परम पिता परमात्मा के चित्त जैसा हमारा मन कैसे बने

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बिखरे मोती

परम पिता परमात्मा के चित्त जैसा हमारा मन कैसे बने :-

विषयों का चिन्तन करे,
मन विष जैसा होय।
जो चिन्तन हरि का करे,
तो हरि जैसा होय॥2303॥

आनन्दधन कहाँ रहता है :-

अनन्त बार यह तत मिला,
मिला नहीं आनन्द ।
माया में रहा ढूँढता,
अन्तस्थ में था आनन्द॥2304॥

पवित्र हृदय में ही परमात्मा का दीदार होता है:-

अन्तर में जलती रही,
पश्चाताप की आग।
निर्मल चित्त में हरि मिले,
जाग सके तो जाग॥2305॥

वाणी कब अमृत-वर्षा करती है :-

वाणी में मुश्किल मिले,
सरस्वती का वास ।
मुख अमृत-वर्षा करे,
फैले ज्ञान – प्रकाश॥2306॥

ओजस्वी वाणी व्यक्तित्त्व का गहना है:-

वाणी में यदि ओज है,
अदभुत पड़े प्रभाव।
यह गहना व्यक्तित्त्व का,
मोहक बने स्वभावा॥2307॥

प्रेम वरदान कब बनता है और भक्त देवत्त्व को कब प्राप्त होता है :-

प्रेम में ना हो वासना,
तो वरदान कहाय।
भक्त में ना हो कामना,
तब देवत्त्व को पाय॥ 2308॥

वाणी और मुस्कान तो विधाता की विलक्षण देन है:-

वाणी और मुस्कान तो,
प्रभु की देन अमोल ।
ज़हरीली हँसी मत हँसे,
तोल – तोलकर बोल॥2309॥

चेहरे पर सौम्यता कैसे आती है : –

चित का चिन्तन एक दिन,
चेहरे पर आ जाय।
सत् चिन्तन सत्कर्म से,
सौम्यता आती जाय॥2310॥

कैसे करें आत्मसंयम:-

आत्मसंयम के बिना,
कीमत नहीं छदामा।
मन-इन्द्री काबू करो,
राखो कड़ी लगाम ॥2311॥

ओ३म् के नाम में अद्‌भुत आकर्षण है:-

अपनी ओर को खींचता,
हरि ओ३म् का नाम।
एक बार जुड़कर देखिए,
संकट कटें तमाम॥2312॥

जिन्हें मृत्यु भी नहीं मार सकती :-

जीवन में करते रहो,
विकारों का परिष्कार ।
मृत्यु भी ना मारती,
चित्त में जो संस्कार॥23013॥

जैसा चिन्तन, जैसा चितः-

जैसा चित चिन्तन करे,
वैसा चित्त हो जाया।
भक्ति- भलाई में लगा,
सीधा स्वर्ग को जाय॥23014॥
क्रमशः

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