है। क्यों?
इसी सेक्यूलर सरकार को एक बानगी वर्ष 2011 जून के महीने की है, जब काला धन वापस लाने के लिए रामदेव दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में अनशन पर डटे थे। आधी रात को रामलीला मैदान पुलिस छावनी में बदल गया, अनशनकारियों पर पुलिस ने अंधाधुंध लाठियां भांजी। बाबा रामदेव को गिरफ्तार कर उन्हें रातों रात दिल्ली की सीमा से बाहर कर दिया गया। एक और आधी रात को बंदेमातरम और भारत माता का जयघोष करने वालों को सरकार बर्बरता से पीटती है और दूसरी ओर पाकिस्तानी झंडे लहराने और शहीद स्मारक को तोडऩे वाले लोगों को मनमानी की छूट देती है। क्यों?
मुंबई के आजाद मैदान में एकत्रित भीड़ का बांगलोदशी घुसपैठियें या म्यांमारी रोहयांग मुसलमानों से क्या रिश्ता है और उन्हें इन विदेशियों के समर्थन में आंदोलन करने की छूट क्यों दी गयी? इस देश में राष्ट्रहित की बात करना सेक्युलर मापदंड से जहां गुनाह है, वहीं इस्लामी चरमपंथ को पोषित करना सेक्यूलरवाद की कसौटी बन गया है। इस दोहरे सेक्यूलरवादी चरित्र के कारण ही कट्टरपंथियों को बल मिलता है जिसके कारण कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक आतंक का खौफ पसरा है। संसद पर आतंकी हमला करने की साजिश में फांसी की सजा प्राप्त अफजल को सरकारी मेहमान बनाए रखना सेक्यूलररिस्टों के दोहरे चरित्र का जीवंत साक्ष्य है। कौन सा देश स्वाभिमानी राष्ट्र होगा जो अपनी संप्रभुता पर हमला करने वालों की तीमारदारी करेगा?
असम की समस्या बांगलादेशी घुसपैठियों के कारण है। इन बांगलादेशियों को सुनियोजित तरीके से असम और अन्य पूर्वोत्तर प्रांतों सहित पश्चिम बंगाल, बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड आदि राज्यों के सीमांत क्षेत्रों में बसाया गया है। इनके कारण ही उन क्षेत्रों के जनसंख्या स्वरूप में भारी बदलाव आया है और वहां के स्थानीय नागरिक कई क्षेत्रों में अल्पसंख्यक की स्थिति में आ गये हैं और असुरक्षित अनुभव करते हैं। असम के मामले में तो गुवाहटी उच्च न्यायालय का कहना है कि वे राज्य में किंगमेकर बन गये हैं। सर्वोच्च न्यायलय ने सन 2005 के बाद 2006 में भी सरकार को बांग्लादेशी नागरिकों को देश से बाहर करने का निर्देश दिया है, किंतु बांगलादेशी नागरिकों के निष्कासन पर सरकारें खामोश हैं। असम में इतनी बड़ी हिंसा हुई, स्थानी बोडो लोगों को उनके घरों और जमीनों से खदेड़ भगाया गया। विदेशियों के हाथें अपने सम्मान, अस्तित्व और पहचान लुटता देख जब स्थानीय लोगों ने कड़ा प्रतिरोध करना शुरू किया तो सभी सेक्यूलर दलों को जाति और सदभाव की चिंता सताने लगी। हिंसा भड़कने के प्रारंभिक तीन चार दिनों तक राज्य और केन्द्र सरकार दोनों सोई थीं। क्यों? अभी हाल में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग ने असम हिंसा पर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी है। इसमें बताया गया है कि दंगे मुसलमानों और बोडो के बीच छिड़े। रिपोर्ट में मुसलमानों को अल्पसंख्यक और बोडो को बहुसंख्यक बतायाा गया है। अल्पसंख्यक होने का आधार है, चाहे उनका संख्या बल कितना भी हो?
असम में अल्पसंख्यक कौन है? अमस बांग्लादेशी घुसपैठियें के कारण मुस्लिम बहुल राज्य बनने की राह पर है। कोराझाड़, धुबड़ी चिरांग और बरपेटा जिले हिंसा के सर्वाधिक शिकार रहे। कोकराझाड़ के भोवरागुडी में भारतीय मतावलंबियों की जनसंख्या 1991 से 2001 के बीच एक प्रतिशत तो दोतमा दहसील में सोलह प्रतिशत घटी है जबकि इसी अवधि में मुसलमानों की आबादी छब्बीस प्रतिशत बड़ी है। धुबड़ी जिले के बकरी बाड़ी, छापर और दक्षिणी सलमारा में भारतीय मतावलंबियों की आबादी क्रमश: 4, 2 और 23 प्रतिशत घटी, वही इन तहसीलों में मुसलमानों की जनसंख्या इसी अवधि में क्रमश: 30.5, 37.39 और 21 फीसदी बढ़ी। अन्यत्र यही हाल है।
आबादी में यह बदलाव उन अवैध बांग्लादेशियों के कारण हुआ है, जिन्हें बसाकर जहां पाकिस्तान अपने एजेंडे को साकार करना चाहता है, वहीं कांग्रेस सेक्यूलरवाद के नाम पर उन्हें संरक्षण प्रदान कर अपनी सत्ता अजर अमर करना चाहती है। कांग्रेस नेता देवकांत बरूआ ने इंदिरा गांधी को यूं ही नही कहा था कि अली और कुली असम में कांग्रेस के हाथ से गद्दी कभी जाने नही देंगे।