विश्वकर्मा पूजा
(वेदों में ईश्वर विश्वकर्मा)
Dr DK Garg
भाग 1
पर्व का समय : हमारे देश में प्रत्येक वर्ष १७ सितम्बर को विश्वकर्मा दिवस के रूप में मनाया जाता है।
पौराणिक पर्व विधि : इस दिन विश्वकर्मा नाम के देवता की मूर्ति की पूजा की जाती है। इस देवता को इंजीनियरिंग और मशीनो का देवता माना जाता है। इस दिन मशीनों के साथ-साथ दफ्तरों और कारखानों की सफाई करके विश्वकर्मा की मूर्ति को सजाया जाता है लोग मशीनों गाड़ियों कम्प्यूटर की पूजा करते हैं। जो व्यापारी इंजीनियरिंग, आर्किटेक्चर, वेल्डिंग और मशीनों के काम से जुड़े होते हैं उनके लिए इस दिन का विशेष महत्व होता है।
पौराणिक मान्यता : विश्वकर्मा नाम से किसी शरीरधारी महान पुरुष का कोई इतिहास नही मिलता है.ये एक काल्पनिक देवता है जिसका जिनका नाम विश्वकर्मा है ,ये देवता तकनीक का देवता है । विश्वकर्मा देव देवताओं के देव शिल्पी हैं और सुंदर भवनों के निर्माण उनकी ही देन है। मान्यता है कि भगवान विश्वकर्मा ने देवताओं के लिए महलों, हथियारों और भवनों का निर्माण किया था। इस वजह से आज लोहे के सामानों जैसे- औजारों, मशीनों और दुकानों की पूजा होती है और दफ्तर बंद रहते हैं।
मान्यताओं के अनुसार भगवान विश्वकर्मा के आविष्कार एवं निर्माण कार्यों के सन्दर्भ में इन्द्रपुरी, यमपुरी, वरुणपुरी, कुबेरपुरी, पाण्डवपुरी, सुदामापुरी, शिवमण्डलपुरी आदि का निर्माण इनके द्वारा किया गया है। पुष्पक विमान का निर्माण तथा सभी देवों के भवन और उनके दैनिक उपयोगी होनेवाले वस्तुएं भी इनके द्वारा ही बनाया गया है।
कहा जाता है कि प्राचीन काल में जितनी राजधानियां थी, प्राय: सभी विश्वकर्मा द्वारा ही बनाई गई हैं.
जितने भी मिस्त्री कारीगर लोहे का काम करने वाले और बड़े आर्किटेक्ट आदि इस दिन विश्वकर्मा की पूजा करते हैं और उनसे आशीर्वाद लेते हैं ताकि उनकी काम में बरकत हो।
प्रचलित मान्यताओ का विश्लेषण :
ये पर्व कब से शुरू हुआ इसका कोई इतिहास नहीं मिलता है। यदि विचार किया जाए तो अधिकांश भारतीय पर्व हिंदी माह के किसी विशेष दिवस से शुरू होते हैं जैसे कार्तिक-पूर्णिमा, ,अमावस्या ,अष्टमी आदि परन्तु ये पर्व अंग्रेजी माह की तिथि को मनाते हैं तो इसका ये मतलब निकाल सकते है कि ये पर्व बहुत प्राचीन नहीं हैं।
विश्वकर्मा का नाम 33 कोटि के देवताओं में भी नहीं आता है तो फिर विश्वकर्मा का शाब्दिक अर्थ देखना चाहिए और वेद में क्या कहा है और इस पर चिंतन करने की जरूरत है।
लेकिन जैसा की पौराणिक मान्यता है वह पूरी तरह गलत नही है।
इस मान्यता से एक ऐसी महान शक्ति का आभास होता है जो अनंत काल से सर्वयापक है और जन्म मरण से रहित है और महान रचीयता है ,शिल्पी है , इंजीनियर आदि है।
इस प्रश्न का उत्तर वेदों में मिलता है ।
वेदों में विश्वकर्मा –
वेदों में ईश्वर के लिए विश्वकर्मा शब्द भी आया है जो चारो वेदों में 71 बार प्रमुखता से आया है। ऋग्वेद के दसवां मंडल (81-82) में इनकी स्तुति ईश्वर के रुप में की गई है।
इस तरह विश्वकर्मा ये नाम परमब्रह्म परमात्मा या ईश्वर का ही एक रुप है।
