कांग्रेस पार्टी को ब्राह्मणों की राजनीतिक शक्ति को समझना ही होगा
🙏🌹सत्यमेव जयते🌹
आजादी के बाद से 1989 तक उत्तरप्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों का वर्चस्व रहा और कांग्रेस के राज में ब्राह्मणों ने उत्तर प्रदेश की सत्ता पर अपना दबदबा बनाये रखा।
इस दौरान छह ब्राह्मण मुख्यमंत्री प्रदेश की सत्ता पर बैठे. जिनमे गोविंद वल्लभ पंत दो बार, सुचेता कृपलानी, कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा और श्रीपत मिश्रा एक-एक बार मुख्यमंत्री रहे, जबकि नारायण दत्त तिवारी तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने।
लेकिन 1990 में ब्राह्मण समाज ने अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की ओर रुख़ कर दिया। जिसके बाद ब्राह्मणों का राजनियिक पतन शुरू हो गया। और उसके बाद 1990 से अभी तक कोई भी ब्राह्मण नेता मुख्यमंत्री की गद्दी पर नहीं बैठ पाया।
इस दौरान बीजेपी ने 4 मुख्यमंत्री दिए जिसमें दो ठाकुर ,एक बनिया, 1 लोध थे। लेकिन एक भी ब्राह्मण नेता को मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया।
इसे यूं कहिए कि कांग्रेस के राज में ब्राह्मण समाज “किंग” बना रहा और कांग्रेस छोड़ने के बाद से आजतक ब्राह्मण समाज केवल “किंगमेकर” की भूमिका निभा रहा है।
उत्तर प्रदेश की कुल जनसंख्या का 14 प्रतिशत भाग ब्राह्मण समाज का है। प्रदेश में भले ही बाहर 14 फीसदी ब्राह्मण आबादी है. लेकिन इस आबादी का 12 जनपदों की कुल 62 विधानसभा सीटों पर सीधा असर है. जो हार-जीत में निर्णायक भूमिका अदा करते रहे हैं.
इसके बावजूद पिछले एक लंबे से समय से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समाज की उपेक्षा की जा रही है।
कांग्रेस ने भी ब्राह्मण समाज की उपेक्षा की थी। और उसका दुष्परिणाम आजतक कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है। जबकि समाजवादी पार्टी का जन्म ही ब्राह्मण विरोध की नींव पर माना जाता है। अलबत्ता बसपा सुप्रीमो ने ब्राह्मण समाज के राजनीतिक महत्व को भलीभांति समझा और ब्राह्मणों को यथायोग्य सम्मान भी देने का हरसम्भव प्रयास किया। लेकिन 2012 के विधानसभा चुनावों में ब्राह्नणों ने समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया और उसके नतीजे कितने भयंकर हुए, यह आज भी किसी से छुपा हुआ नहीं है।
भाजपा के कार्यकाल में ब्राह्मण समाज को उपेक्षित ही रखा गया, और “हिंदुत्व” की रक्षा के नाम पर ब्राह्मण समाज को ढाल बनाकर इस्तेमाल किया गया।
ब्राह्मण समाज को एकबार पुनः अपनी राजनीतिक शक्ति को एकत्रित करना ही होगा। और यह समझना होगा कि कौन सा राजनीतिक दल उनका मान-सम्मान कर सकता है।
यहां कांग्रेस को भी यह ठीक तरह से समझना होगा कि ब्राह्मणों के बिना कांग्रेस का कोई अस्तित्व नहीं है। कांग्रेस जिस मुस्लिम समाज का राग अलाप रही है, वह अकेले अपने दम पर कांग्रेस को जिताने की ताक़त नहीं रखता है।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह है कि कांग्रेस और ब्राह्मण एक-दूसरे के पूरक हैं। और यह सच्चाई गांधी परिवार को स्वीकारनी ही होगी।
- मनोज चतुर्वेदी “शास्त्री”
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