- डॉ. दीपक आचार्य
दुनिया का कोई भी कर्म ऐसा नहीं है जिसकी सफलता का रास्ता समस्याओं और परेशानियों से होकर न गुजरता हो। संसार में जो भी कर्म होते हैं उन्हें करने वालों का आत्मविश्वास और कर्म के प्रति अगाध निष्ठा ही वह प्रमुख कारक है जिसकी वजह से कर्म में सफलताओं को हासिल किया जा सकता है। दुनिया में बदलाव या समग्र सामाजिक परिवर्तन के लिए किए जाने वाले सारे कर्म हों या कुछ नवीन कार्य, इन सभी में प्रकृति और पूर्व से चल रहे प्रवाह पर विजय पाने का प्रतीकात्मक संदेश छिपा रहता है और यही कारण है कि सामान्य जिजीविषा वाले लोग परिवर्तन का इतिहास नहीं रच सकते बल्कि परिवर्तन का बीड़ा वे लोग ही उठा पाते हैं जिनका आत्मविश्वास और संकल्पशक्ति बेमिसाल हो। बदलाव की शुरूआत संघर्षों और समस्याओं से होती है। यों देखा जाए तो बुरे कर्मों के मामले में ये ज्यादा बाधक नहीं हुआ करते हैं लेकिन जब भी कोई व्यक्ति या समूह अथवा समुदाय कोई अच्छे कर्म करने की दिशा में जब भी कोई कदम उठाता है उसके साथ ही इस यात्रा को रोकने के लिए कई सारी समस्याएं और संघर्ष जाने कहाँ से सामने आ ही जाते हैं। कई समस्याओं का पूर्वानुमान होता है लेकिन ढेरों स्थितियों के बारे में सोचा तक नहीं होता। पर जमाने और प्रकृति का शाश्वत सत्य यही है कि हर प्रकार के अच्छे काम की शुरूआत के साथ ही कई सारी विषमताएं और समस्याएं हमारे सामने मुँह बाँये खड़ी हो जाती हैं। इसका मूल कारण यह भी है कि समस्याओं और नकारात्मकता की जड़ता अपने अस्तित्व को बनाए तथा बचाए रखना चाहती है और वह नहीं चाहती कि इसमें कोई बाधा आए, इसलिए वह स्वयं अपनी ओर से न्यूनाधिक बाधाएं सामने ले आती है। इनमें बहुत सी समस्याएं हमारा हौंसला पस्त करने को आती हैं जबकि कई समस्याएं और संघर्ष हमें लक्ष्य से भटकाव और आत्मविश्वास को डिगाने भर के लिए आती हैं। ऐसे में हमारा तनिक सा डगमगाना हमारे महान लक्ष्यों से हमें वंचित कर सकता है। सच तो यही है कि हर अच्छे काम को संघर्षों और समस्याओं के बलिदान की जरूरत होती है और जब तक ऐसे विषम हालातों की छाती पर चढ़कर आगे नहीं बढ़ा जाए तब तक सफलताओं के द्वार खुल ही नहीं पाते हैं। इसलिए हर समस्या और हर प्रकार के संघर्ष के लिए तैयार रहना और एक-एक कर सभी को कुचलते हुए आगे बढ़ते रहना ही हमारा ध्येय होना चाहिए। कई बार हमारे कर्मयोग की परीक्षा लेने के लिए भी ईश्वर समस्याओं को हमारी तरफ भेजा करता है। इसलिए हम सभी को चाहिए कि अपने लक्ष्य को सर्वोपरि रखें, लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में न रुकें, न झुकें और न कोई समझौते करें। एक बार संघर्षों और समस्याओं पर हमारे द्वारा विजय प्राप्त कर लिए जाने के बाद हमारा और लक्ष्य के बीच का फासला अपने आप काफी कम हो जाता है और तब सारी चुनौतियां बौनी हो जाती हैं। यह तय मानकर चलना होगा कि दुनिया में किसी भी महान कर्म या बदलाव का दौर आसानी से पूरा नहीं हुआ है। हरेक कर्म में कोई न कोई स्पीड़ब्रेकर या बाधाएं आती रही हैं। समस्याओं और किसी भी प्रकार के संघर्षों का सीधा सा मतलब यही है कि हमारी सफलताओं को पाने की डगर ठीक वही और सीधी है जो हमने सोच रखी है। लक्ष्य प्राप्ति के मार्ग में ऐसी विषमताएं सामने आने का साफ अर्थ यही है कि हम सफल होने के मार्ग पर आगे बढ़ चुके हैं। इसके ठीक विपरीत यदि हमारे किसी काम में कोई बाधा या संघर्ष सामने नहीं आए, तब हमें साफ तौर पर मान लेना चाहिए कि हम जिस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं वहां सफलता मिल पाना संदिग्ध है और लक्ष्य भी कोई असाधारण नहीं है। जीवन का कोई सा कर्म हो, व्यक्तिगत उत्थान की बात हो या सामुदायिक कल्याण की, या फिर समाज की कुरीतियों को मिटाने, सामाजिक कल्याण की अथवा किसी भी मामले में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने की बात हो, इन सभी में सामने आने वाली चुनौतियों और समस्याओं को सफलता का जनक ही माना जाना चाहिए। जब भी अच्छा काम करें, तब तैयार रहें चुनौतियों, समस्याओं और संघर्षों भरी स्थितियों के लिए। ये सारी हमें अपने लक्ष्य के प्रति और अधिक मजबूती देती हैं और इनसे होकर आगे बढ़ने पर जो सफलता पायी जाती है वही आशातीत और सफल होती है। जो लोग बाधक बनकर सामने आते हैं उनके प्रति भी घृणा का भाव न रखें क्योंकि अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहने के अभियान में कई दुष्ट लोगों के संहार या इन्हें शक्तिहीन करने का ईश्वरीय विधान भी हमारे साथ-साथ चलता है और ईश्वर भी चाहता है कि ऐसे दुष्ट लोगों की गति-मुक्ति हमारे ही पावन हाथों से हो, क्योंकि इसके लिए हमारे सिवा कोई दूसरा योग्यतम व्यक्ति हो ही नहीं सकता। फिर सफलता पाने के लिए निर्धारित मार्ग पर जमा कचरा हटाना भी तो हमारा ही दायित्व है। इस प्रकार ईश्वर ही यह तय करता रहता है कि हमारे मार्ग में आने वाले हरामखोरों, नरपिशाचों, विघ्नसंतोषियों और असुरों का शमन, ईलाज और उनकी मुक्ति हमारे पावन हाथों से किस प्रकार करनी है। सही अर्थों में मनुष्य वही कहा जा सकता जो इन बाधाओं, समस्याओं, निन्दाओं आदि को चुनौतियों के रूप में लेकर इन्हें परास्त करता हुआ आगे बढ़े। ईश्वर और प्रकृति या परिवेश से आनी वाली समस्त बाधाएं वे ही होती हैं जिनका समाधान मनुष्य के हाथ में होता है। इन्हीं से मुकाबला करने वाला परिपूर्ण मनुष्य के रूप में स्वीकारा जाता है। ऐसा नहीं है तो हम सारे आधे-अधूरे ही हैं।
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