आपको याद होगा कि कुछ समय पूर्व ही भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकारी क्षेत्र की 11 बैंकों को, इन बैंकों में खराब कर्ज के खतरनाक स्तर तक बढ़ जाने के कारण, त्वरित सुधारात्मक ढांचे के तहत रखा था। पिछले कुछ वर्षों के दौरान सरकारी क्षेत्र के बैंकों को कम पूंजी आधार, गैर-पेशेवर प्रबंधन, हताश कर्मचारियों और भारी अक्षमताओं सहित कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। परंतु, केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक ने भारतीय बैकों की वित्तीय स्थिति को सुधारने की दृष्टि से कई उपाय किये एवं केंद्र सरकार ने पांच वित्त वर्षों के दौरान (वित्तीय वर्ष 2016-17 से 2020-21 तक) सरकारी क्षेत्र के बैंकों के पुनर्पूंजीकरण के लिए 3,10,997 करोड़ रुपये का अभूतपूर्व निवेश किया। इससे इन बैंकों को आवश्यक मदद मिली और उनकी ओर से किसी भी चूक की आशंका खत्म हो गई। अभी हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा वार्षिक प्रतिवेदन जारी किया गया है। इस प्रतिवेदन में भारतीय बैंकों की वित्तीय स्थिति को सुदृढ़ बताया गया है एवं इस प्रतिवेदन के अनुसार दिसम्बर 2022 को समाप्त अवधि में भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में पूंजी पर्याप्तता अनुपात 16.1 प्रतिशत, सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत 4.41 प्रतिशत एवं प्रोविजन कवरेज अनुपात 73.20 प्रतिशत हो गया है। वित्तीय वर्ष 2017-18 में सरकारी क्षेत्र के बैंकों ने जहां 85,390 करोड़ रुपये का शुद्ध घाटा दर्शाया था, वहीं वित्तीय वर्ष 2021-22 में इन बैंकों ने 66,539 करोड़ रुपये का लाभ अर्जित किया है, और अब यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत में सरकारी क्षेत्र की बैंकों का लाभ एक लाख करोड़ के आंकड़े को पार कर सकता है। इस प्रकार सरकारी क्षेत्र के बैंकों का तो एक तरह से कायाकल्प ही हो गया है।
बैंकिंग उद्योग किसी भी देश में अर्थ जगत की रीढ़ माना जाता है। बैंकिंग उद्योग में आ रही परेशानियों का निदान यदि समय पर नहीं किया जाता है तो आगे चलकर यह समस्या उस देश के अन्य उद्योगों को प्रभावित कर, उस देश के आर्थिक विकास की गति को कम कर सकती है। इसलिए पिछले 9 वर्षों के दौरान केंद्र सरकार ने बैंकों की लगभग हर तरह की समस्याओं के समाधान हेतु कई ईमानदार प्रयास किए हैं। गैरनिष्पादनकारी आस्तियों से निपटने के लिए दिवाला एवं दिवालियापन संहिता लागू की गई है। देश में सही ब्याज दरों को लागू करने के उद्देश्य से मौद्रिक नीति समिति बनायी गई है। साथ ही, दिनांक 30 अगस्त 2019 को देश की वित्त मंत्री माननीया श्रीमती निर्मला सीतारमन ने बैंकिंग क्षेत्र को और अधिक मजबूत बनाए जाने के उद्देश्य से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की थी। सरकारी क्षेत्र के बैकों की, समेकन के माध्यम से, क्षमता अनवरोधित (अनलाक) करने के उद्देश्य से सरकारी क्षेत्र के बैंकों के आपस में विलय की घोषणा की गई थी। इन बैंकों के विलय