42
धरम – धरम चिल्लाय कर, अधरम करते लोग।
अधरम के ही कारने , जग में बढ़ते रोग ।।
जग में बढ़ते रोग, शोक भी दिन – दूने बढ़ते।
पाप ,ताप, संताप मनुज पर अपनी रंगत धरते।।
पापी जन निज देव पर , नित बलि पशु की देते।
ऐसी निरीह आहों की आहट हम श्वासों में लेते।।
43
देव पर चढ़ता मांस, तो समझो है पाखण्ड।
अपनी ही संतान का , पिता करे ना खण्ड।।
पिता करे ना खण्ड, सबकी रक्षा करता।
निष्पक्ष हो आबाल वृद्ध का पोषण करता।।
न्याय व्यवस्था यही सत्य और सनातन भी।
वैदिक जन कहते , शाश्वत और पुरातन भी।।
44
जग में सब का हो भला सबका हो कल्याण।
दुष्टों का होवे शमन, सज्जन का हो त्राण।।
सज्जन का हो त्राण, सदा ही खुशी मनावे।
मनोकामना पूरी होवे, उन्नति – समृद्धि पावे।।
एक चाल हो, एक ताल हो, एक हाल हो सबका।
गंतव्य एक ,मंतव्य एक, एक लक्ष्य हो सबका।।
30 जून 2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत
मुख्य संपादक, उगता भारत