अभी हाल ही में भारतीय आदर्श इंटर कॉलेज तिलपता करनवास में संपन्न हुए उत्तरप्रदेश आर्य वीर दल के सम्मेलन में आर्यवीरों की उपस्थिति सराहनीय रही। इसके सभी संयोजकों ने तन मन धन से इसे सफल बनाने का प्रयास किया। अनेक गणमान्य लोगों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस अवसर पर आर्यवीरों ने अपने करतब दिखाकर यह सिद्ध किया कि जिस उद्देश्य से प्रेरित होकर आर्य महापुरुषों ने इस दल का गठन किया था, उसके प्रति यह आज भी समर्पित है।
हम सभी भली प्रकार जानते हैं कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में आर्य वीरों का योगदान अप्रतिम रहा था। इस बात की पुष्टि 12 फरवरी 2023 को प्रधानमंत्री श्री मोदी ने इंदिरा गांधी स्टेडियम में स्वामी दयानंद जी महाराज की 200 वीं जयंती के कार्यक्रमों का शुभारंभ करते हुए अपने ओजस्वी भाषण में भी की थी।
आर्य वीर दल ने देश की रक्षा का संकल्प लेकर आगे बढ़ना आरंभ किया था। जिस समय भारत वर्ष में आर्य समाज राजनीतिक क्षेत्र के अलावा बौद्धिक क्षेत्र में भी देश का नेतृत्व करते हुए अनेक विधर्मीयों को शास्त्रार्थ के मंचों पर पराजित कर चुका था, उस समय हमारे अनेक आर्य योद्धाओं की हत्याएं की गई। तब राष्ट्रीय पटल पर यह मंथन आरंभ हुआ कि यदि इसी प्रकार आर्य नेताओं की हत्याएं होती रहीं तो अनर्थ हो जाएगा। इसलिए अपने आर्य सन्यासियों, महात्माओं, नेताओं की सुरक्षा को लेकर तत्कालीन आर्य नेतृत्व गंभीर हुआ। ज्ञात रहे कि उस समय हम 1926 में स्वामी श्रद्धानंद जी जैसे महान आर्य नेता को खो चुके थे। स्वामी श्रद्धानंद जी का उस समय जाना सचमुच आर्य जगत की नहीं संपूर्ण राष्ट्र की क्षति थी। आर्य समाज उन जैसे बलिदानी सन्यासी और क्रांतिकारी नेता की क्षतिपूर्ति आज तक नहीं कर पाया। उनके बलिदान के पश्चात उपजी परिस्थितियों पर विचार करते हुए आर्य नेताओं एक समर्पित विशेष बल की स्थापना करने की तैयारियां करनी आरंभ की।
तब यह निर्णय लिया गया कि 1927 ईस्वी में जब सार्वजनिक आर्य महासम्मेलन होगा तो उस समय इस विशेष समर्पित रक्षा दल की स्थापना की जाएगी। 1927 में प्रथम आर्य महासम्मेलन में महात्मा नारायण स्वामी जी की अध्यक्षता में आयोजित किया गया था। तब इसी महान और ऐतिहासिक अवसर पर आर्य रक्षा समिति का गठन किया गया ।
समिति का कार्य उस समय ऐसे युवकों की खोज करना था जो पूर्ण समर्पित भाव से आर्य नेताओं की सुरक्षा के साथ-साथ देश की आजादी की गतिविधियों में भी बढ़-चढ़कर भाग लेने के लिए अपने आपको आहूत करने के लिए तत्पर हों। समिति को ऐसे समर्पित 10,000 युवाओं का चयन करने का लक्ष्य दिया गया था। इसके अतिरिक्त रक्षा निधि के लिए 10,000 रुपया भी एकत्र करने की जिम्मेदारी समिति को दी गई थी।
उस समय आर्य समाज में सम्मिलित होना और देश के लिए इसके मंचों के माध्यम से काम करना गर्व और गौरव का विषय माना जाता था। पूरे देश में आर्य समाज की धूम मची हुई थी। स्वामी दयानंद जी महाराज के द्वारा रोपे गए इस पौधे को एक विशाल वृक्ष बनने में देर नहीं लगी। इस विशाल वृक्ष पर इतने अधिक फल लगे कि उनकी गिनती करना असंभव हो गया।
अंग्रेज गुरुकुल कांगड़ी जैसी संस्थाओं को उस समय आर्य समाज द्वारा देश धर्म और संस्कृति की रक्षा के लिए तैयार की गई एक फैक्ट्री कहने लगे थे। जिससे अनेक युवा निकले। जिन्होंने ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करते हुए देश धर्म की रक्षा करने को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया। ऐसी अनुकूल परिस्थितियों में समिति को जब 10000 युवाओं को तैयार करने का लक्ष्य दिया गया था और 10,000 ही रुपया इकट्ठा करने की जिम्मेदारी दी गई थी तो इन दोनों लक्ष्यों को पूर्ण करने में देर नहीं लगी। आर्य वीरों की संख्या तो 10000 के स्थान पर 12000 हो गई थी।
