राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ भारतीय क्रांतिकारी स्वाधीनता आंदोलन के एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जिनके नाम से ही क्रांति की मचलन अनुभव होने लगती है। जब वे स्वयं और उनके साथी क्रांति के माध्यम से देश को स्वाधीन करने के महान कार्य में लगे हुए थे तब पूरा देश अपने इन महान क्रांतिकारियों के पीछे खड़ा था। वास्तविक भारतीय स्वाधीनता आंदोलन का नेतृत्व रामप्रसाद बिस्मिल और उन जैसे क्रांतिकारियों के हाथों में ही था।
हमारे इस महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल जी का जन्म 11 जून 18 97 को उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में हुआ था । मात्र 30 वर्ष की अवस्था में 19 दिसंबर 1927 को उन्हें अत्याचारी ब्रिटिश सरकार के द्वारा फांसी दे दी गई थी। इस काल में ही उन्होंने ऐसे महान क्रांतिकारी कार्य किए जिससे उनका भारतीय स्वाधीनता आंदोलन के क्रांतिकारी इतिहास में नाम अमर हो गया। राम प्रसाद बिस्मिल की मान्यता थी कि अत्याचारी शासकों को कभी भी प्यार से समझा बुझाकर देश से बाहर नहीं निकाला जा सकता। उनके भगाने के लिए बलिदानों और क्रांति की आवश्यकता होती है। जिसके लिए देश के नौजवानों को हथियार लेकर सड़क पर उतरना ही चाहिए। पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का दर्शन था कि अंग्रेज को भगाने के लिए प्यार की आवश्यकता नहीं है बल्कि हथियार की आवश्यकता है। वे ‘सत्यमेव जयते’ के साथ-साथ ‘शस्त्रमेव जयते’ में भी विश्वास रखते थे।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की क्रान्तिकारी धारा के एक प्रमुख सेनानी थे। 30 वर्ष की आयु में वे मैनपुरी षड्यन्त्र व काकोरी-काण्ड जैसी कई घटनाओं में सम्मिलित होने के कारण भारतीय युवाओं के हृदय सम्राट बन चुके थे । बिस्मिल जी हिन्दुस्तान रिपब्लिकन ऐसोसिएशन के सदस्य भी थे।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल और उनके क्रांतिकारी साथियों के आवाहन पर उस समय देश के अनेकों युवा क्रांतिकारी आंदोलन में शामिल हो गए थे ।यदि उन क्रांतिकारी युवाओं की संख्या कांग्रेस सरकार सचमुच में देश को बता देती तो पता चल जाता कि देश के युवा गांधीजी की ओर उतने अधिक आकर्षित नहीं थे, जितने वह राम प्रसाद बिस्मिल जी और उन जैसे क्रांतिकारियों की गतिविधियों में सम्मिलित होकर अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे थे। इन क्रांतिकारी युवाओं में से अधिकांश ऐसे थे जिनके पास अपना गुजारा चलाने के लिए भी पैसे नहीं थे परंतु इसके बावजूद वे देश के लिए सर कटाने के जोश में भरकर क्रांति के माध्यम से देश को आजाद कराने की धुन में रमे हुए थे। आज हमें राम प्रसाद बिस्मिल जी जैसे क्रांतिकारियों के क्रान्ति दर्शन पर चिंतन करना ही चाहिए कि आखिर ऐसा उनके पास क्या आकर्षण या जादू था जिसके कारण हमारे युवा उनकी ओर आकर्षित होकर देश के लिए अपना सर्वस्व बलिदान करने के लिए तत्पर हो जाते थे ?
इन क्रांतिकारी युवाओं ने मिलकर असाधारण प्रतिभा और अखण्ड पुरुषार्थ के बल पर हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ के नाम से देशव्यापी संगठन खड़ा किया। जिसमें एक से बढ़कर एक वीर योद्धा क्रांतिकारी युवा सम्मिलित हुआ। इन युवाओं को दिन-रात बस एक ही चिंता रहती थी कि ब्रिटिश एंपायर भारत से कब समाप्त हो / और कब वे स्वाधीनता का उगता हुआ पहला सूरज देख पाएं ?