में इस बात का विशेष ध्यान रखा गया था कि इनके विलय से किसी भी ग्राहक को किसी भी प्रकार की कोई परेशानी ना हो, ये तकनीक के लिहाज से एक ही प्लेट्फार्म पर हों, इन बैंकों की संस्कृति एक ही हो तथा इन बैंकों के व्यवसाय में वृद्धि दृष्टिगोचर हो। वर्ष 2017 में भारत में सरकारी क्षेत्र के 27 बैंक थे लेकिन इनके आपस में विलय के बाद अब केवल 12 सरकारी क्षेत्र के बैंक रह जाएंगे। इस प्रकार देश में सरकारी क्षेत्र के बैंकों को अगली पीढ़ी के बैंकों का रूप दिया जा रहा है। उक्त विलय के बाद इन सरकारी क्षेत्र के बैंकों के बड़े हुए आकार ने इन बैंकों की ऋण प्रदान करने की क्षमता में अभितपूर्व वृद्धि की है। इन बैंकों की राष्ट्रीय स्तर पर मजबूत उपस्थिति के साथ ही इनकी अब अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंच बन गई है। विलय के बाद इन बैंकों की परिचालन लागत में कमी आई है जिससे इनके द्वारा प्रदान किए जा रहे ऋणों की लागत में भी सुधार हुआ है। इन बैंकों द्वारा बैंकिंग व्यवसाय हेतु, नई तकनीकी के अपनाने पर विशेष जोर दिया जा रहा है जिससे इनकी उत्पादकता में उल्लेखनीय सुधार होता दिखाई दे रहा है। इन बैंकों की बाजार से संसाधनों को जुटाने की क्षमता में भी सुधार हुआ है।
केंद्र सरकार एवं भारतीय रिजर्व बैंक के संयुक्त प्रयासों से भारत में समस्त वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात 31 मार्च 2022 को समाप्त अवधि में 16.7 प्रतिशत के सराहनीय स्तर पर पहुंच गया है। जबकि अंतरराष्ट्रीय मानदंडो के अनुसार, बैंकों में पूंजी पर्याप्तता अनुपात न्यूनतम 8 प्रतिशत (एवं 2.5 प्रतिशत के पूंजी कंजर्वेटिव बफर को मिलाकर 10.5 प्रतिशत) होना बैंकों के लिए आवश्यक माना जाता है। इसी प्रकार, भारत में वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों की आस्तियों पर आय एवं इक्वटी पर आय भी इस अवधि में संतोषप्रद रही है, जिसके चलते पूंजी पर्याप्तता अनुपात में भी लगातार सुधार हो रहा है, जो मार्च 2020 में 14.7 प्रतिशत से बढ़कर सितम्बर 2020 में 15.8 प्रतिशत हो गया एवं मार्च 2021 में 16 प्रतिशत होकर मार्च 2022 में 16.7 प्रतिशत हो गया है।
वर्गीकृत वाणिज्यिक बैंकों में सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियों एवं शुद्ध गैरनिष्पादनकारी आस्तियों का प्रतिशत भी 30 सितम्बर 2022 को समाप्त तिमाही में कम होकर 5.0 प्रतिशत (पिछले 7 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर) एवं 1.3 प्रतिशत (पिछले 10 वर्षों के न्यूनतम स्तर पर) क्रमशः हो गया है। सकल गैरनिष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2020 में 8.4 प्रतिशत, मार्च 2021 में 7.3 प्रतिशत एवं मार्च 2022 में 5.9 प्रतिशत रही हैं। साथ ही, शुद्ध गैरनिष्पादनकारी आस्तियां मार्च 2020 में 3.0 प्रतिशत, मार्च 2021 में 2.4 प्रतिशत एवं मार्च 2022 में 1.7 प्रतिशत की रही हैं। कोरोना महामारी के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक ने प्रभावित हुए ऋण खातेदारों को