हमारा अभिवादन क्या हो?*
भाग 2
Dr DK Garg
आजकल अभिवादन भी धर्म संप्रदाय,समुदाय और अमीरी गरीबी आदि के हिसाब से बट गए है।जैसे उदाहरण के लिए अधिकांश पढ़े लिखे लोग,दफ्तर और कालेजों में बच्चे से लेकर अभिवादन के लिए गुड मॉर्निंग का प्रयोग करते है। गुरुओं के चेले जैसे रविशंकर के चेले अभिवादन के लिए जय गुरु देव, इस्कॉन के अनुयाई हरे कृष्ण,मुस्लिम लोग सलाम वालेकुम,सिख सतश्री अकाल ,जैन लोग जय जिनेन्द्र और बौध जय भीम , निरंकारी समाज वाले धन धन निरंकार जी संतों,डेरा सच्चा सौदा से वाहे गुरु तेरा आसरा , इसके अलावा राम राम ,राधे राधे,जय श्री राम , जय भोले की आदि लगभग 120 तरह के अभिवादन प्रचलन में है .नमस्ते और नमस्कार लगभग 5 प्रतिशत ही बोलते है , इसीलिए कहा है की हमारा प्राचीन अभिवादन नमस्ते विलुप होता जा रहा है।
नमस्कार शब्द नमस्ते का बिगड़ा रूप है लेकिन कुछ लोग मानते हैं नमस्ते और नमस्कार दोनों का अर्थ एक ही है।दोनों का अर्थ एक ही तब कहा जाए जब ये एक दूसरे के पर्यायवाची हों।किंतु ये दोनों भिन्न अर्थ वाले शब्द हैं।
नमस्कार शब्द किसी भी साहित्य में नहीं मिलता है।
वेदों -शाश्त्रो में नमस्ते का प्रमाण : नमस्ते शब्द के ऋग्वेद में 2 संदर्भ है और सामवेद में भी 2 और अथर्ववेद में नमस्ते के 33 संदर्भ मिलते है ,जबकि अन्य कोई अभिवर्दन यह नहीं है।
उदाहरण के लिए=
• ज्येष्ठाये नम: -बड़ों को नमस्ते
• कनिष्ठाये नम: -छोटों को नमस्ते
• यामाचार्य ने नचिकेता को नमस्ते की – नमस्तेऽस्त् ब्रह्मण स्वस्ति मेऽस्तु ( कठोपनिषद )
• विश्वामित्र ने वसिष्ठ को नमस्ते की – नमस्तेऽस्तु गामिष्यामि ( बाल्मीकि रामायण )
• सीता ने राक्षस को नमस्ते की – नमस्ते राक्षसोत्तम (बाल्मीकि रामायण )
• देवयानि ने शुक्राचार्य को नमस्ते की – नमस्ते देहि मामस्मैं ( महा0 आदिपर्व )
• विदुर ने दुर्योधन को नमस्ते की – यथा तथा तेऽस्तु नमश्च ( महा0 सभा पर्व )
• अर्जुन ने कृष्ण को नमस्ते की – पुनश्च भूयोऽपि नमो नमस्ते ( महाभारत )
• कृष्ण ने धृतराष्ट्र को नमस्ते की – शिवेन पाण्डवान् ध्याहि नमस्ते ( महाभारत )
• ब्रह्मा ने अपने पुत्र को नमस्ते की – नमस्ते भगवन् रूद्र भास्करा मिततेजसे ( शिव.वायु. )
• गार्गी ने याज्ञवल्क्य को नमस्ते की – सा होवाच नमस्तेऽस्तु याज्ञवल्क्य (बृहद,)
• जनक ने याज्ञवल्क्य को नमस्ते की – नमस्तेऽस्तु याज्ञवल्क्यानु मा शाधीति ( बृहद)
प्राचीन अभिवादन से अनजान बनकर अपनी मनमानी करने वाले ढोंगी पण्डित या गुरूवादी सबने अपने-अपने हिसाब से अपना-अपना अभिवादन बना लिए है।
ये अभिवादन व्यक्तिवाचक , क्षेत्रीयवाचक , वर्गवाचक है जो साम्प्रदायिकता व संकीर्णता एवं जातिवाद को उभारने वाले होने से देश व समाज के लिए एक अलगाववादी राष्ट्रीय रोग है ,जिसका वायरस निरन्तर फैलता ही जा रहा है ।आज हमारे देश को पुनः सोने की चिड़िया कहलाने के लिए राष्ट्रीय एकता व अखण्डता की जरूरत है जो उपरोक्त अभिवादरनों के प्रयोग से खतरे में पड़ जाती है।
विभिन्न अभिवादनों के प्रयोग में कुछ लोगों का कहना है कि यह तो अपनी- अपनी विचार धारा है , विचारों का एक होना मित्रता को प्रगाढ़ करता है ।विचार धारा में अन्तर वैचारिक टकराव व मित्रता में दरार पैदा करके अलगाववाद को ही उत्पन्न करता ।
अत: हमें समस्त बेसिर पैर के अभिवादनों को त्याग कर भारतीय वैदिक सनातन-पुरातन अभिवादन नमस्ते का ही प्रयोग करना चाहिए
इसलिए नमस्ते शब्द का ही प्रयोग करें!