हमारे क्रांतिकारी रक्तपात और हिंसा में विश्वास रखने वाले ब्रिटिश एंपायर को समाप्त करने के लिए हिंसा के साधनों को अपनाने पर बल देते थे। क्योंकि इनकी स्पष्ट मान्यता थी कि दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करने से ही उसकी दुष्टता को समाप्त किया सकता है। उन्होंने कभी भी जनसामान्य को परेशान नहीं किया। इनकी सारी लड़ाई उस अत्याचारी ब्रिटिश शासक से थी जो भारत पर जबरन अपना अधिकार किए बैठा था । ऐसे क्रूर और अत्याचारी शासक को हटाना प्रत्येक देश के युवाओं का सबसे बड़ा धर्म होता है , यह हमारे लिए सौभाग्य की बात है कि उस समय हमारे युवाओं ने अपने धर्म को पहचान लिया था। स्वाधीन भारत में भारत की मुद्रा पर इन क्रांतिकारियों के कारनामों से संबंधित चाहे कोई चित्र लगाया गया हो या न लगाया गया हो पर भारत के लोगों के हृदय की मुद्रा पर इन्हीं का सिक्का चलता है अर्थात वहां इन्हीं का चित्र अंकित है।
अमरीका में एक व दो अमरीकी डॉलर पर आज भी जॉर्ज वाशिंगटन का ही चित्र छपता है। इस महान देश को कभी भी इस बात पर लज्जा नहीं आई कि जॉर्ज वाशिंगटन ने अंग्रेजों को अपने देश से भगाने के लिए आमने सामने की लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने किसी ऐसे गांधी को नहीं ढूंढा जो अंग्रेजों से मार खाते हुए कहता था कि यदि एक गाल पर चांटा पड़े तो दूसरा गाल भी अत्याचारी शासकों के सामने कर दो। उन्होंने अपने उस जॉर्ज वाशिंगटन की पूजा की है जो दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करने में हिचक नहीं करता था। यही कारण है कि अमेरिका बड़ी तेजी से आगे बढ़ा है, जबकि हमने गांधीवाद की अहिंसा को पूज पूजकर अपने आपको एक मजबूत देश के रूप में खड़ा करने में अपेक्षित सफलता प्राप्त नहीं की। हमारे पास पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से लेकर क्रांतिकारी नेताजी सुभाष चंद्र बोस तक अनेकों ऐसे जॉर्ज वाशिंगटन हैं जिन्होंने ब्रिटिश एंपायर को भारत से समूल नष्ट करने के लिए अपना सर्वस्व बलिदान किया और देश का तेजस्वी नेतृत्व किया। यदि हम अपने जॉर्ज वाशिंगटनों का सम्मान करना जान जाते तो आज अमरीका हमसे बहुत पीछे होता । क्योंकि तब हम अपने क्रांतिकारी नेताओं के दर्शन से अभिभूत होकर क्रांतिकारी भारत का निर्माण करने में सफल होते ना कि गांधी के एक दब्बू भारत का निर्माण करते।
बिस्मिल की पहली पुस्तक सन् 1916 में छपी थी जिसका नाम था-अमेरिका की स्वतन्त्रता का इतिहास। बिस्मिल के जन्म शताब्दी वर्ष: 1997 में यह पुस्तक स्वतन्त्र भारत में फिर से प्रकाशित हुई। जिसका विमोचन भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने किया।” उस कार्यक्रम में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरसंघचालक प्रो॰ राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) भी उपस्थित थे। इस सम्पूर्ण ग्रन्थावली में बिस्मिल की लगभग दो सौ प्रतिबन्धित कविताओं के अतिरिक्त पाँच पुस्तकें भी शामिल की गयी थीं। परन्तु आज तक किसी भी सरकार ने बिस्मिल के क्रान्ति-दर्शन को समझने व उस पर शोध करवाने का प्रयास ही नहीं किया। जबकि गान्धी जी द्वारा 1909 में विलायत से हिन्दुस्तान लौटते समय पानी के जहाज पर लिखी गयी पुस्तक ‘हिन्द स्वराज’ पर अनेकोँ संगोष्ठियाँ हुईं। बिस्मिल सरीखे असंख्य शहीदों के सपनों का भारत बनाने की आवश्यकता है। अतः राम प्रसाद बिस्मिल जी के क्रांति दर्शन पर भी चर्चा करने और संगोष्ठी आयोजित करने की आवश्यकता है। जिससे हमारे युवाओं को इन क्रांतिकारियों के वास्तविक दर्शन और चिंतन का बोध हो सके।
पंडित राम प्रसाद बिस्मिल जब मात्र 19 वर्ष की अवस्था के थे तभी उन्होंने क्रांतिकारी आंदोलन में पदार्पण कर दिया था। उन्होंने 11 वर्ष तक क्रांतिकारी आंदोलन के साथ जुड़कर देश की अप्रतिम सेवा की। इस दौरान उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखीं। जिनमें से प्रमुख पुस्तकें इस प्रकार हैं :-
सरफ़रोशी की तमन्ना (भाग एक): क्रान्तिकारी बिस्मिल के सम्पूर्ण व्यक्तित्व और कृतित्व का 25 अध्यायों में सन्दर्भ सहित समग्र मूल्यांकन।
सरफ़रोशी की तमन्ना (भाग दो): अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ की 200 से अधिक जब्तशुदा आग्नेय कवितायें सन्दर्भ सूत्र व छन्द संकेत सहित।
सरफ़रोशी की तमन्ना (भाग तीन): अमर शहीद राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ की मूल आत्मकथा-निज जीवन की एक छटा, 1916 में जब्त अमेरिका की स्वतन्त्रता का इतिहास, बिस्मिल द्वारा बाँग्ला से हिन्दी में अनूदित यौगिक साधन (मूल रचनाकार: अरविन्द घोष), तथा बिस्मिल द्वारा मूल अँग्रेजी से हिन्दी में लिखित संक्षिप्त जीवनी कैथेराइन या स्वाधीनता की देवी।
सरफ़रोशी की तमन्ना (भाग चार): क्रान्तिकारी जीवन (बिस्मिल के स्वयं के लेख तथा उनके व्यक्तित्व पर अन्य क्रान्तिकारियों के लेख)।
क्रान्तिकारी बिस्मिल और उनकी शायरी संकलन/अनुवाद: ‘क्रान्त'(भूमिका: डॉ॰ राम शरण गौड़ सचिव, हिन्दी अकादमी दिल्ली) बिस्मिल की उर्दू कवितायें (देवनागरी लिपि में) उनके हिन्दी काव्यानुवाद सहित।
बोल्शेविकों की करतूत: स्वतन्त्र भारत में प्रथम बार सन् 2006 में प्रकाशित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ का क्रान्तिकारी उपन्यास।
मन की लहर : स्वतन्त्र भारत में प्रथम बार सन् 2006 में प्रकाशित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की कविताओं का संकलन।
क्रान्ति गीतांजलि : स्वतन्त्र भारत में प्रथम बार सन् 2006 में प्रकाशित रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ की कविताओं का संकलन।
जनवरी 1928 के किरती में भगत सिंह ने काकोरी के शहीदों के बारे में एक लेख लिखा था। काकोरी के शहीदों की फाँसी के हालात शीर्षक लेख में भगतसिंह बिस्मिल के बारे में लिखते हैं: –
“श्री रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ बड़े होनहार नौजवान थे। गज़ब के शायर थे। देखने में भी बहुत सुन्दर थे। योग्य बहुत थे। जानने वाले कहते हैं कि यदि किसी और जगह या किसी और देश या किसी और समय पैदा हुए होते तो सेनाध्यक्ष बनते। आपको पूरे षड्यन्त्र का नेता माना गया। चाहे बहुत ज्यादा पढ़े हुए नहीं थे लेकिन फिर भी पण्डित जगतनारायण जैसे सरकारी वकील की सुध-बुध भुला देते थे। चीफ कोर्ट में अपनी अपील खुद ही लिखी थी, जिससे कि जजों को कहना पड़ा कि इसे लिखने में जरूर ही किसी बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति का हाथ है।”
सचमुच आज हमें अमेरिका से शिक्षा लेते हुए अपने इस महान क्रांतिकारी नेता पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का पूजन उसी प्रकार करना चाहिए जैसे अमेरिका जॉर्ज वाशिंगटन का करता है। अपने क्रांतिकारियों के प्रति ऐसी असीम श्रद्धा उत्पन्न करने के लिए उन्हें क्रांति का सेनापति स्वीकार करते हुए हमें देश के युवाओं का जागरण करना चाहिए। भारत की सरकार को भी चाहिए कि अपने क्रांतिकारियों को उचित सम्मान देते हुए सरकारी स्तर पर इन लोगों के विषय में विशेष जानकारी उपलब्ध कराई जाए। जिन क्रांतिकारियों ने देश के स्वाधीनता संग्राम में बढ़ चढ़कर भाग लिया उनके चित्र नई संसद भवन के पार्क में आदमकद प्रतिमाओं के रूप में स्थापित किया जाएं। जिससे हमारे नेताओं को भी यह सीखने का अवसर उपलब्ध हो कि इन क्रांतिकारियों ने देश की आजादी के लिए किस प्रकार संघर्ष किया था और उनका आजाद भारत बनाने का सपना कैसा और क्या था?
(मेरा यह लेख पूर्व में प्रकाशित हो चुका है)
डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत