डॉ डी के गर्ग
एक निश्चित अवधि के लिए भोजन और पेय पदार्थों को त्यागने की क्रिया को उपवास (fasting) कहा जाता है। दूसरे शब्दों में अन्न और जल न ग्रहण करने की क्रिया उपवास कहलाता है।
लेकिन शारीरिक कारणों को छोड़कर धार्मिक या अन्य किसी संकल्प के कारण किसी निश्चित अवधि के लिए भोजन ,जल आदि ग्रहण नही करना व्रत के श्रेणी में आता है।
हमारे शास्त्रों के अनुसार ईश्वर भक्ति के नाम पर भूखे रहना या प्यासे रहना धर्म का नहीं अन्ध विश्वास का प्रतीक है,सही मायने में मूर्खता है क्योंकि यदि शरीर को जरूरत के अनुसार भोजन पानी नहीं देंगे तो ये शरीर भी आपका साथ नही देगा। जैसे कि जून में गर्मी अपने चरम पर होती है और आप इस समय जबरन उपवास रखे जबकि इन दिनों में शरीर को अधिक पानी चाहिए। इस समय उपवास रखना धर्म नहीं है।
एकादशी का व्रत क्या है ? एकादशी क्या है इसे समझ लीजिए। हमारे शरीर में पाँच ज्ञानेन्द्रिय और पाँच कर्मेन्द्रिय तथा एक मन―ये ग्यारह तत्व होते हैं ।इन सबको ठीक रखना और अपने वश में रखना बहुत जरूरी है जैसे कि आँखों से शुभ देखना, कानों से शुभ सुनना, नासिका से अच्छी स्वास लेते रहना, वाणी से मधुर बोलना, जिह्वा से शरीर को बल और शक्ति देने वाले पदार्थों का ही सेवन करना, हाथों से उत्तम कर्म करना, पाँवों से उत्तम सत्सङ्ग में जाना, जीवन में ब्रह्मचर्य का पालन करना―यह है सच्चा एकादशी-व्रत।
व्रत और उपवास का सही अर्थ-
व्रत का सही अर्थ 🌷
व्रत के विषय में लोगों में बड़ी भ्रान्ति है।कोई एकादशी व्रत रखता है,कोई त्रयोदशी का,कोई चौथ का।
पहली बात यह है कि भूखा रहने का नाम व्रत नहीं है।भोजन करने में क्या आपत्ति है।व्रत मानसिक है और भोजन शारीरिक।बिना भोजन के शरीर नहीं रह सकता।अतः जब तक शरीर को भोजन की आवश्यकता है भोजन अवश्य करना चाहिए।
व्रत मानसिक कर्म है अतः भोजन करने से कोई फर्क नहीं पड़ता।मानसिक इसलिए है -व्रत का अर्थ है सत्य और धर्म पर चलने के लिए मन में पक्का इरादा करना।यदि आज मैं अपने मन में ठान लूं कि आज से कभी झूठ नहीं बोलूंगा या कोई बुरा काम न करुंगा तो इसका नाम है व्रत।यदि ऐसा व्रत करके कोई झूठ बोले तो उसका व्रत खण्डित हो जाता है।खाना खा लेने से व्रत खण्डित नहीं होता।
व्रत का अर्थ यजुर्वेद में बहुत स्पष्ट रुप में बताया गया है। देखिए―
अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छकेयं तन्मे राध्यताम्।
इदमहमनृतात्सत्यमुपैमि।।―(यजु० 1ध्5)
भावार्थ―हे ज्ञानस्वरुप प्रभो! आप व्रतों के पालक और रक्षक हैं। मैं भी व्रत का अनुष्ठान करुँगा। मुझे ऐसी शक्ति और सामर्थ्य प्रदान कीजिए कि मैं अपने व्रत का पालन कर सकूँ। मेरा व्रत यह है कि मैं असत्य-भाषण को छोड़कर सत्य को जीवन में धारण करता हूँ।
इस मन्त्र के अनुसार व्रत का अर्थ हुआ किसी एक दुर्गुण, बुराई को छोड़कर किसी उत्तम गुण को जीवन में धारण करना।
स्वार्थी लोगों ने व्रत के झूठे किस्से गढ़ कर नर-नारियों को भ्रम में डाल रक्खा है।एकादशी के दिन भूखा रहने से कोई स्वर्ग को नहीं जा सकता,न खा लेने से नरक को जाता है।
हाँ !इतना अवश्य है कि जब कोई साधु या अतिथि तुम्हारे घर आवे तो उसको बिना खिलाये स्वयं खाना नहीं चाहिये।
वृत को लेकर एक भ्रम :-
‘करवा चौथ'(कार्तिक मास की चतुर्थी) को जो स्त्री भोजन करती है वह अपने पति का अनिष्ट करती है।
यह भी कपोल कल्पना है।हर स्त्री को पतिव्रत धर्म का पालन करना चाहिये।परन्तु भोजन कर लेने से पति को कोई हानि नहीं होती।बुरी बात का चिन्तन करने में दोष है।पति की सेवा करना हर स्त्री का धर्म है।
उपवास का भी ऐसा ही अर्थ है―
‘उपवास’ वस्तुतः संस्कृत का शब्द ‘उपवास’ है।उपवास कहते हैं ‘पास बैठने को’।जब तुम्हारे घर कोई विद्वान या महात्मा आवे तो तुम उसका आदर करो।उसके पास बैठकर उससे उपदेश लो।यदि हम वैदिक सत्संग में जाते हैं वही उपवास है।यदि आप लोग ध्यानपूर्वक वेदों की शिक्षा सुनेंगे और उसके अनुकूल आचरण करने का निश्चय करें तो यही ‘व्रत’ होगा।यही ‘उपवास’ होगा।
उपनिषद में लिखा है
उप समीपे यो वासो जीवात्मपरमात्मयोः।
उपवासः स विज्ञेयो न तु कायस्य शोषणम्।।―(वराहोपनिषद् 2ध्39)
भावार्थ―जीवात्मा का परमात्मा के समीप होना,परमात्मा की उपासना करना, परमात्मा के गुणों को जीवन में धारण करना,इसी का नाम उपवास है।
शरीर को सुखाने,कमजोर करते जाने का नाम उपवास नहीं है।
उपवास के नुकसान;
आमतौर पर व्रत या उपवास रखने के जितने फायदे होते हैं उससे ज्यादा नुकसान भी हैं। आइये जानते हैं कि उपवास रखने से आपको क्या क्या नुकसान हो सकता है।
व्रत या उपवास रखने के दौरान जब अधिक समय तक पेट में किसी तरह का भोजन या पेय पदार्थ नहीं जाता है तो मस्तिष्क में कुछ खतरनाक रसायन बनते हैं जिसके कारण आपको गंभीर सिरदर्द हो सकता है। आमतौर पर सिरदर्द के कई कारणों में उपवास भी एक मुख्य कारण है।
उपवास रखने से शरीर में ऊर्जा की कमी हो जाती है जिसके कारण आपको जी मिचलाने, चक्कर आने या फिर कमजोरी की समस्या हो सकती है। इसलिए यदि आपके शरीर में खून की कमी (khoon ki kami) हो या फिर आप पहले से ही बहुत कमजोर हों तो आपको उपवास रखने का नुकसान हो सकता है।
अक्सर देखा जाता है कि व्रत या उपवास के दौरान व्यक्ति अधिक चिड़चिड़ेपन (irritation) का शिकार हो जाता है और उसे गुस्सा भी बहुत ज्यादा आता है। इसलिए अगर आप गुस्सैल स्वभाव के हों तो आपको व्रत या उपवास (upvas) नहीं रखना चाहिए।
व्रत या उपवास के दौरान व्यक्ति के शरीर में आवश्यक हार्मोन (important hormone) और रसायन कम मात्रा में बनते हैं जिसके कारण आपको अधिक ठंड लग सकती है, शरीर में सिरहन हो सकती है और बुखार भी आ सकता है।
उपवास रखने से आपको पेट में गैस, एसिडिटी, सीने में जलन (heartburn) और पेट फूलने की भी समस्या हो सकती है।
उपवास के स्वास्थ्य लाभ :ये लाभ उपवास के है , व्रत के नही .उपवास में काम भोजन करना ,या बिलकुल नहीं खाना होता है ताकि शरीर की शुद्धि की जा सके।
शोधकर्ताओं का मानना है कि उपवास रखने से पाचन तंत्र को आराम मिलता है जिसके कारण मेटाबोलिज्म बेहतर और मजबूत होता है और अधिक कैलोरी नष्ट करने के लिए शरीर को सक्रिय करता है। यदि आपका पाचन खराब है, तो यह भोजन को पचाने और वसा को जलाने की आपकी क्षमता को प्रभावित कर सकता है। जबकि उपवास आपके पाचन को विनियमित कर सकता है और आंत की क्रियाओं (bowel function) को स्वस्थ रखने का काम करता है। यही कारण है कि उपापचय की क्रियाओं को बेहतर रखने के लिए उपवास रखना लाभदायक होता है।
संक्षेप में लाभ इस तरह से है;
1.शरीर को डिटॉक्सीफाई करे उपवास के फायदे में शरीर को साफ करना शामिल है। …
2.वजन कम करे आज के समय में अधिकतर लोगों की परेशानी मोटापा है।
3.पाचन तंत्र के लिए फायदेमंद …
स्किन के लिए भी है लाभकारी …
4.कोलेस्ट्रॉल को कम करता है
5.ब्लड शुगर कम करने के लिए …
मानसिक और भावनात्मक लाभ