माया की नजर, मोदी-महागठबंधन और मुसलमान पर
बसपा सुप्रीमों मायावती को पल-पल बदलती यूपी की सियासत तस्वीर ने हैरान-परेशान कर रखा है। एक पल उन्हें सत्ता बेहद करीब नजर आती है तो दूसरे ही पल उन्हें सत्ता की चाबी दूर नजर आने लगती है। वह विरोधियों के हर कदम पर नजर रखे हैं। सपा-कांगे्रस के अन्य छोटे-छोटे दलों को साथ लेकर महागठबंधन बनाये जाने की सुगबुगाहट से बसपा सुप्रीमों परेशान हैं तो सपा में चल रहे सिरफुटव्वल में उन्हें अपनी सियासी रोटियां सेंकने में मजा भी आ रहा है। बेहद सलीके के साथ बीएसपी सुप्रीमों अपने ‘सियासी मोहरे’ आगे बढ़ा रही हैं। सपा के साथ-साथ प्रबल प्रतिद्वंदी भाजपा की भी हर ‘चाल’ पर माया चैकन्नी हैं। वह मोदी और उनकी सरकार पर मुसलमानों-दलितों के उत्पीडऩं को लेकर लगातार हमला बोल ही रही हैं।
मायावती का वोट बैंक का गणित बिल्कुल स्पष्ट है। वह हर कोशिश कर रही है कि उनका परम्परागत दलित वोट बैंक उनसे दूर खिसके नहीं और समाजवादी पार्टी का मुस्लिम वोटर उनके पाले मेंआ जायें। इसके लिये वह दलितों और मुसलामानों से जुड़े छोटे से छोटे मसले को भी हवा देने का मौका नहीं छोड़ रही हैं। चाहें गुजरात में दलितों पर अत्याचार का मसला हो या हैदराबाद के दलित छात्र रोहित वैमुला की आत्महत्या का मुद्दा। मुसलमानों से जुड़े किसी भी मसले पर मोदी सरकार की भत्र्सना करने में माया देर नहीं लगाती हैं तो सपा राज मेंहुए तमाम साम्प्रदायिक दंगों को भी सियासी जामा पहनानाती जा रही हैं। हाल ही में मोदी सरकार की घेराबंदी करने के लिये माया ने ऐसे संजीदा मुद्दों पर बयान जारी कर दिये, जिन पर बोलने से बड़े नेता बचते हैं। खासतौर से तीन तलाक और कॉमन सिविल कोड के मुद्दे पर वह मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के साथ नजर आईं। उन्होंने कहा कि यह मामला मुसलमानों पर ही छोड़ देना चाहिए। केंद्र सरकार इस मामले में हस्तक्षेप करके आरएसएस का अजेंडा थोपना चाहती है। मध्य प्रदेश जेल में कथित सिमी आतंकियों के एनकाउंटर पर उन्होंने सवाल उठाए और न्यायिक जांच की मांग की। उसके बाद अब कश्मीर पर बयान जारी करके उन्होंने वहां के बहुसंख्यक समुदाय के हालात पर चिंता जताई है। सामान्य तौर पर मायावती बड़े मुद्दों पर सोच-समझकर और देर से प्रतिक्रिया देती हैं, लेकिन इस दौरान मुसलमानों से जुड़े मुद्दों पर वह तत्काल बयान जारी कर रही हैं। समाजवादी पार्टी का मजबूत वोट बैंक समझे जाने वाले मुस्लिम वोटरों को अपने पाले में लाने की मायावती की सोच तार्किक है। सपा में जिस तरह का घमासान मचा हुआ है और मुस्लिम समस्याओं को अनदेखा किया जा रहा है उससे मुस्लिम वोटर दुखी है वह बसपा की तरफ उम्मीद भरी नजरों से देख रहे हैं,जैसे 2007 में मुसलमानों ने सपा से किनारा करके बसपा दामन थामा था। वैसे ही हालात इस बार भी बनते दिख रहे हैं। बसपा सुप्रीमो काफी समय से मुसलमानों को रिझाने में लगी हैं। उन्होंनें बड़ी संख्या में मुस्लिमों नेताओं को विधान सभा का टिकट दिया है। वह मुसलमानों को लगातार सपा से सचेत कर रही हैं कि सपा राज में हुए दंगों से सबसे अधिक नुकसान मुसलमानों का ही हुआ है। माया मुसलमानों को बताने से नहीं चूकती हैं कि सपा शासन में हुए दंगों की फेरिस्त काफी लम्बी है,जबकि बसपा राज में दंगा तो दूर मुसलामनों का उत्पीडऩ भी नहीं हो पाया था, यहां तक की उन्होंने(मायावती) तब भी प्रदेश का लॉ एंड आर्डर बिगडऩे नहीं दिया जब अयोध्या में मसलें पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला आया था, उस समय हर तरफ चर्चा थी कि हाईकोर्ट के फैसले के बाद प्रदेश में हालात बिगड़ सकते हैं। दंगा भडक़ सकता है,लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती की सख्ती के चलते पूरे राज्य से दंगा तो दूर झगड़े की छोटी सी घटना भी सामने नहीं आई थी।इस पर मुस्लिम समाज ही नहीं अन्य वर्ग के लोंगो ने भी माया की पीट थपथपाई थी।
