समझ में नही आता, राष्ट्रीय पर्वों का औचित्य।
क्यों आते हैं बार बार, क्यों मनाए जाते हैं हर बार।।
अनशन, हड़ताल, उग्रवाद, देश में हावी है आतंकवाद।
भ्रष्टाचार, महंगाई, दंगे, फसाद, भुखमरी।।
यही तो धरोहर है स्वाधीनता की।
इसके अलावा मिला क्या है,
देश की गरीब जनता को आजादी से।।
हर पांच साल में कागज पर कलम से।
सभाओं में जोश और इलम से।।
गरीबी मिटाते मिटाते, नेता खुद मिट गये।
कितनी सरकारें मिट गयीं और मिट रही हैं।
लेकिन गरीब और गरीबी जहां थी वहां है।
दल बदले दल वाले बदले,
चेहरे बदले सरकारें बदलीं

-गाफिल स्वामी

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