गायत्री महामंत्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मंत्र है,जिसकी महत्ता ओ३म् के लगभग बराबर मानी जाती है।यह यजुर्वेद के मंत्र ओ३म् भूर्भुवः स्वः और ऋग्वेद के छंद ३-६२-१० के मेल से बना है।इस मंत्र में सविता देव की उपासना है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। इसे गुरु-मन्त्र भी कहा जाता है,क्योंकि सर्वप्रथम गुरु ही इसे बताते हैं।वेद के जितने मन्त्र हैं, लगभग ११ सहस्र हैं,उन सभी मन्त्रों में केवल इसी गायत्री मन्त्र का ही जाप किया जा सकता है।गायत्री मन्त्र इस प्रकार हैः-
ॐ र्भू भुवः स्वः।तत् सवितुर्वरेण्यं।भर्गो देवस्य धीमहि। धियो यो नः प्रचोदयात्॥(ऋग्वेद ४-६२-१०)
भावार्थ-उस प्राणस्वरूप, दुःखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देवस्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करे।
शब्दार्थः—
ओ३म्–सर्वरक्षक परमात्मा,भूः-प्राणों के प्राण ,भुवः-दुःख-त्राता,स्वः-सुखों के दाता ,तत्-वह (परमात्मा), सवितु -प्रेरक परमात्मा,वरेण्यम्-वरण करने योग्य ,भर्गः-भरण-पोषण करने वाला,देवस्य-देव का ,धीमहि-हृदय में धारण करें ,धियः-बुद्धियों को ,यः-जो, नः-हमारे,प्रचोदयात-प्रेरित करें ।
तमिलनाडु की राजनैतिक पार्टी ‘द्रविड़ कड़गम‘ ने मद्रास हाई कोर्ट में एक याचिका प्रस्तुत की थी कि सन् 1983 में सार्वजनिक क्षेत्र की एक संस्था ‘युनाइटेड ऐश्योरेंस कम्पनी‘ ने अपने दीवाली सम्बन्धी शुभकामना कार्ड में गायत्री मंत्र और उसका अंग्रेजी अनुवाद प्रकाशित करके साम्प्रदायकिता पूर्ण कार्य किया है।
हाई कोर्ट ने 29 अगस्त 1992 को दिए गए अपने निर्णय में प्रस्तुत दावे को रद्द करते हुए कहाः-
‘‘यह मन्त्र ऋग्वेद से लिया गया है, जो वैदिक ज्ञान की कुंजी है। समस्त वेद सदा से ही मानवता के प्रतीक रहे हैं, जिनका सम्बन्ध किसी भी धर्म विशेष, जाति या सम्प्रदाय से नहीं है। न्यायाधीश ने दावेदार के इस दावे को मानने से इन्कार कर दिया कि गायत्री मन्त्र केवल ब्राह्मणों के लिए है। उन्होंने कहा कि इस प्रकार का तर्क भ्रामक एवं मिथ्या है ये किसी भी स्थान पर ऐसा नहीं लिखा है कि यह मन्त्र केवल ब्राह्मणों की बपौती है या किसी धर्म, जाति या सम्प्रदाय विशेष से उसका सम्बन्ध है।‘‘
मद्रास हाई कोर्ट ने अपने निर्णय में उसका ‘शब्द ब्रह्म‘ रूप में वर्णन करते हुए घोषणा की कि ‘‘गायत्री मंत्र द्वारा शुभ कामना व्यक्त करना भारतीय संविधान की किसी धारा के विरुद्ध नहीं है।‘‘ (‘टाईम्स ऑफ इण्डिया‘, बम्बई, 31 अगस्त 1992)।
यदि गायत्री मंत्र के अर्थ और भावार्थ को पढ़ा जाए तो समझ आ जायेगा की ये मंत्र दूर दूर तक सांप्रदायिक नही है,बल्कि ये मंत्र सभी पंथ,मजहब, धर्म के मानने वालो के लिए है,इसीलिए गायत्री मंत्र को महामंत्र की संज्ञा दी गई है।