गुरु पूर्णिमा का पर्व –
गुरु पूर्णिमा का पर्व –
Dr DK Garg
भाग 1,ये लेख तीन भाग मे है,पूरा पढ़े और शेयर भी करे
गुरु के लिए श्रद्धा व्यक्त करने और सम्मान देने के लिए हमारे देश भारत में दो पर्व मनाये जाते है –
१ टीचर्स डे -ये सभी विद्यालयो में पूर्व राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णनन के सम्मान मे मानते है
२ गुरु पूर्णिमा -ये भी अन्य पर्व की भांति एक सामाजिक पर्व है -जो गुरु के सम्मान में मानाया जाता है
पहले पर्व को लेकर कोई भ्रान्ति नहीं है। लेकिन दुसरे पर्व को लेकर कई प्रश्न सामने आते है -पहला प्रश्न ये की गुरु कौन ? जिसको सम्मान देने के लिए वर्ष में एक विशेष दिन चुना गया है वह भी आषाढ़ मास की पूर्णिमा । ये दिन इसलिए भी विशेष है क्योकि इस दिन चन्द्रमा का अकार सबसे बड़ा होता है और चन्द्रमा की मोहक किरणें पृथ्वी पर अपनी अनुपम छटा बिखराती है जो वायु द्वारा वनस्पतियो को सुगन्धित , पौष्टिक और गुणकारी बनाता है।
गुरु पूर्णिमा पर्व कब और कैसे स शुरु हुआ ?
इस विषय में कोई एक विचार नहीं है। कहते है की ये एक प्राचीन पर्व है लेकिन अंग्रेजी राज में और मुग़ल काल में धीरे धीरे ये पर्व विलुप्त सा हो गया लेकिन इस उत्सव को महात्मा गांधी द्वारा अपने आध्यात्मिक गुरु श्रीमद राजचंद्र को श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए पुनर्जीवित किया गया था। इस पर्व के पीछे की मान्यता भी अलग अलग है –
१ एक मान्यता ये है की इस दिन ऋषि वेद व्यास का जन्मदिन है इसलिए इसे व्यास पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है।
२ यह त्यौहार बौद्धों द्वारा बुद्ध के सम्मान में मनाया जाता है जिन्होंने इस दिन सारनाथ , उत्तर प्रदेश , भारत में अपना पहला उपदेश दिया था ।
नेपाल में साथी भक्त, ट्रीनोक गुहा भाई (शिष्य-भाई), अपनी आध्यात्मिक यात्रा में एक-दूसरे के प्रति एकजुटता व्यक्त करते हैं।
३ यह दिन नेपालियों के लिए शिक्षक दिवस है। छात्र अपने शिक्षकों को व्यंजन, मालाएँ और स्वदेशी कपड़े से बनी टोपी नामक विशेष टोपियाँ देकर सम्मानित करते हैं ।
४ जैन परंपराओं के अनुसार,गुरु पूर्णिमा को त्रीनोक गुहा पूर्णिमा के रूप में जाना जाता है, जिसमें त्रीनोक गुहा और शिक्षकों को विशेष सम्मान दिया जाता है। यह दिन चतुर्मास की शुरुआत में पड़ता है।इस दिन, भगवान महावीर ने कैवल्य प्राप्त करने के बाद , गौतम स्वामी को अपना पहला शिष्य ( गणधर ) बनाया और इस प्रकार वे स्वयं त्रीनोक गुहा बन गए।
५ एक अन्य विचार के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरम्भ में आती है। इस दिन से चार महीने तक परिव्राजक साधु-सन्त एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान की गंगा बहाते हैं।ये चार महीने मौसम की दृष्टि से भी सर्वश्रेष्ठ होते हैं। और गुरु-चरणों में उपस्थित साधकों को ज्ञान, शान्ति,भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति मिलती है।
इस विषय में किसी पचड़े में पड़ने के बजाय केवल ये कहना ही उचित होगा की विशेष पर्व भारतीय संस्कृति और संस्कारो का पर्व है।हमारी संस्कृति अत्यंत विशाल है जिसमे समाज के सभी वर्गों के सम्मान दिया है जैसे विश्वकर्मा पर्व पर सभी दस्तकारों /शिल्पियों को सम्मान देते है,गोवर्धन पर्व पर सभी ग्वाले और गौ को सम्मान देने की परम्परा है,शरद पूर्णिमा आदि सांस्कृतिक पर्व है जिसमे गुरुओ को सम्मान देने की प्रथा है जिनका ज्ञान तिमिर को दूर करके ज्ञान चक्षु खोलता है।
विश्लेषण : सबसे पहले कुछ शब्दार्थ समझ लेना जरुरी है :
आचार्य : वेदो में आचार्य ईश्वर की भी कहा है । चर गतिभक्षणयोः ' आङ्पूर्वक इस धातु से ‘आचार्य्य’ शब्द सिद्ध होता है। ‘य आचारं ग्राहयति, सर्वा विद्या बोधयति स आचार्य ईश्वरः’ जो सत्य आचार का ग्रहण करानेहारा और सब विद्याओं की प्राप्ति का हेतु होके सब विद्या प्राप्त कराता है, इससे परमेश्वर का नाम ‘आचार्य’ है।
ग शब्दे ” इस धातु से ‘गुरु’ शब्द बना है। ‘यो धर्म्यान् शब्दान् गृणात्युपदिशति स गुरुः’ ‘स पूर्वेषामपि गुरुः कालेनानवच्छेदात्’। योग०। जो सत्यधर्मप्रतिपादक, सकल विद्यायुक्त वेदों का उपदेश करता, सृष्टि की आदि में अग्नि, वायु, आदित्य, अंगिरा और ब्रह्मादि गुरुओं का भी गुरु और जिसका नाश कभी नहीं होता, इसलिए उस परमेश्वर का नाम ‘गुरु’ है।
इस अलोक में गुरुकुल में धर्म आदि की शिक्षा देने वाले शिक्षक को भी आचार्य कह सकते है ,लेकिन उनकी ईश्वर से तुलना नहीं करनी चाहिए।
गुरु : वेदो में ईश्वर को गुरु भी कहा है।