नोएडा। यहां ग्राम भंगेल में श्री राकेश शर्मा के आवास पर चल रहे चारों वेदों के पारायण यज्ञ में मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए आचार्य कर्ण सिंह ने कहा कि वेदों में देव और देवता शब्द का प्रयोग हुआ है। देव दिव्य गुणों से युक्त मनुष्यों व जड़ पदार्थों को कहते हैं। परमात्मा अर्थात् ईश्वर परमदेव कहलाता है। देव शब्द से ही देवता शब्द बना है। देवता का अर्थ होता है जिसके पास कोई दिव्य गुण हो और वह उसे दूसरों को दान करे। दान का अर्थ भी बिना किसी अपेक्षा व स्वार्थ के दूसरों को दिव्य पदार्थों को प्रदान करना होता है। हम इस लेख में चेतन देवताओं की बात कर रहे हैं। चेतन देवताओं में तीन प्रमुख देव व देवता हैं जो क्रमशः माता, पिता और आचार्य हैं। इन तीनों देवताओं से सारा संसार परिचित है परन्तु इनके देवता होने का विचार वेदों की देन है।
उन्होंने कहा कि वह जब विवाहित होकर स्वयं माता-पिता बनते हैं और उनकी सन्तानें होती हैं तो उनके अपने वृद्ध माता-पिता की सेवा के संस्कार उनकी अपनी बाल सन्तानों में आते हैं। इन संस्कारों का लाभ यह होता है कि वह भी बड़े होकर अपने माता-पिता की सेवा करते हैं। अतः सभी युवाओं व दम्पतियों को अपने माता-पिता की सेवा अवश्य करनी चाहिये। इसका उनको यह लाभ होगा कि उनकी सन्तानें भी बड़ी होकर उनकी सेवा किया करेंगी।
इस अवसर पर सुप्रसिद्ध इतिहासकार डॉ राकेश कुमार आर्य ने भी अपने विचार व्यक्त किए और कहा कि भारत की इतिहास परंपरा में तीनों चेतन देवताओं का विशेष महत्व है। उन्होंने इतिहास पर विस्तृत दृष्टिपात करते हुए कहा कि जितने भर भी इतिहास नायक हुए हैं उन सबने इन तीनों चेतन देवताओं का विशेष सम्मान किया है। इनके शुभ आशीर्वाद से ही जीवन में उन्नति होती है। जो घर तीनों चेतन देवताओं की उपेक्षा करता है वह धरती पर नरक के समान होता है। कार्यक्रम के ब्रह्मा पंडित बुद्धदेव जी ने अपना विद्वत्तापूर्ण आशीर्वाद और वक्तव्य देते हुए शस्त्र और शास्त्र के उचित समन्वय पर प्रकाश डाला और प्रार्थना की कि हमारे राष्ट्र में प्रत्येक प्रकार से संपन्नता और प्रसन्नता का वास हो। उन्होंने कहा कि वेद शस्त्र और शास्त्र अर्थात ब्रह्मबल और क्षत्रबल दोनों के समन्वय पर बल देता है।
जबकि ओम मुनि जी ने इस एक माह चले यज्ञ में प्रतिदिन लोगों का मार्गदर्शन किया और उन्हें वेदों की शिक्षाओं के प्रति समर्पित होकर राष्ट्र की उन्नति में भागीदार बनने की प्रेरणा दी।
ज्ञात हो कि यह यज्ञ श्री राकेश शर्मा ने अपनी धर्मपत्नी की पुण्यतिथि के अवसर पर आयोजित किया । जिसकी सर्वत्र सराहना की गई है ।उनके परिवार के सभी सदस्यों ने बड़ी श्रद्धा के साथ यज्ञ में आहुति दी।