ओ३म्
-आर्यसमाज धामावाला देहरादून का रविवारीय सत्संग-
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आर्यसमाज धामावाला, देहरादून के साप्ताहिक सत्संग में आज रविवार दिनांक 18-6-2023 को हरिद्वार से पधारे आर्यविद्वान आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी का ओजस्वी व्याख्यान हुआ। उनके व्याख्यान से से पूर्व यज्ञशाला में पं. विद्यापति शास्त्री के पौरोहित्य में वृहद यज्ञ हुआ। यज्ञ में अन्य बन्धुओं सहित आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी भी उपस्थित थे। यज्ञ के बाद आर्यसमाज के पुरोहित पं. विद्यापति शास्त्री जी के दो भजन हुए। प्रथम भजन के बोल थे ‘प्रभु तुम अणु से भी सूक्ष्म हो प्रभु तुम गगन से विशाल हो। मैं मिसाल दूं तुम्हें कौन सी प्रभु तुम बेमिसाल हो।।’ पण्डित जी द्वारा प्रस्तुत दूसरे भजन के बोल थे ‘प्रभु सारी दुनिया से ऊंची तेरी शान है, कितना महान् है तू कितना महान् है।’ भजन के बाद आर्यसमाज के वयोवृद्ध सदस्य श्री ओम्प्रकाश नागिया जी ने सामूहिक प्रार्थना कराई। इसके बाद सत्यार्थप्रकाश के चैहदवें समुल्लास का पाठ पं. विद्यापति शास्त्री जी ने कराया। आज के सत्संग में मुख्य व्याख्यान आचार्य शैलेशमुनि सत्यार्थी जी, आर्य वानप्रस्थ आश्रम, हरिद्वार का हुआ।
श्री शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने अपने व्याख्यान में कहा कि परमात्मा सबसे महान है। उसकी शान सबसे अधिक निराली व ऊंची है। पुष्पों को सुगन्ध प्रभु ने दी है। पुष्पों को सुगन्ध देने का कार्य कोई मनुष्य व महापुरुष कदापि नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि इस संसार में गृहस्थ आश्रम ही सभी सामाजिक व अन्य रोगों की एकमात्र औषधि है। उन्होंने अपने इस कथन के समर्थन में विस्तार से प्रकाश डाला और अनेक उदाहरण भी दिए। आचार्य सत्यार्थी जी ने कहा समाज के इतर तीन आश्रमों का निर्वाह गृहस्थ आश्रम से होता है। आचार्य जी ने सभी धर्मप्रेमी श्रोताओं को अपने-अपने गृहों में नित्यप्रति देवयज्ञ अग्निहोत्र करने की प्रेरणा की। उन्होंने कहा कि यज्ञ करने से हमारे प्राण तथा जीवन सुरक्षित रहता है। आचार्य जी ने कहा कि यज्ञ करने से सभी देवताओं का पूजन हो जाता है। उन्होंने सबको सलाह दी कि आप स्वस्थ एवं निरोग रहने के लिए प्रतिदिन यज्ञ करें।
आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी ने सबके साथ संगतिपूर्वक रहने की सलाह दी और कहा कि सबसे संगतिपूर्वक व्यवहार करें। उन्होंने बताया कि यज्ञ करने से मनुष्य की सभी कामनायें पूर्ण होती हैं। आचार्य जी ने कहा कि जहां-जहां संगतिकरण होता है वहां-वहां सुख होता है और आनन्द की वर्षा होती है। आचार्य जी ने एक सत्य घटना पर आधारित उदाहरण देते हुए बताया कि मनुष्य अपने शरीर की जिस-जिस इन्द्रिय से जो पाप करता है उसे उस-उस इन्द्रिय से दुःख को भोगना पड़ता है। उन्होंने समझाया कि हम अपनी आंख, नाक, कान, मुंह आदि नाना इन्द्रियों से जो पाप कर्म करते हैं उनका फल हमें इन्हीं इन्द्रियों में होने वाले दुःखों के रूप में भोगना पड़ता है। उन्होंने इसका एक उदाहरण उनके साथ जुड़े एक परिवार के एक व्यक्ति के जीवन से जुड़ी घटना को प्रस्तुत कर वर्णन किया। इस व्याक्ति के बुरे आचरण के कारण उसके बड़े भाई, एक अन्य व्यक्ति एवं पत्नी की मृत्यु हुई थी। आचार्य जी का यह उपदेश अत्यन्त प्रेरक, प्रभावशाली एवं ज्ञानवर्धक था। आर्यसमाज के प्रधान श्री सुधीर गुलाटी जी ने आज के सुन्दर व्याख्यान के लिए आचार्य शैलेश मुनि सत्यार्थी जी की प्रशंसा की और उनका धन्यवाद किया। आर्यसमाज के मंत्री श्री नवीन भट्ट जी ने सत्संग का योग्यतापूर्वक संचालन किया।
-मनमोहन कुमार आर्य