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कविता

अर्जुन बोला कृष्ण से, …..

कुंडलियां … 7

अर्जुन बोला कृष्ण से,…

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चित्त के चिंतन से मिले, शंका का समाधान।
विचित्र चित्रकार है, रखता अद्भुत ज्ञान।।
रखता अद्भुत ज्ञान, मनुज की तड़प मिटाता।
यही चित्त की एकाग्रता, शंका दूर भगाता।।
बार-बार संशय उठें, और चित्त रहे बेचैन ।
मनुज भटकता व्यर्थ ही दुनिया में दिन रैन।।

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अर्जुन बोला कृष्ण से, मनुज करे क्यों पाप ?
मन मलीन लिए घूमता, हिय रखता संताप।।
हिय रखता संताप, किससे यह प्रेरित होता ?
मनुज करता पाप रात दिन नहीं चैन से सोता।।
नहीं समझ में आता बंधु! किसने खेल रचाया?
मोक्ष प्रेरित आत्मतत्व को किसने व्यर्थ फंसाया?

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कृष्ण बोले पार्थ से , भारी शत्रु काम।
मल से दर्पण ज्यों ढंके, इससे ढकता ज्ञान।।
इससे ढकता ज्ञान, शत्रु ज्ञानी का भारी।
इंद्रियां, मन, बुद्धि में रह, विनाश करता भारी।।
कामरूप शत्रु को मारो, है सबसे बड़ा उत्पाती।
इसके कारण मिट जाती है बड़ों बड़ों की ख्याति।।

दिनांक : 24 जून 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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