अंकित सिंह
नागरिकता संशोधन अधिनियम अभी भी देश में लागू नहीं हो सका है। हालांकि, वर्तमान कि केंद्र सरकार का साफ तौर पर दावा है कि वह सीएए को वह जरूर लागू करेगी। पहले बताया जा रहा था इसे लागू करने में देरी की वजह कोरोना महामारी थी। हालांकि, अभी भी इसे लागू होने का इंतजार है। इसको लेकर बार-बार समय सीमा बढ़ाई जा चुकी है। इस वजह से अटकलों का दौर लगातार जारी है। इस अधिनियम को 2019 में पास किया गया था। इसके बाद देश के अलग-अलग हिस्सों में जबरदस्त बवाल देखने को मिला था। कई महीनों तक इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन हुए थे। बावजूद इसके सरकार इसे लागू करने पर कायम रही।
क्या है सीएए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में दोबारा 2019 में एनडीए की सरकार बनी। 11 दिसंबर 2019 को केंद्र सरकार की ओर से सीएए कानून को संसद में पास कराया गया था। 12 दिसंबर को इस पर राष्ट्रपति ने अपनी सहमति दे दी थी। तब गृह मंत्रालय ने अधिसूचना जारी करके कहा था कि 10 जनवरी 2020 को इसे लागू कर दिया जाएगा। हालांकि, अब तक यह लागू नहीं हो सका है। इस अधिनियम के तहत पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आने वाले हिंदू, सिख, पारसी, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी। हालांकि, 31 दिसंबर 2014 से पहले जो लोग बिना दस्तावेज के भारत आए थे उन्हें ही इसका लाभ होगा।
क्यों हुआ था विरोध
इस अधिनियम को लेकर साफ तौर पर कहा गया था कि यह मुसलमानों के खिलाफ है। विरोध करने वाले लोगों का दावा था कि यह कानून भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। अनुच्छेद 14 सभी को समानता की गारंटी देता है। आलोचकों ने साफ तौर पर कहा था कि धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। आरोप लगाया जा रहा था कि यह कानून अवैध प्रवासियों को मुस्लिम और गैर मुस्लिम में विभाजित करता है। साथ ही साथ यह भी सवाल उठाए गए थे कि इसमें पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के अलावा अन्य पड़ोसी देश का जिक्र क्यों नहीं है।
क्यों नहीं हो पा रहा लागू
देश में कोई भी कानून लागू होने से पहले संसद में पास होता है। उसके बाद इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलती है। सीएए के मामले में यह दोनों हो चुका है। बावजूद इसके अब तक यह लागू नहीं हुआ है। इसके लागू नहीं होने की वजह से इस इस कानून के नियमों के तहत अभी तक किसी को नागरिकता नहीं दी है। जिनके राहत के लिए यह कानून आया था, वह अभी भी इसका इंतजार कर रहे हैं। पहले केंद्र ने इसके नियम बनाने के लिए 6 महीने का समय मांगा था। लेकिन अभी तक 7 बार मोदी सरकार इसकी समय सीमा बढ़ा चुकी है। यही कारण है कि इसके नियम अब तक नहीं बन सके हैं।
भाजपा की रणनीति
सीएए को लगातार एनआरसी से जोड़कर देखा गया। दावा किया जाता रहा कि सीएए के बाद अगर एनआरसी लागू होता है तो मुसलमानों के लिए स्थिति खराब हो सकती है। सीएए कानून को विपक्ष के द्वारा anti-muslim के तौर पर पेश भी किया गया। पश्चिम बंगाल और असम में 2021 में विधानसभा के चुनाव हुए थे। इस दौरान भाजपा ने बढ़ चढ़कर कहा था इसे हर हाल में लागू किया जाएगा। इसके पीछे भाजपा की ध्रुवीकरण की रणनीति भी रही है। भाजपा हिंदुत्व की राजनीति करती है। पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से भारी संख्या में अवैध मुस्लिम आकर रह रहे हैं। राजनीति में भी इनका असर हो चुका है। इन अवैध नागरिकों की वजह से स्थानीय लोगों खास करके भारत के मूल निवासियों को परेशानी होती है। यही कारण है कि भाजपा ने सीएए को चुनावों में बड़ा मुद्दा बनाया था।
वर्तमान में देखें तो चुनाव नहीं है। सीएए पश्चिम और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में ज्यादा प्रभाव डाल सकता है। भाजपा अवैध घुसपैठ को लेकर लगातार सवाल उठाती रहती है जिसकी वजह से हिंदुओं का वोट लामबंद होकर उसे मिल सके। हाल में ही हमने देखा है कि कैसे 2024 चुनाव के नजदीक आने के साथ ही समान नागरिक संहिता का मुद्दा भाजपा जोर-शोर से उठा रही है। देश में इस पर चर्चा भी होने लगी है। राजनीति में राजनीतिक दल ऐसे मुद्दे लगातार उठाते रहते हैं जिनसे उन्हें वोट बैंक की पॉलिटिक्स में फायदा हो सके। जनता भी राजनीतिक दलों के वादे और इरादे को भांपते हुए अपने निर्णय लेती है। यही तो प्रजातंत्र है।