(विश प्रवेशने) इस धातु से ‘विश्व’ शब्द सिद्ध होता है। ‘विशन्ति प्रविष्टानि सर्वाण्याकाशादीनि भूतानि यस्मिन् । यो वाऽऽकाशादिषु सर्वेषु भूतेषु प्रविष्टः स विश्व ईश्वरः’ जिस में आकाशादि सब भूत प्रवेश कर रहे हैं अथवा जो इन में व्याप्त होके प्रविष्ट हो रहा है, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘विश्व’ है।
ईश्वर महान रचनाकार , शिल्पी है* :
ईश्वर के विश्वकर्मा होने के प्रमाण
रचनाकार के बिना सुन्दर रचनायें नहीं हो सकती ।नियामक के बिना सुन्दर नियम नहीं हो सकते प्रबन्धक के बिना सुन्दर प्रबन्ध नहीं हो सकते ।जैसे सोने से अपने आप आभूषण नहीं बन सकता वैसे ही प्रकृति ( Matter ) से अपने आप सृष्टि नहीं बन सकती ।
1.सब पशु पक्षियों,जीव जन्तुओं, पेड पौधों व मनुष्यों को जीने के लिये हवा पानी रोशनी खुराक का इतना सुन्दर प्रबन्ध जिसने किया है वह ईश्वर है ।
2.सूर्य समय पर उदय होता है। आज से एक हजार साल बाद सूर्योदय, चन्द्रोदय, ज्वार भाटा, कब होंगे, बताया जा सकता है क्योंकि संसार एक नियम में बंधा चल रहा हैं। भाप से पानी बनता है, गन्धक का तेजाब नहीं। साइंस के समस्त फार्मूले इसी आधार पर स्थित है क्योंकि प्रकृति में नियम हैं। जहां-जहां कोई नियम होता है वहां-वहां उस नियम का नियामक या नियन्ता अवश्य होना चाहिए। नियम नियन्ता के बिना नहीं चलते।
3. फल पेट भरने के लिए ,दूध बच्चे का पोषण करने के लिए, वनों में बिखरी औषधियां मानव के रोग निवारण के लिए,
4. आदमी के नाक कान मुख कितने सलीके से बने हैं, तितलियों के पंखों में मखमली रंग भरे हैं, फूलों में क्या सुगन्ध भरी है, उदय व अस्त होते सूरज का दृश्य मानव का मन मोह लेता है। प्रत्येक रचना में एक अनूठापन है। ये अनूठापन रचनाकार के अस्तित्व को सिद्ध करता है।
5.प्रकाश की गति १,८६००० मील प्रति सेकिंड है। यदि हम दियासलाई की एक तिल्ली जलायें तो एक सैकिंड बाद उसका प्रकाश १,८६००० मील तक फैल जायेगा। सूर्य हमसे इतना दूर है कि वहां का प्रकाश लगभग नौ मिनट में पहुंचता है। हमारी प्रथ्वी का घेरा २५००० मील का है। यह सूर्य इतना बडा है कि हमारी पृथ्वी जैसी 13 लाख पृथ्वियां इसमें समा जाएं। परन्तु हमारा यह सूर्य कुछ बडा नहीं है। ज्येष्ठा नक्षत्र का व्यास हमारे सूर्य के व्यास से ४५० गुणा है। यानि हमारे सूर्य जैसे नौ करोड सूर्य एक ज्येष्ठा नक्षत्र में समा जायेंगे। हमारी आकाश गंगा के पास दूसरी आकाश गंगा में एक अन्य नक्षत्र है ‘‘एसडोराडस‘‘। एक लाख छियासी हजार मील प्रति सैकिंड की गति से भागता हुआ प्रकाश १०२ वर्ष में वहां से पृथ्वी तक पहुंचता है। उस नक्षत्र का व्यास हमारे सूर्य से १४०० गुणा है।
6.वैज्ञानिकों का कहना है कि इससे कहीं बडे़-बडे़ अनगिनत नक्षत्र आकाश में हैं। बताओ कि कोई छः फुटा वा दस फुटा इंसान चाहे कितना ही शक्तिशाली हो, इन नक्षत्रों, ग्रहों, तारों, धूमकेतुओं का निर्माण नही कर सकता है।वह वहां पहुंचने की कल्पना भी नही कर सकता है।
ये समस्त बातें यह सिद्ध करने के लिए काफी है महान ईश्वर ही श्रृष्टि का विश्वकर्मा है।
अन्य प्रमाण
आइए देखें कि वेद उनके बारे में क्या कह रहे हैं –
कृषि:
ऋग्वेद १.११७.२१ – राजा और मंत्री दोनों मिल कर, बीज बोयें और समय- समय पर खेती कर प्रशंसा पाते हुए, आर्यों का आदर्श बनें।
ऋग्वेद ८.२२.६ भी राजा और मंत्री से यही कह रहा है।