बसपा सुप्रीमों मायावती चुनावी रणनीति के तहत जिस जिले,क्षेत्र में जाती हैं,वहां सपा राज में हुए दंगों को उछाल कर चुनावी मुद्दा बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ती हैं। बसपा के पास सपा राज मेंहुए दंगें गिनाने के लिये मुजफ्फरनगर से लेकर बरेली, आगरा, मुरादाबाद, मेरठ, सहारनपुर सहित तमाम जिलों में हुए दंगों का हिसाब-किताब है। इस बीच प्रदेश में महागठबंधन की चर्चा ने बसपा सुप्रीमों की उम्मीदों को थोड़ा झटका जरूर दे दिया है। अब तक सपा को कमजोर मानकर मुसलमानों पर डोरे डाल रही माया को मुस्लिम वोट बैंक खिसकने का डर सताने लगा है। यही वजह है माया ने राष्ट्रीय महासचिव नसीमुद्दीन सिद्दीकी और मुनकाद अली सहित पार्टी के बड़े मुसलमान नेताओं को मोर्चे पर लगा दिया है। वे विधानसभा स्तर पर भाईचारा सम्मेलनों के जरिए मुसलमानों को एकजुट कर रहे हैं। मायावती महागठबंधन की खबरों से तिलमिलाई हुई हैं यह बात सपा की रजत जयंती के दूसरे दिन बुलाई गई प्रेस वार्ता में साफ देखने को मिली। उन्होंने कांग्रेस और जेडीयू सहित अन्य दलों को चेताया कि यूपी में महागठबंधन करके वे बीजेपी को ही फायदा पहुंचाएंगे। इतना ही नहीं उन्होंने 2019 में बीजेपी के सफाए की बात कहकर इन दलों को यह इशारा भी किया कि यूपी में वे सपा का साथ न दें तो बीएसपी खुद भी लोकसभा चुनाव में साथ आने को तैयार है। साथ ही उन्होंने मुसलमान वोटरों को भी चेताया कि सपा को वोट दिया तो बेकार जाएगा क्योंकि वह शिवपाल और अखिलेश खेमें में बंटी हुई है। सपा की ओर से महागठबंधन बनाने के प्रयास पर मायावती ने कहा, ”काम किया होता और कानून व्यवस्था का ध्यान रखा होता तो किसी सहारे की जरूरत नहीं पड़ती. (सपा) महागठबंधन बनाती है तो साबित हो जाएगा कि उसने चुनाव से पहले ही हार स्वीकार कर ली है।”
बात बसपा सुप्रीमों के बीजेपी के प्रति तल्खी की कि जाये तो माया मुसलमानों के अलावा सबसे अधिक हमला दलितों के उत्पीडऩ को लेकर मोदी सरकार पर कर रही हैं। यह हमला इस लिये हैं ताकि 2014 में जो दलित वोटर बीजेपी के पाले में चले गये थे,उनको पुन: अपने पाले में खींच लाया जाये। जिस तरह माया सपा पर हमलावर हैं वैसे ही बीजेपी को भी कोस रही हैं। ज्यों जो चुनाव नजदीक आ रहे हैं त्यों तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और उनकी पार्टी के अन्य नेता माया राज के भ्रष्टाचार को हाइलाइट कर रहे हैं उससे मायावती बौखला गई हैं। इसी से बौखलाई मायावती ने गत दिनों लखनऊ में प्रेस कांफे्रस बुला कर जबर्दस्त हमला बोल कर अपने इरादे साफ कर दिये कि वह पीछे हटने वाली नहीं हैं। माया ने बीजेपी और उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पर निशाना साधते हुए कहा कि भाजपा में कई आपराधिक तत्व, बदमाश और माफिया है। उनका कहना था ”भाजपा में इतने कुख्यात गुंडे हैं कि उनके नाम गिनाने लग जाऊं तो .. शुरुआत गुजरात से होती है। अमित शाह जो दावे कर रहे हैं, आपको पता है उनका क्या इतिहास रहा है?” उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में भाजपा में आपराधिक तत्व, गुंडे, बदमाश और माफिया हैं।
