गुजरात में नरेन्द्र मोदी को जनता ने लगातार तीसरी बार अपना नेता चुन लिया है। उधर हिमाचल प्रदेश में वहां की जनता ने अपना निर्णय राजा बीरभद्र सिंह के पक्ष में दिया है। दोनों प्रदेशों में हुए चुनावों के परिणाम के बाद सर्वाधिक निराशाजनक बात ये है कि देश के दोनों बड़े राजनीतिक दल कांग्रेस और भाजपा इस जीत को अपनी जीत कहने की स्थिति में नही है। गुजरात नरेन्द्र मोदी को मिला भाजपा को नही, तो हिमाचल प्रदेश राजा बीरभद्र सिंह को मिला है कांग्रेस को नही। भाजपा हिमाचल प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली, जिसे राजा बीरभद्र सिंह ने अपने पक्ष में सफलतापूर्वक भुना लिया। जबकि उतनी ही समझदारी से नरेन्द्र मोदी गुजरात में सत्ता विरोधी लहर पैदा न होने देने में सफल रहे। दोनों नेताओं के सामने पार्टी नेतृत्व बौना पड़ गया और पार्टी गौढ़ हो गयी। नरेन्द्र मोदी के विषय में फिर एक बात विचारणीय है कि उनकी जीत और राजा बीरभद्र की जीत में बड़ा अंतर है। राजा बीरभद्र सिंह जीत तो गये हैं लेकिन हिमाचल से बाहर नही निकल पाएंगे जबकि नरेन्द्र मोदी की जीत का मतलब गांधी नगर से दिल्ली चलने की तैयारी करना है। अपने धन्यवाद भाषण में उन्होंने यद्यपि दिल्ली की ओर चलने का संकेत नही दिया, जिसे एक कुशल राजनेता की तरह वह छिपा गये निश्चय ही उनका यह गुण जनता की नजरों में उन्हें और बड़ा कर गया। उनके भाषण ने और उनके राजनीतिक चातुर्य ने दिल्ली की दूरी कम कर है। इस चुनाव से नरेन्द्र मोदी ने सिद्घ कर दिया है कि वे एक जमीन से जुड़े हुए राजनेता हैं और वह किसी भी प्रकार की जल्दबाजी में नही हैं, उन्हें पता है कि दिल्ली की दूरी तो कम हो गयी है लेकिन पहाड़ी की चोटी पर जितने नजदीक पहुंचते जाते हैं उतनी चढ़ाई कठिन होती जाती है। विभिन्न राजनैतिज्ञों और पार्टी के बड़े नेताओं के अहम की चोटियों को परास्त करना और पार्टी को किसी भी प्रकार के बिखराव से बचाकर चलना साथ ही संघ का विश्वास हासिल करना उनके विवेक, धैर्य और संयम की अग्नि परीक्षा लेने के लिए अभी शेष है। वह जानते हैं कि समर अभी शेष है, भाजपा के लिए समय थोड़ा है लेकिन इतना निश्चित है कि बड़ा निर्णय लेने के लिए उसे गांधीनगर से दिल्ली के बीच की दूरी को नापकर जल्दी निर्णय लेना चाहिए और प्रत्येक प्रकार के ऊहापोह की कैंचुली से बाहर आना चाहिए। पार्टी के बड़े नेता जनता की भावनाओं का सम्मान करें और हिंदुत्व के प्रतीक बनकर उभरें। नरेन्द्र मोदी को मिले जनसमर्थन के दृष्टिगत उन्हें भाजपा का भावी पीएम घोषित करें। समय की नजाकत को देखते हुए और भाजपा में नरेन्द्र मोदी की बढ़त को देखते हुए कांग्रेस और सपा मिलकर तथा सैक्यूलरिज्म के नाम पर कम्युनिष्ठ व कुछ अन्य पार्टियों का समर्थन हासिल करके भावी पीएम के लिए किसी मुस्लिम का नाम चलाकर मुस्लिम मतों का धु्रवीकरण अपने पक्ष में करा सकते हैं। यदि कांग्रेस के समर्थक दलों की यह योजना सफल होती है तो इसके लिए भाजपा के बड़े नेताओं की अहम केन्द्रित होने की भावना जिम्मेदार होगी। यह ठीक है कि लोकतंत्र में प्रत्येक व्यक्ति को बड़े से बड़े पद पहुंचने का अधिकार है तो यह अधिकार किसी मुस्लिम को भी मिल सकता है। हम इस बात के विरोधी नही हैं लेकिन राष्ट्र बड़े नेताओं की परीक्षण स्थली भी नही है किसी भी नेता या किसी भी पार्टी को यहां पर बार-बार और नये-नये परीक्षणीय प्रयोग करने के लिए खुला नही छोड़ा जा सकता और न ही उन्हें इस प्रकार की स्वतंत्रता देने के लिए जनता इच्छुक है। नरेन्द्र मोदी ने अपनी कार्यशैली से सिद्घ कर दिया है कि देश में प्रत्येक व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का संरक्षण होना चाहिए, लेकिन किसी का तुष्टिकरण राष्ट्र के प्रति अक्षम्य अपराध है। बात विकास की हो मजहब के नाम पर विनाश की नही। जबकि जम्मू कश्मीर में हमले मुस्लिम मुख्यमंत्रियों के रहते हुए। 65 साल के लंबे परीक्षण काल में भली प्रकार देख लिया है कि वहां पर हिंदुओं की क्या स्थिति है इसलिए हमें समझना चाहिए-
एक ही अनुभव हुआ है आदमी की जात से।
जिंदगी काटे नही कटती महज जज्बात से।।
आह भरने से नही होता सय्याद पर कोई असर।
टूटता पाषाण है, पाषाण के आघात से।।
जनता निर्णय ले चुकी है और गुजरात के माध्यम से भाजपा को अपना निर्णय सुना भी चुकी है। अगर भाजपा इस निर्णय को समझ नही पा रही है तो यह कदम भाजपा के लिए आत्मघाती और देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा। भाजपा निर्णायक क्षणों को उसी विवेकपूर्ण ढंग से समझने का प्रयास करे कि समय के सिर पर आगे की ओर बाल होते हैं पीछे की ओर वह सपाट पड़ा होता है। समझदार लोग समय को पहचानते हैं और पहचानकर उसी के अनुसार निर्णय लेते हैं। झूठे अहम को स्वाभिमान का बहम समझकर जो अकड़ कर खड़े रहते हैं वो काल के कपाल पर नया गीत नही लिख पाते। बल्कि काल उन्हें अपने विकराल गाल में समाविष्ट कर लेता है। भाजपा इस बात को समझे। भाजपा का नारा सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का रहा है, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नारे की व्याख्या करते हुए भाजपा के नेताओं ने बार बार देश की जनता को समझाया है कि अमुक समय पर अमुक राजा या अमुक नेता ने अमुक निर्णय लिया तो उसके ये-ये घातक परिणाम आए। लम्हों की खता ने सदियों को सजा दिलाई लेकिन यदि भाजपा इस समय खुद निर्णय नही ले पाई तो वह स्वयं अपने लिये भी समझ ले-
लम्हों ने खता की थी, सदियों ने सजा पाई।
लेखक उगता भारत समाचार पत्र के चेयरमैन हैं।