ऋग्वेद ४.५७.४ – राजा हल पकड़ कर, मौसम आते ही खेती की शुरुआत करें और दूध देने वाली स्वस्थ गायों के लिए भी प्रबंध करें।
वेद कृषि को कितना उच्च स्थान और महत्त्व देते हैं कि स्वयं राजा को इस की शुरुआत करने के लिए कहते हैं। इसकी एक प्रसिद्ध मिसाल रामायण (१.६६.४) में राजा जनक द्वारा हल चलाते हुए सीता की प्राप्ति है, इससे पता चलता है कि राजा-महाराजा भी वेदों की आज्ञा का पालन करते हुए स्वयं खेती किया करते थे।
ऋग्वेद १०.१०४.४ और १०.१०१.३ में परमात्मा विद्वानों से भी हल चलाने के लिए कहते हैं।
महाभारत आदिपर्व में ऋषि धौम्य अपने शिष्य आरुणि को खेत का पानी बंधने के लिए भेजते हैं अर्थात् ऋषि लोग भी खेती के कार्यों में संलग्न हुआ करते थे।
निरूक्तकार महर्षि यास्क विश्वकर्मा शब्द का यौगिक अर्थ लिखते हैं –
विश्वकर्मा सर्वस्य कर्ता तस्यैषा भवति’’ निरुक्त शास्त्रे १०/२५
तथा प्राचीन वैदिक विद्वान् कहते हैं-
विश्वानि कर्माणि येन यस्य वा स विश्वकर्मा अथवा विश्वेषु कर्म यस्य वा स विश्वकर्मा
अर्थात् जगत के सम्पूर्ण कर्म जिसके द्वारा सम्पन्न होते हैं अथवा सम्पूर्ण जगत में जिसका कर्म है वह सब जगत् का कर्ता परमपिता परमेश्वर विश्वकर्मा है।विश्वकर्मा शब्द के इस यथार्थ अर्थ के आधार पर विविध कला कौशल के आविष्कार यद्यपि अनेक विश्व कर्मा सिद्ध हो सकते हैं तथापि सर्वाधार सर्वकर्ता परमपिता परमात्मा ही सर्व प्रथम विश्वकर्मा है।
ऐतरेय ब्राह्मणग्रन्थ के मतानुसार ‘प्रजापतिः प्रजाःसृष्ट्वा विश्वकर्माऽभवत ’।
प्रजापति (परमेश्वर) प्रजा को उत्पन्न करने से सर्वप्रथम विश्वकर्मा है।
समाज में सम्मान योग्य शिल्पी/विश्वकर्मा
पुरे विश्व में समाज के कुछ वर्ग विशेष रूप से तकनीकी कार्यों में पीढ़ी दर पीढ़ी लगे हुए है जो सम्मान योग्य है जैसे- लोहार- लोहे का कार्य, बढ़ई- लकड़ी का कार्य, सुनार- सोने जैसी धातु के शिल्पी, कुम्भकार- मिटटी से बर्तन बनाने का कार्य करते हैं। इनका ईश्वर द्वारा दिया गया ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है और इनके श्रम के बिना न तो कोई महल खड़ा हो सकता है ,ना कोई मशीन, न सोने का महल ,ना कुर्सी यानि कोई उपकरण नहीं बन सकता है चाहे उद्योग के लिए, परिवार के लिए, चिकित्सा के लिए आदि जो भी हो।
इस तरह इनका योगदान समाज देश और विश्व की प्रगति के लिए सराहनीय और अनुकरणीय है जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। जिनके सम्मान के लिए वेद ग्रंथ में आदेश दिया है;
कुछ उदाहरण :
ऋग्वेद ६.९.२ और ६.९.३ – इन मंत्रों में बुनाई सिखाने के लिए अलग से शाला खोलने के लिए कहा गया है। जहां सभी को बुनाई सीखने का उपदेश है।
शिल्पकार और कारीगरः-
शिल्पकार, कारीगर, मिस्त्री, बढई, लुहार, स्वर्णकार इत्यादि को वेद तक्क्षा कह कर पुकारते हैं।
ऋग्वेद ४.३६.१ रथ और विमान बनाने वालों की कीर्ति गा रहा है।
ऋग्वेद ४.३६.२ रथ और विमान बनाने वाले बढ़ई और शिल्पियों को यज्ञ इत्यादि शुभ कर्मों में निमंत्रित कर उनका सत्कार करने के लिए कहलाता है।
इसी सूक्त का मंत्र ६ तक्क्षा का स्तुति गान कर रहा है और मंत्र ७ उन्हें विद्वान, धैर्यशाली और सृजन करने वाला कहता है।
वाहन, कपड़ेे, बर्तन, किले, अस्त्र, खिलौने, घड़ा, कुआँ, इमारतें और नगर इत्यादि बनाने वालों का महत्त्व दर्शाते कुछ मंत्रों के संदर्भ:-
ऋग्वेद १०.३९.१४, १०.५३.१०, १०.५३.८, अथर्ववेद १४.१.५३, ऋग्वेद १.२०.२, अथर्ववेद १४.२.२२, १४.२.२३, १४.२.६७, १५.२.६५
ऋग्वेद २.४१.५, ७.३.७, ७.१५.१४ ।
ऋग्वेद के मंत्र १.११६.३-५ और ७.८८.३ जहाज बनाने वालों की प्रशंसा के गीत गाते हुए आर्योंं को समुद्र यात्रा से विश्व भ्रमण का सन्देश दे रहे हैं।
अन्य कई व्यवसायों के कुछ मंत्र संदर्भ:
वाणिज्य – ऋग्वेद ५.४५.६, १.११२.११,
मल्लाह – ऋग्वेद १०.५३.८, यजुर्वेद २१.३, यजुर्वेद २१.७, अथर्ववेद ५.४.४, ३.६.७,
नाई – अथर्ववेद ८.२.१९ ,
स्वर्णकार और माली – ऋग्वेद ८.४७.१५,
लोहा गलाने वाले और लुहार – ऋग्वेद ५.९.५ ,
धातु व्यवसायः- यजुर्वेद २८.१३
वेदों में विश्वकर्मा परमात्मा एवं ऐतिहासिक शिल्पी विश्वकर्मा: वैदिक विश्वकर्मा –
परमपिता परमात्मा की कल्याणी वाणी वेद के विश्वकर्मा शब्द से ईश्वर, सूर्य, वायु एवं अग्नि का ग्रहण होता है। प्रचलित ऐतिहासिक महापुरुष शिल्पशास्त्र के ज्ञाता विश्वकर्मा एवं वेदों के विश्वकर्मा भिन्न हैं।
विश्वकर्मा दिवस का मुख्य उद्देश्य
ईश्वर आंखों से देखने की वस्तु नहीं, वह तो मनन चिन्तन व योगाभ्यास से अनुभव करने की वस्तु है।वेदों में सब प्रकार का ज्ञान विज्ञान है ।
रचनाकार ईश्वर विश्वकर्मा और उसकी संतान जो विश्वकर्मा का कार्य करती है उनको याद करना ,उनका धन्यवाद करना और विश्वकर्मा ज्ञान की वृद्धि की चर्चा करना इस पर्व का मुख्य उद्देश्य है।
वेद शिल्प विद्या अर्थात् श्रम विद्या का अत्यंत गौरव करते हुए हर एक मनुष्य के लिए निरंतर पुरुषार्थ की आज्ञा देते हैं । वेदों में निठल्लापन पाप है, वेदों में कर्म करते हुए ही सौ वर्ष तक जीने की आज्ञा है। (यजुर्वेद ४०.२)। मनुष्य जीवन के प्रत्येक पड़ाव को ही ‘आश्रम’ कहा गया है – ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास, इनके साथ ही मनुष्य को शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करने का उपदेश है। वैदिक वर्ण व्यवस्था भी कर्म और श्रम पर ही आधारित व्यवस्था है
ईशोउपनिषद का एक श्लोक है।
कुर्वन्नेवेह कर्माणि जिजीविषेच्छतँ समाः।
एवं त्वयि नान्यथेतोऽस्ति न कर्म लिप्यते नरे॥२॥
इस लोक में कर्म करते हुए सौ वर्ष जीने की इच्छा करनी चाहिए, इसके सिवा और कोई मार्ग नहीं है। ऐसा करने से तुझे अशुभ कर्म का लेप नहीं होगा ।
पर्व विधि: इस पर्व का मूल उद्देश्य है किं सभी लोग विशेषकर तकनीक से जुड़े हुए सभी इस दिन ईश्वर के ज्ञान के प्रति अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते हुए विशेष भक्ति यज्ञ आदि करें और अन्य कार्य मशीन आदि को इस दिन दूसरी प्राथमिकता दें।
१. सभी शिल्पकारों और निर्माण कार्य, उद्योग में लगे मजदूर आदि का सम्मान करें उनकी सहायता का संकल्प लें, उनके साथ बैठ कर चर्चा करें, यज्ञ करें और भोजन करें।
२. सभी अधीनस्थ मजदूरों को यह विश्वास दिलायें कि उनका नियोक्ता हमेशा उनके साथ मित्र की भांति है और रहेगा .
३. अधीनस्थ मजदूरों और कर्मचारियों के कल्याण की योजना बनाएं और कार्यान्वित करें।
४. मजदूरों के बच्चों की शिक्षा में योगदान दें।
5.स्वयं निठल्ले ना रहे कर्म करते रहे और किसी भी कर्म में संकोच ना करे ,स्वयं भी शिल्पी बने और शिल्पकार का सम्मान करें।