कांटो की बनी सेज पर, खिलता सदा गुलाब।
बिखरे मोती
विषमताओं को पार कर के ही मनुष्य विलक्षण और यशस्वी बनता है:-
कांटो की बनी सेज पर,
खिलता सदा गुलाब।
खूबसूरती खुशबू में ,
अद्भुत है नायाब।।2333॥
प्रभु – इच्छा ही सर्वोपरि है:-
प्रभु- इच्छा प्रबल बड़ी,
पूरी हो तत्काल।
एक उसके संकेत से,
नर होता निहाल॥2334॥
मन कहाँ रहता है :-
राग – द्वेष की नीड़ में ,
मन करता है निवास।
इसे रमा हरि ओ३म् में,
मिले स्वर्ग का वास॥2335॥
जीवन- दर्शन श्रेष्ठ कैसे बने:-
ब्रह्म-भाव में जी सदा,
प्रभु के रहो समीप।
प्रकाश – पुँपुँज प्रेरक बनों,
ज्यों ज्योतिर्मय दीप॥2336॥
मन का कोढ़ क्या है:-
मन का कोढ़ तो लोभ है,
और पाप का बाप।
कामी क्रोधी लोभी को,
घेरते हैं संताप॥2337॥
मन ,भक्ति और व्यवहार कैसा हो:-
हरि से हो सायुज्यता,
और मन होवे श्वेत।
व्यवहार में तो द्वैत हो,
भक्ति में अद्वैत॥2338॥
श्वेत मन अर्थात् निर्मल मन।
संसार में कैसे रहें:-
प्रेम करो संसार से,
पर मत करना मोह।
एक दिन ऐसा आएगा,
जब जागेगा द्रोह॥2339॥
आवश्यकता त्यागो मत, कामनाएं पालोमत:-
तृष्णाएँ पालो नहीं,
सदा रहो निष्काम।
आक़ाश की तरह अनन्त है,
छीनें चैन आराम॥2340॥
परमपिता परमात्मा अपनी सृष्टि को कब देखता है:-
नभ-ज्योतिर्मय हो गया,
सुन्दर तारों की रेख।
मानो दृगोन्मेष कर,
स्रष्टा रहा हो देख॥2341॥
संसार में ज्ञान जैसा पवित्र और महान कोई नहीं है:-
ज्ञान बड़ा संसार में,
इससे बड़ा न कोय।
ज्ञान की ज्योति जब जगें,
तो दूर अन्धेरा होय॥2342॥
क्रमश: