डा. राधे श्याम द्विवेदी
श्री अयोध्या धाम के सिद्ध हनुमान बाग के हनुमान जी को आज महर्षि वशिष्ठ स्वशासी मेडिकल कॉलेज बस्ती के सह प्रोफेसर डा. तनु मिश्र और डा. सौरभ द्विवेदी के सुपुत्र बालक ध्रुव को अन्नप्राशन की प्रक्रिया सम्पन्न हुआ।अन्नप्राशन संस्कार परिवारी जन रिश्ते के मान्य जन तथा विद्वान आचार्यों के सानिध्य में सम्पन्न हुआ। प्रभु श्री हनुमान जी को छप्पन भोग लगाया गया । हनुमान बाग मंदिर के विशाल सभा मंडप पर संत श्री ज्ञान प्रकाश उपाध्याय के श्री मुख से राम चरित मानस के बालकांड के श्री रामजी के जन्म की संगीतमय कथा का रस प्रवाह भी हुआ.
छप्पन भोग की विविध कथाएं :-
छप्पन भोग को लेकर पौराणिक ग्रंथों में कई कथाएं प्रचलित हैं. भगवान के इस भोग को अन्नकूट भी कहा जाता है. इसमें कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा ये छह रस या स्वाद होते हैं। इन छह रसों के मेल से अधिकतम 56 प्रकार के खाने योग्य व्यंजन बनाए जा सकते हैं।
छप्पन भोग की कहानी -1
इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया था तब उन्हें लगातार सात दिन भूखा रहना पड़ा था। इसके बाद उन्हें सात दिनों और आठ पहर के हिसाब से 56 व्यंजन खिलाए गए थे। माना जाता है तभी से ये ’56 भोग’ परम्परा की शुरुआत हुई।
छप्पन भोग की कहानी -2
गौ लोक में श्रीकृष्ण और राधा एक दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की तीन परतों में 56 पंखुड़ियां होती हैं।प्रत्येक पंखुड़ी पर एक प्रमुख सखी और बीच में भगवान विराजते हैं। इसलिए 56 भोग लगाया जाता है।
छप्पन भोग की कहानी -3
56 बारातियों के समलित होने के कारण ये नाम:-
श्रीकृष्ण की बारात में बने थे 56 भोगभोग शास्त्रों में यह भी कहा गया है कि जब भगवान बारात लेकर श्रीराधा रानी को ब्याहने बरसाना गए थे तो उऩकी बारात के स्वागत- सत्कार के लिए श्रीवृषभानजी की ओर से 56 भोग बनाए थे. इस विवाह समारोह में शामिल होने वाले सभी मेहमानों की संख्या भी 56 थी. श्रीकृष्ण को विवाह समारोह में 56 भोग समर्पित करने वाले 9 नंद, 9 उपनंद, 6 वृषभानु, 24 पटरानी और सखाओं का योग भी 56 था.
56 भोग में शामिल व्यंजनों के नाम:-
1) भक्त (भात),2) सूप (दाल),3) प्रलेह (चटनी),4) सदिका (कढ़ी),5) दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी),6) सिखरिणी (सिखरन),7) अवलेह (शरबत),8) बालका (बाटी) 9) इक्षु खेरिणी (मुरब्बा),10) त्रिकोण (शर्करा युक्त),11) बटक (बड़ा),12) मधु शीर्षक (मठरी),13) फेणिका (फेनी),14) परिष्टाश्च (पूरी),15) शतपत्र (खजला),16) सधिद्रक (घेवर)17) चक्राम (मालपुआ),18) चिल्डिका (चोला),19) सुधाकुंडलिका (जलेबी),20) धृतपूर (मेसू),21) वायुपूर (रसगुल्ला),22) चन्द्रकला (पगी हुई),23) दधि (महारायता),24) स्थूली (थूली)25. कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26. खंड मंडल (खुरमा), 27. गोधूम (दलिया), 28. परिखा, 29. सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30. दधिरूप (बिलसारू), 31. मोदक (लड्डू), 32. शाक (साग) 33. सौधान (अधानौ अचार), 34. मंडका (मोठ), 35. पायस (खीर) 36. दधि (दही), 37. गोघृत, 38. हैयंगपीनम (मक्खन), 39. मंडूरी (मलाई), 40. कूपिका 41. पर्पट (पापड़), 42. शक्तिका (सीरा), 43. लसिका (लस्सी), 44. सुवत, 45. संघाय (मोहन), 46. सुफला (सुपारी), 47. सिता (इलायची), 48. फल,
7. 49. तांबूल, 50. मोहन भोग, 51. लवण, 52. कषाय, 53. मधुर, 54. तिक्त, 55. कटु, 56. अम्ल.
भोग का समय – भोग के समय का खास ध्यान रखना चाहिए. जिस वक्त पूजा कर रहे हैं, उस वक्त भोग लगाना चाहिए. इसके लिए घर के सभी लोगों को साथ होना चाहिए. भोग लगाने के बाद भगवान के सामने कुछ देर तक उस भोग को रखें और फिर पूजा के बाद सभी लोगों में बांट देना चाहिए.
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