कोई संवैधानिक पद ना होते हुए भी भारतीय राजनीति को नई दिशा दी थी संजय गांधी ने
अनन्या मिश्रा
देश की आजादी के बाद भारतीय राजनीति हमेशा कांग्रेस परिवार के इर्द-गिर्द घूमती रही। पंडित जवाहर लाल नेहरू के बाद उनकी बेटी इंदिरा गांधी ने पीएम पद संभाला। वहीं इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उनके बड़े बेटे राजीव गांधी देश के अगले प्रधानमंत्री बने थे। भले ही देश की तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी पीएम नहीं बन सके। लेकिन संजय गांधी का भारतीय राजनीति में अहम कद था। इंदिरा गांधी और फिरोज गांधी के छोटे बेटे संजय का जन्म 14 दिसंबर, 1946 को हुआ था। माना जाता है कि साल 1973 से 1977 के बीच संजय गांधी ने अप्रत्यक्ष रूप से देश का कार्यभार संभाला था।
बता दें कि आज ही के दिन यानी की 23 जून को इंदिरा गांधी के छोटे बेटे यानी की संजय गांधी की विमान दुर्घटना में मौत हो गई थी। काफी कम उम्र में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था। लेकिन इस दौर में समजय गांधी के भारत सरकार को कई अहम फैसले लेने के लिए मजबूर कर दिया था। साल 1970 में वह भारतीय युवा कांग्रेस के नेता बनें और साल 1980 तक उन्होंने देश की राजनीति में एक अमिट छाप छोड़ने का काम किया था।
पुरुष नसबंदी
इंदिरा गांधी का उत्ताराधिकारी के तौर पर सबसे पहले संजय गांधी का नाम आता था। माना जाता है कि 25 जून को जब देश में आपातकाल की घोषणा की गई। तो इसके कई सालों तक संजय गांधी ने ही देश की बागडोर संभाल रखी थी। संजय गांधी ने साल 1976 के सिंतबर माह में एक ऐसा फैसला लिया, जिसे देश के बुजुर्गों द्वारा आज भी याद रखा जाता है। संजय ने देशभर में पुरुष नसबंदी करवाने का फैसला लिया था। जिसके कारण कांग्रेस को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था। हालांकि इस फैसले के पीछे सरकार की मंशा देश की आबादी को नियंत्रित करना था।
इस दौरान देशभर के पुरुषों की जबरन नसबंदी करवाए जाने का आदेश दिया गया था। एक रिपोर्ट के अनुसार, उस दौरान एक साल के अंदर 60 लाख से अधिक लोगों की नसबंदी करवाई गई थी। उस दौरान 16 साल के किशोर से लेकर 70 साल के बुजुर्गों की जबरन नसबंदी करवा दी गई थी।
.
मारुति 800 को लाने का श्रेय
यदि भारत देश में पुरुष नसबंदी जैसी दमनकारी निर्णय के लिए संजय गांधी को जिम्मेदार माना जाता है। तो वहीं देश में मारुती 800 को लाने का श्रेय भी उनको ही दिया जाता है। उनका सपना था कि देश में आम लोगों के पास अपनी कार था। इसके लिए संजय गांधी ने दिल्ली के गुलाबी बाग में एक वर्कशॉप तैयार करवाया था। वहीं 4 जून 1971 को उन्होंने मारुति मोटर्स लिमिटेड नामक एक कंपनी का गठन किया गया। बता दें कि संजय गांधी इस कंपनी के पहले एमडी थे।
ऐसे शुरू हुआ राजनीतिक सफर
देश में आपातकाल की समाप्ति होने के बाद साल 1977 में संजय गांधी अपने पहले चुनाव में खड़े हुए थे। लेकिन इस दौरान संजय गांधी को अपने निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से हार का सामना करना पड़ा था। इस हार का सबसे बड़ा कारण आपातकाल था। कांग्रेस के इस फैसले से जनता खफा थी। हालांकि साल 1980 को हुए आम चुनावों में संजय गांधी को जीत मिली थी।
मेनका गांधी से की थी शादी
आम लोगों की तरह की संजय गांधी और मेनका गांधी की जिंदगी में भी खटपट चलती थी। बताया जाता है कि दोनों के बीच एक बार हुए विवाद में मेनका इतना गुस्सा हो गई थीं कि उन्होंने अपनी शादी की अंगूठी निकालकर फेंक दी थी। मेनका गांधी की इस हरकत से इंदिरा गांधी बेहद नाराज हो गई थीं। क्योंकि वह अंगूठी उन्हें मां कमला नेहरू से मिली थी। उस दौरान सोनिया भी मौके पर मौजूद थीं। उन्होंने वह अंगूठी यह कहकर अपने पास रख ली थी कि वह इसे प्रियंका गांधी के लिए संभाल कर रखेंगी।
विमान हादसे में गवांई जान
शादी के 6 साल बाद संजय गांधी की विमान हादसे में मौत हो गई थी। बता दें कि 23 जून 1980 की सुबह संजय गांधी और दिल्ली फ्लाइंग क्लब के पूर्व इंस्ट्रक्टर सुभाष सक्सेना ने सफदरगंज के दिल्ली फ्लाइिंग क्लब से उड़ान भरी। विमान हवा में कलाबाजियां दिखा रहा था। तभी अचानक से विमान के पिछले इंजन ने काम करना बंद कर दिया था। संजय और सुभाष का विमान सीधे अशोक होटल के पीछे खाली पड़ी जमीन में जाकर टकरा गया। इस हादसे में दोनों ने अपनी जान गंवा दी।