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आज का चिंतन

आर्यसमाज धामावाला-देहरादून का साप्ताहिक सत्संग- “दीपक की तरह ऋषि दयानन्द ने वेदज्ञान का प्रकाश विश्व में फैलायाः स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती”

ओ३म्

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आर्यसमाज, धामावाला-देहरादून के साप्ताहिक सत्संग में आज दिनांक 2-7-2023 को प्रातः 8.00 बजे से समाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री के पौरोहित्य में यज्ञशाला में यज्ञ हुआ। यज्ञ के बाद शास्त्री जी ने एक भजन प्रस्तुत किया जिसके बोल थे ‘विषयों में फंस कर बन्दे हुआ तू बेखबर है, मानव का चोला पाया न पंछी का डर है’। भजन के बाद स्वामी श्रद्धानन्द बाल वनिता आश्रम की एक कन्या आयु. रोशनी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। प्रार्थना में उन्होंने कहा कि ईश्वर सर्वोपरि है। ईश्वर हम सबकी सब कामनाओं को पूर्ण करे। ईश्वर का मुख्य और निज ओ३म् है। यह नाम पवित्र नाम है। ईश्वर की भक्ति करते हुए हम संसार सागर से पार हो जायें। इसके बाद आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने ऋग्वेद के एक मन्त्र को पुस्तक से पढ़कर उस पर व्याख्यान प्रस्तुत किया।

स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी आज व्याख्यान के लिए आमंत्रित किए गये थे। उन्होंने सम्बोधन के आरम्भ में कहा कि महर्षि दयानन्द ने समाजोत्थान के लिए रात-दिन एक कर दिया था। दीपक के प्रकाश की तरह ऋषि दयानन्द जी ने वेदज्ञान का प्रकाश विश्व में फैलाया। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने संसार में प्रचलित सभी मतों के सुधार के लिए प्रयत्न किए। इसी कार्य के लिए उनहोंने सन् 1875 में आर्यसमाज की स्थापना की थी जिसका मुख्य उद्देश्य वेदों का प्रचार करना है।

स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती ने कहा कि आपको उपदेश देने से पूर्व मेरा कर्तव्य है कि मैं स्वयं को तपस्वी बनाऊं। उन्होंने कहा कि मुझे उन बातों का आचरण भी करना होता है जिसका कि मैं प्रचार करता हूं अथवा अपने व्याख्यान में श्रोताओं को करने के लिए कहता हूं। स्वामी जी ने आगे कहा कि ऋषि दयानन्द ने जिन सिद्धान्तों का प्रचार किया उन्होंने उन्हें सत्य की कसौटी पर कसा था तथा अपने अनुभवों से भी सत्य पाया था। उन्होंने कहा कि ऋषि दयानन्द जी ने अकेले ही विश्व में वेदों का डंका बजाया। यदि हम वेदों का प्रचार नहीं करेंगे तो हमारे लिए समाज में रहना असहनीय हो जायेगा। यह बात उन्होंने देश में बन रही परिस्थितियों की ओर संकेत करके कही। उन्होंने कहा कि ‘कृण्वन्तो विश्वमार्यम्’ को सफल सिद्ध करने के लिए हमें एक होना होगा। हम महर्षि दयानन्द के स्वप्नों को साकार वा सफल करने के लिए तपस्वी बनें और सुसंगठित भी हों। स्वामी जी ने कहा कि हमें वेद मन्त्रों की शिक्षाओं को अपने जीवन में साकार रूप देना होगा। हमारे जीवन का कोई कार्य ऐसा न हो जहां हम वेद मन्त्रों के अर्थ के विरुद्ध कोई व्यवहार करें।

स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमें समाज के सभी वर्गों में वेदों का प्रचार करना चाहिये। समाज के पिछड़े वर्गों एवं उनके बच्चों में आर्यसमाज के प्रचार की आवश्यकता पर उन्होंने बल दिया। स्वामी जी ने आर्यसमाज के सदस्यों को इतर समाज में घुलने-मिलने की प्रेरणा भी की। आर्यसमाज का प्रचार हम किस प्रकार करें, इसके कुछ उदाहरण भी स्वामी जी ने श्रोताओं के सम्मुख प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि छोटे बच्चे किसी धर्म के मानने वाले नहीं होते। बच्चों को जो सिखाया जाता है उसे ही वह करने लग जाते हैं वा अपना लेते हैं। स्वामी जी ने मिट्टी के हवन-कुण्ड बनाकर उसमें यज्ञ करने की प्रेरणा की और मिट्टी के यज्ञकुण्ड के महत्व पर प्रकाश भी डाला। उन्होंने कहा कि उनकी प्रेरणा से मारीशस में कुम्हारों ने यज्ञ कुण्ड बनाये थे जिनका मूल्य तीन सौ रुपये था। भारत में भी यदि मिट्टी के यज्ञकुण्ड बनाये जायें तो वह लगभग छः सौ रुपये में मिल सकते हैं। स्वामी जी ने आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र का उल्लेख किया और कहा कि हम सबको आयुर्वेद पद्धति से आवश्यकतानुसार चिकित्सा करानी चाहिये।

आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने आगामी कुछ कार्यक्रमों की सूचनायें दी और स्वामी योगेश्वरानन्द सरस्वती जी के व्याख्यान के लिए उनका धन्यवाद किया। कार्यक्रम का संचालन आर्यसमाज के मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने किया। अन्त में पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी ने शान्ति पाठ कराया। प्रसाद वितरण के साथ ही आज की सभा का विसर्जन हुआ। आज के कार्यक्रम में हमें अपने कई दशक पुराने मित्रों के दर्शन हुए जिनकी कुशल-क्षेम पूछने का अवसर भी हमें प्राप्त हुआ। ओ३म् शम्।

-मनमोहन कुमार आर्य

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