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धरती बंजर हो रही, गाय कटें दिन रात।
जीवन बोझिल हो गया, देख मनुज के घात।।
देख मनुज के घात, समझ कुछ नहीं आता।
जितना समझावें, इसे उल्टा चलता जाता।।
अपने पैरों आप कुल्हाड़ी मारे मूरख होय।
माता की हत्या करे ,सुख का भागी कोय ?
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गीता गंगा गाय का, मेल बड़ा अनमोल।
गहरे इनके राज को, कौन सकेगा खोल।।
कौन सकेगा खोल, भेद जो गहरा समझे।
भारत के सही अर्थ को , वह ह्रदय में समझे।।
खेती का आधार है गैया, हरियाली का गंगा।
बुद्धि शुद्ध रखती है गीता खत्म करे हर दंगा।।
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गैया खूंटा पर सजे, हिय में हो सम्मान।
गीता जीवन में घटे, मानव करे उत्थान।।
मानव करे उत्थान , आगे बढ़ता निशदिन।
जगत के सारे संकट, कटते जाते छिन छिन।।
पुण्य उदय होते मानव के प्रारब्ध के कारण।
भाग्य उदय हुआ करता शुभ कर्मों के कारण।।
दिनांक : 28 जून 2023
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत