-डॉ. अनिल सिंह बोले, संस्कृत लोकमंगल की भाषा
-डॉ. ओझा ने कहा, भारत को विश्वगुरू बनाने में संस्कृत सक्षम
पटना 13 जून। महर्षि वेदव्यास के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विचार-मंथन के साथ वेद-शास्त्र, उपनिषद, महाभारत, आदि धर्मग्रन्थों की व्याख्या। संस्कृति के संरक्षण के संकल्प और इन सबके मूल से जुड़ी संस्कृत भाषा को स्वयं समझने व सभी को समझाने पर जोर। इस तरह भारत के गौरवशाली अतीत की पुनर्स्थापना के लिए सर्वत्र संस्कृतं अर्थात जन-जन और हर घर-आंगन को संस्कृतमय बनाने पर बल। अवसर था महर्षि वेदव्यास की स्मृति को समर्पित अंतर्जालीय दशदिवसात्मक संस्कृत संभाषण शिविर के शुभारम्भ का। जो आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान एवं सर्वत्र संस्कृतं के अंतर्गत 22 जून तक चलेगा। जिसमें देश-दुनिया के दर्जनों संस्कृतज्ञों व संस्कृत साधकों ने विचार रखे और महर्षि के व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला। साथ ही सभी ने संस्कृत को अपने में एक सम्पूर्ण भाषा बताया।
उद्घाटन करते हुये आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान के प्रधान संरक्षक एवं विशेष सचिव गृह, उत्तर प्रदेश शासन डॉ. अनिल कुमार सिंह ने महर्षि वेदव्यास को धर्म-संस्कृति की ज्ञान-संत परम्परा का संस्कृत विद्वान बताया। कहा वेदव्यास कृत ग्रन्थों में आध्यात्म और भक्ति के साथ लोकमंगल का संदेश निहित है। कहा उनके ज्ञान का आधार संस्कृत भाषा ही रही। जिसमें विश्वमंगल का भाव समाया है और भारत को विश्वगुरु का गौरव दिलाने की क्षमता भी निहित है।
मुख्य अतिथि डॉ. मिथिलेश झा ने भारतीय महापुरुषों की स्मृति में लगातार प्रत्येक माह में संभाषण शिविरों के आयोजन के माध्यम से संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान की महत्ता को सराहा। कहा अन्य जन और संगठन भी इसका अनुकरण करें तो सर्वत्र संस्कृतं का स्वप्न-संकल्प शीघ्र साकार हो सकता है। पटना उच्च न्यायालय के अधिवक्ता उग्र नारायण झा ने वेदव्यास कृत महाभारत की चर्चा की और उसमें श्रीमद्भागवत के महत्व को रेखांकित किया।
अध्यक्षता करते हुये आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं संस्कृत संजीवन समाज पटना के महासचिव डॉ. मुकेश कुमार ओझा ने कहा कि भारत की गौरवशाली ज्ञान परम्परा का आधार विज्ञान सम्मत वेद, शास्त्र आदि ग्रंथ रहे हैं। जिनके मूल में भारतीय संस्कृति और संस्कृत भाषा है। कहा संस्कृत भाषा के ज्ञान से ही भारतीय धर्म-ग्रन्थों के सार को सही तरीके से समझा जा सकता है। डॉ. ओझा ने कहा कि महर्षि वेदव्यास ने एक महान संस्कृतज्ञ के रूप में भारतीय संस्कृति और दर्शन को देश-दुनिया में स्थापित किया। उसका अनुकरण करके भारत को विश्वगुरु के मार्ग की ओर ले जाया जा सकता है। डॉ. ओझा ने कहा कि महर्षि वेदव्यास के संस्कृत ज्ञान और धर्म-दर्शन से सीख लेकर भारतीय संस्कृति एवं संस्कृत को नयी ऊंचाइयों देकर संसार में उसका शंखनाद किया जा सकता है। इसके लिए सभी भारतीय जनों को प्राण-प्रण से जुटना होगा।
मुख्य वक्ता दिल्ली के संस्कृत प्रवक्ता डॉ. शैलेन्द्र कुमार सिन्हा, विशिष्ट अतिथि पटना के संस्कृत गीतकार डॉ. अनिल कुमार चौबे सहित स्वागताध्यक्ष का दायित्व संभालते हुये गंगादेवी संस्कृत महाविद्यालय, पटना की आचार्या डॉ. रागिनी वर्मा ने संयुक्त रूप से
महर्षि वेदव्यास के व्यक्तित्व व कृतित्व को सराहा और संस्कृत को विश्व मंच पर स्थापित करने पर बल दिया।
संस्कृत में सफल संचालन अभियान के संयोजक एवं अरविन्द महाविद्यालय दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक आचार्य पिन्टू कुमार ने किया। आभार हिन्दी विद्यापीठ पटना की श्रद्धा कुमारी ने जताया।
शिविर को गति देने के लिए देश से लेकर विदेश तक से भी संस्कृत साधक जुड़े। डॉ. संजीव कुमार, नालेज ग्राम इंटरनेशनल स्कूल की संस्कृत शिक्षिका सुषमा सिंह, अनुग्रह नारायण महाविद्यालय, बाढ़ विहार की छात्रा उपासना आर्य व मुजफ्फरपुर की अनामिका कुमारी, कृष्णा कांत मिश्र व चंद्रकांत मिश्र आदि ने विचार रखे। शिविर में पोर्टलैंड यूएसए से डा. मीनार नोल सहित दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत शोधार्थी विजेन्द्र सिंह व संस्कृत छात्रा नीलम खासा, सागर गौतम व रीमा, असम विश्वविद्यालय की संस्कृत शोधार्थी सुजाता घोष व वहीं के पवन छेत्री व रांची विश्वविद्यालय से संस्कृत पीएचडी डॉ. मनीषा बोदरा रहेंगी। साथ ही महाराष्ट्र से सुधीर गंगाधर पांडे व आयुष्मान वत्स, राजस्थान से अंशिका जैन व मोहनलाल खातिक, बंगाल से दीपशिखा घोष व जयंता सरकार, गुरूग्राम से प्रदीप श्रीवास्तव, मध्यप्रदेश से शुभम मिश्रा, उत्तर प्रदेश से डॉ. किरन प्रकाश, मथुरा से संस्कृत शिक्षिका प्रेमलता, हरदोई से शिवम अवस्थी आदि संस्कृत साधक सदस्य जुड़े। सभी ने एक स्वर से देश-दुनिया को संस्कृतमय बनाकर सर्वत्र संस्कृतं और आधुनिको भव संस्कृतं वद अभियान को साकार करने के संकल्प भी दोहराये।