समिति ने स्वयंसेवकों के दल का नाम आर्यवीर दल’ रखा। इसके पश्चात 26 जनवरी 1929 को सार्वदशिक सभा ने इसका संविधान बनाकर ‘आर्यवीर दल’ की विधिवत स्थापना कर दी। जब अगले वर्ष आर्य वीरों ने अपने इस संगठन की प्रथम वर्षगांठ आयोजित की तो यह एक संयोग ही था कि कांग्रेस ने भी 26 जनवरी 1930 को पूर्ण स्वाधीनता दिवस के रुप में मनाया। वास्तव में कांग्रेस आर्य वीरों की देशभक्ति के चलते यह समझ चुकी थी कि यदि उसने देश की स्वाधीनता की मांग नहीं की तो सारा नेतृत्व उसके हाथों से खिसक कर आर्य वीरों के हाथों में जा सकता है। उससे पहले भी अनेक आर्य नेता कांग्रेस के मंच पर जाकर कांग्रेस के नेताओं की जुबान बंद कर चुके थे। इन आर्य नेताओं में स्वामी श्रद्धानंद जी का नाम अग्रगण्य है। जिन्होंने गांधीजी की अनेक नीतियों की उनकी उपस्थिति में आलोचना की थी।
श्री शिवचन्द्र जी आर्य वीर दल के प्रथम संचालक नियुक्त किए गए। अल्प काल में ही आर्यवीर दल ने अपनी कार्यक्षमता का प्रदर्शन करते हुए ऐसे अनेक कार्यक्रम और अभियान आयोजित किए जिनसे उसके नाम की सार्थकता सिद्ध हुई। जिसके फलस्वरूप आर्यों की शोभायात्रा, नगर कीर्तन और उत्सव निर्विघ्न सम्पन्न होने लगे। आर्यों की इस प्रकार की क्रांतिकारी गतिविधियों को देखकर विधर्मी यों को पसीना आ गया था। यही कारण था कि आर्य वीर दल की स्थापना से पहले जहां हमारे कई नेताओं की हत्या कर दी गई थी, अब उस प्रकार की हत्याओं पर विराम लग गया। आर्य नेताओं पर होने वाले आक्रमण रुक गए। जब 1940 में ओम प्रकाश त्यागी जी जैसे समर्पित शूरवीर, अदम्य साहसी नेता को आर्य वीर दल का संचालक नियुक्त किया गया तो उनके नेतृत्व में इस दल ने अप्रत्याशित उन्नति की।
नौआखली (पं.बंगाल) में जब मुस्लिम गुण्डों ने हिंदुओं का जीना कठिन किया और उन पर अनेक प्रकार के अत्याचार करने आरंभ किए तो आर्य वीर दल के ब्रह्मचारी युवकों ने कमर कस कर उनके अत्याचारों का प्रतिरोध किया। उस समय उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर हिंदू समाज के लोगों की रक्षा की। पाकिस्तान सीमा पार कर भारतीय चौकी पर आक्रमण करने आए अंसार गुण्डों से हमारे आर्य वीरों ने प्राणों की बाजी लगाकर संघर्ष किया और उनसे पाकिस्तानी ध्वज छीन कर उन्हें खदेड़ने में सफलता प्राप्त की। इसी प्रकार हिंदुओं पर अत्याचार करने के लिए प्रसिद्ध हो गए हैदराबाद निजाम के बैंक से 30 लाख रुपया लूट कर हमारे आर्य वीरों ने उसे सरदार पटेल को जाकर दिया था। उस समय कांग्रेस नवाब हैदराबाद जैसे किसी भी देशद्रोही का सामना करने या उसे देशभक्ति का पाठ पढ़ाने का साहस नहीं कर पा रही थी। इसके विपरीत इधर उधर से उन्हें सहयोग करने का ही काम कर रही थी तब आर्य समाज के आर्य वीरों ने जितने भर भी देशद्रोही नाग या सपोले उस समय घूम रहे थे, उन सब का कड़ाई से प्रतिरोध किया। इस प्रकार के अनेक वीरोचित कार्य आर्यवीरों ने करके दिखाए।
जब-जब भी देश में किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा आई ,अकाल पड़ा, सूखा पड़ा या पाकिस्तान जैसे किसी शत्रु देश से हमारा संघर्ष हुआ ,तब-तब आर्य वीर दल के आर्यवीरों ने अपनी देशभक्ति पूर्ण उपस्थिति दर्ज कराई। हैदराबाद के सत्याग्रह में आर्य वीर दल के अनेक ब्रह्मचारी उपस्थित रहे थे। जिनकी देशभक्ति और रक्षा कार्यों पर हर किसी देशभक्त को आज भी गर्व और गौरव की अनुभूति होती है। इसी प्रकार प0 बंगाल,असम,पंजाब व गुजरात की बाढ़ में हजारों पीड़ितों की सेवा व राहत कार्य भी आर्यवीरों ने किए।