उनके द्वारा अदा किये जाने वाले ब्याज एवं किश्त की अदायगी में छूट प्रदान की थी, जिसके कारण भी गैर निष्पादनकारी आस्तियों में कमी दृष्टिगोचर हुई है। परंतु उक्त बैंकों के प्रोविजन कवरेज अनुपात में सुधार हुआ है और यह मार्च 2021 के 67.6 प्रतिशत से बढ़कर 31 मार्च 2022 को 70.9 प्रतिशत हो गया है। इसका आश्य यह है कि इन बैंकों ने अपने खातों में गैरनिष्पादनकारी आस्तियों के लिए पर्याप्त मात्रा में प्रोविजन कर लिया है। यदि आगे आने वाले समय में इन गैरनिष्पादनकारी आस्तियों में समस्या होती है तो बैंकों को इस प्रकार की समस्या से निपटने में आसानी होगी।
अभी हाल ही में किए गए एक आंकलन के अनुसार अमेरिका के 160 बड़े बैंकों (जिनके पास 500 करोड़ अमेरिकी डॉलर से अधिक राशि की आस्तियां हैं) को 20,600 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। अमेरिका की रेटिंग संस्थाओं स्टैंडर्ड एंड पूअर्स एवं फिच ने कुछ बैंकों की रेटिंग घटाकर जंक श्रेणी में डाल दी है क्योंकि यह बैंक अपने जमाकर्ताओं को राशि वापिस करने की स्थिति में नहीं है। अमेरिका के सबसे बड़े बैंकों को भी भारी आर्थिक समस्या का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि इनके अमेरिकी बांड्ज में किए गए निवेश की बाजार कीमत कम हो गई है। सिटी बैंक समूह को 4,700 करोड़ अमेरिकी डॉलर, बैंक आफ अमेरिका को 2,120 करोड़ अमेरिकी डॉलर, जे पी मोर्गन चेज को 1,730 करोड़ अमेरिकी डॉलर, टरुइस्ट फायनैन्शल को 1,360 करोड़ अमेरिकी डॉलर, वेल्ज फार्गो को 1,340 करोड़ अमेरिकी डॉलर एवं यूएस बैंक कॉर्प को 1,140 करोड़ अमेरिकी डॉलर का नुक्सान हुआ है। यह सभी बड़े बैंक हैं अतः इस नुक्सान को सहन कर जाएंगे परंतु छोटे बैंक तो असफल (फैल) ही हो जाने वाले हैं। अभी तक दो बैंक (सिलिकॉन वैली बैंक एवं सिग्नेचर बैंक) बंद हो चुके हैं और 6 अन्य छोटे आकार के बैंकों (फर्स्ट रिपब्लिक बैंक, वेस्टर्न अलाइन्स बैंक, पैकवेस्ट, यूएमबी फायनैन्शल सहित) पर गम्भीर संकट आ गया था। इन बैंकों में रोकड़ एवं तरलता की गम्भीर समस्या उत्पन्न हो गई है एवं इनके पास अपने जमाकर्ताओं को भुगतान करने के लिए पर्याप्त राशि उपलब्ध नहीं है। इन बैकों के शेयरों की कीमत पूंजी बाजार में 14 से 30 प्रतिशत के बीच गिर चुकी है।
परंतु भारत में चूंकि भारतीय रिजर्व बैंक के नियमों के अनुसार भारतीय बैंकों को 4.5 प्रतिशत रोकड़ रिजर्व अनुपात एवं 18 प्रतिशत संवैधानिक रिजर्व अनुपात बनाए रखना होता है। जिसके अंतर्गत बैंकों को रोकड़ एवं सरकारी प्रतिभूतियों के रूप में भारतीय रिजर्व बैंक के पास उक्त राशि जमा रखना होती है, ताकि बैकों को तरलता सम्बंधी समस्या का सामना नहीं करना पड़े। साथ ही, भारतीय बैकों में प्रति जमाकर्ता के खाते में रुपए 5 लाख तक की जमाराशि का बीमा भी रहता है। अतः अमेरिकी बैंकों पर आए संकट का प्रभाव भारतीय बैंकों पर पड़ता हुए दिखाई नहीं दे रहा है। बल्कि भारतीय बैंकों की उक्त वर्णित मजबूत स्थिति के चलते भारतीय रिजर्व बैंक की आज पूरी दुनिया में बहुत प्रशंसा हो रही है कि क्योंकि उसने भारतीय बैकों को आज इतनी मजबूत स्थिति में पहुंचा दिया है। अभी हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डा. शक्तिकांत दास को “गवर्नर आफ द ईयर” अवार्ड अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2023 के लिए सेंट्रल बैंकिंग, एक अंतरराष्ट्रीय आर्थिक अनुसंधान जर्नल की ओर से प्रदान किए जाने की घोषणा की गई है।
फिर भी कुल मिलाकर भारतीय बैकों की आर्थिक स्थिति को लेकर अभी भी सतर्क रहने की आवश्यकता है। क्योंकि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा विभिन्न बैकों के किए जा रहे अपने निरीक्षण के दौरान यह पाया गया है कि कॉरपोरेट गवर्नेस के मुद्दे को लेकर कुछ बैंकों में स्थिति ठीक नहीं है। अतः कॉरपोरेट गवर्नेस के मुद्दे पर इन बैकों को विशेष ध्यान देने की आवश्यकता प्रतिपादित की गई है। बैकों को अपने जमाकर्ताओं का विशेष ध्यान रखना होगा ताकि उनकी जमाराशियां बैकों में सुरक्षित रहे। अतिमहत्वाकांक्षी तरीके से ऋण वितरण करने के तरीकों से बचना भी जरूरी है। इससे बैकों के व्यवसाय में तेज गति से वृद्धि तो जाती है परंतु इस प्रकार प्रदान किए गए ऋणों की वसूली में कई बार कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। किसी भी देश के बैकिंग क्षेत्र में संकट आने पर प्रायः यह पाया गया है कि यह संकट पूरे देश में ही आर्थिक संकट के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
कुछ बैंक स्मार्ट लेखा पद्धति अपनाकर अपने वित्तीय निष्पादन को बेहतर दिखाने का प्रयास करते हैं एवं कुछ अन्य बैकों द्वारा गैरनिष्पादनकारी आस्तियों को भी छुपाया जाता है, इस तरह के प्रयास कुछ समय तक तो बैकों की वित्तीय स्थिति को छुपा सकते हैं परंतु लम्बे समय में इन बैकों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अतः इस प्रकार के प्रयास नहीं किया जाने चाहिए। बैंक व्यवसाय में अति महत्वाकांक्षी वृद्धि दर हासिल करने के उद्देश्य से भी कुछ बैंक भारी जोखिम लेते पाए जाते हैं। जैसे, बाजार दर से कम ब्याज पर ऋण प्रदान करना एवं जमाराशि पर तुलनात्मक रूप से अधिक ब्याज प्रदान करना आदि, इस तरह के प्रयासों से बैंक की लाभप्रदता पर विपरीत प्रभाव पड़ता दिखाई देता है। कुछ बैकों को आस्ति देयता प्रबंधन पर भी विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है अन्यथा बैंक में आस्ति देयता में असंतुलन एवं तरलता की समस्या खड़ी हो सकती है।
31 मार्च 2023 को समाप्त वित्तीय वर्ष के लिए कई बैकों ने निष्पादन सम्बंधी नतीजे घोषित किए हैं, इन नतीजों के अनुसार सरकारी क्षेत्र के बैकों सहित कई बैकों ने अपने व्यवसाय एवं लाभप्रदता में अतुलनीय वृद्धि दर्ज की है। इस वित्तीय निष्पादन को जारी रखने के लिए बैकों को उक्त वर्णित बिन्दुओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
प्रहलाद सबनानी
सेवा निवृत उप महाप्रबंधक,
भारतीय स्टेट बैंक
लेखक भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवर्त उप-महाप्रबंधक हैं।