गुरु अर्जुन देव की शहादत के बाद शुरू हुई बलिदान की परंपरा, जहांगीर ने दी थीं कड़ी यातनाएं
अनन्या मिश्रा
गुरु अर्जुन देव साहिब सिखों के पांचवे गुरु थे। बता दें कि वह हर धर्म और समुदाय को समान रुप से मानते थे। आज ही के यानी की 30 मई को गुरु अर्जुन देव का शहादत दिवस मनाया जा रहा है। उन्होंने अपनी गुरु परंपरा का सदैव पालन किया और गलत चीजों के आगे कभी अपने सिर को नहीं झुकाया। इसीलिए उन्होंने शरणागतों की रक्षा करने के लिए अपने प्राणों का बलिदान कर दिया। लेकिन मुगल शासक जहांगीर कभी भी गुरु अर्जुन देव को झुका नहीं पाया। गुरु अर्जुन देव की शहादत के बाद से ही सिख धर्म में बलिदान की परंपरा का आगाज हुआ। आइए जानते हैं गुरु अर्जुन देव से जुड़ी कुछ रोचक बातों के बारे में…
पंजाब के अमृतसर में 15 अप्रैल साल 1563 को गुरु अर्जुन देव का जन्म हुआ था। इनके पिता गुरु रामदास सिखों के चौथे गुरु थे। वहीं गुरु अर्जुन देव के नाना गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु थे। सिखों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास की देखरेख में अर्जुन देव का बचपन बीता था। उन्होंने ही गुरु अर्जुन देव को गुरमुखी शिक्षा दी थी। इसके बाद साल 1579 में अर्जुनदेव जी का विवाह गंगा देवी के साथ हुआ। जिससे उनको एक पुत्र प्राप्त हुआ। यही आगे चलकर हरगोविंद सिंह सिखों के छठे गुरु बनें।
साल 1581 में गुरु अर्जुन देव सिखों के पांचवे गुरु बन गद्दी पर बैठे थे। उन्होंने ही अमृतसर में श्री हरमंदिर साहिब गुरुद्वारे की नींव रखवाई थी। वर्तमान में इसे स्वर्ण मंदिर और गोल्डन टेम्पल के नाम से जाना जाता है। बता दें कि स्वर्ण मंदिर का नक्शा गुरु अर्जुन देव ने बनाया था।
गुरु अर्जुन देव ने भाई गरदास के सहयोग से श्री गुरु ग्रंथ साहिब का संपादन किया था। इसमें उन्होंने रागों के आधार पर गुरु वाणियों को वर्णित किया था। बता दें कि गुरु ग्रंथ साहिब में खुद अर्जुन देव के हजारों शब्द लिखे हैं। इसके अलावा इस पवित्र ग्रंथ में संत नामदेव, संत रविदास, भक्त कबीर और बाबा फरीद जैसे अन्य संत-महात्माओं के भी शब्द हैं।
मुगल शासक अकबर की मृत्यु के बाद 1605 में उनका बेटा जहांगीर अगला मुगल शासक बना था। जहांगीर के साम्राज्य संभालते ही गुरु अर्जुन देव के विरोधी सक्रिय हो गए थे। विरोधी लोग जहांगीर को गुरु अर्जुन देव के बारे में भड़काने लगे थे। तभी राज्य के लालच में आकर जहांगीर के पुत्र शहजादा खुसरो ने अपने पिता के खिलाफ बगावत कर दी। इसके बाद जहांगीर अपने बेटे के पीछे पड़ गया। तब शहजादा खुसरो अपनी जान बचाने के लिए पंजाब में गुरु अर्जुन देव के पास शरण लेने पहुंचा। जब जहांगीर को इसके बारे में बता चला तो वह गुरु अर्जुवन देव पर भड़क गया।
जिसके बाद मुगल शासक जहांगीर ने गुरु अर्जुन देव गिरफ्तार करने का आदेश दे दिया। वहीं इस बात की जानकारी जब अर्जुन देवजी को हुई तो उन्होंने बाल ल हरिगोबिंद साहिब को गुरुगद्दी सौंप दी और स्वयं लाहौर पहुंच गए। यहां पर गुरु अर्जुन देव जी पर जगांहीर से बगावत करने का अरोप लगा। जहांगीर ने उन्हें कड़ी यातनाएं देकर मार देने का आदेश सुना दिया।
मुगल शासक जहांगीर के आदेश के बाद गुरु अर्जुन देव को 5 दिनों तक तरह-तरह की यातनाएं दी जाने लगीं। लेकिन वह सब कुछ शांत होकर सहते गए। आखिरी समय में मुगल सैनिकों ने गुरु अर्जुव देव को ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में 30 मई 1606 में उनको लाहौर में भीषण गर्मी में गर्म तवे पर बैठाया और इसके बाद उनके शरीर पर गर्म रेत और गर्म तेल डाला जाने लगा। यातना सहते-सहते जब गुरु अर्जुन देव मूर्छित हो गए तो उनके शरीर को लाहौर की रावी की धारा में बहा दिया गया।
इसके बाद गुरु अर्जुन देव की याद में रावी नदी के किनारे गुरुद्वारा डेरा साहिब का निर्माण कराया गया। जो वर्तमान में पाकिस्तान में स्थित है। गुरु अर्जुन देव ने अपना पूरा जीवन मानव सेवा को समर्पित कर दिया था।
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