दरअसल शाह ने झांसी में परिवर्तन यात्रा के दूसरे चरण की शुरुआत करते हुए सपा और बसपा दोनों ही पार्टियों में गुंडे, माफिया और अपराधी होने की बात कही थी। उन्होंने हाल ही में सपा में विलय करने वाले कौमी एकता दल के मुख्तार अंसारी, अफजल अंसारी, माफिया अतीक अहमद और आजम खां का नाम लिया तो बसपा में नसीमुद्दीन सिद्दीकी का नाम लिया था। शाह ने यह भी दावा किया था कि भाजपा में एक भी गुंडा नहीं है और यह गुंडों की पार्टी नहीं है।
मायावती ने अमित शाह के इसी बयान पर पलटवार किया था। उन्होंने कहा कि भाजपा केन्द्र में अपनी सरकार की विफलताओं को छिपाने तथा लोकसभा के चुनावी वायदे को पूरा नहीं कर पाने की नाकामी पर परदा डालने के लिए परिवर्तन यात्राओं की ‘ड्रामेबाजी’ कर रही है। शाह पर हमला जारी रखते हुए मायावती ने कहा कि अत्यंत पिछड़े क्षेत्र बुंदेलखंड और पूर्वांचल तथा उत्तर प्रदेश के गरीब असहाय लोगों को मारुति कार नहीं बल्कि रोजी रोटी के अवसर एवं स्थानीय स्तर पर रोजगार चाहिए। पानी, बिजली, और स्वास्थ्य सेवाएं चाहिए।मायावती ने कहा कि भाजपा कहती है कि बसपा के शासन में उत्तर प्रदेश की जनता का विकास नहीं हुआ. यह बात पूर्णतया गलत और तथ्यहीन है। सच्चाई यह है कि बसपा ने प्रदेश में केन्द्र और भाजपा शासित राज्यों की तरह पूंजीपतियों और धन्नासेठों के विकास का जनविरोधी कार्य नहीं किया। हमने सर्वसमाज यानी गरीब, दलित, पिछड़ों, मुस्लिम एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों, मजदूर, किसानों तथा छोटे व्यापारियों का विकास किया है. इससे बसपा की ‘सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय’ की अलग विशिष्ट पहचान बनी है।
अखिलेश राज में क्राइम का ग्राफ
समाजवादी पार्टी के शासन काल में उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था चरमरा गई है। पिछले 4 सालों में अखिलेश सरकार में यूपी रेप, मर्डर, दंगे, किडनैपिंग और दहेज हत्या को लेकर इंडिया में नंबर बन बन गया। ऐसा इतिहास में पहली बार हुआ है कि 5 अलग-अलग क्राइम में यूपी इंडिया में टॉप पर रहा हो। बता दें, इससे पहले सबसे ज्यादा मायावती सरकार में प्रदेश 3 मामलों में इंडिया में नंबर एक पर था। ऐसा तब है जब यूपी पुलिस आए दिन कई अपराधों के मामलों में रिपोर्ट तक दर्ज नहीं करती है। खुद डीजीपी ने भी ये माना है। ये सब उस यूपी में हो रहा है जिसके लिए कभी अमिताभ बच्चन और सपा सरकार ने ‘यूपी में है दम क्योंकि जुर्म यहां है कम’ का नारा दिया था। देश में क्राइम का रिकॉर्ड रखने वाली सरकारी संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (छब्त्ठ) के मुताबिक, पिछले 4 साल में यूपी में 93 लाख से ज्यादा क्राइम की घटनाएं हुईं हैं। इनमें से 71: क्राइम सपा के विधायक, नेताओं या अखिलेश सरकार में अब तक बने मंत्रियों के जिलों में हुआ है। पिछले एक साल में सबसे ज्यादा 2.78 लाख अपराध की घटनाएं लखनऊ में हुईं हैं। बता दें, यहां 9 में से 7 विधायक सपा के हैं।
इनमें से 3 राज्य सरकार में मंत्री भी हैं। पिछली बसपा सरकार में 22347 दंगे हुए थे तो अखिलेश सरकार में ये आंकड़ा बढक़र 25007 हो गया। पिछले 1 साल में सबसे ज्यादा दंगे क्रमशरू आगरा, गोरखपुर और आजमगढ़ में हुए हैं। आजमगढ़ को छोडक़र (10 में से 9 विधायक सपा के) बाकी जिलों में सपा से ज्यादा विधायक बसपा या भाजपा के हैं। मायावती सरकार की तुलना में अखिलेश सरकार में अब तक क्राइम में 16: इजाफा हुआ है। जहां बसपा के टाइम पर हर दिन यूपी में एवरेज 5783 क्राइम की घटनाएं हो रही थीं, वहीं मौजूदा सरकार में ये आंकड़ा बढक़र 6433 पहुंच गया है। पिछले 4 महीनों में (15 मार्च से 18 जुलाई के बीच) यूपी में 1012 रेप, 4520 महिला उत्पीडऩ, 1386 लूट और 86 डकैती की घटनाएं हुईं हैं। यानी हर दिन 8 रेप, 38 महिला उत्पीडऩ और 12 लूट।