बृजेन्द्र सिंह वत्स
भारत की अर्थव्यवस्था के लिए दिनांक १८ मई २०२३ को दो समाचार प्राप्त हुए। एक के अनुसार भारत का रक्षा उत्पादन एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया, दूसरे के अनुसार भारत में प्रचलित दो हजार के नोट को १ अक्टूबर से बंद कर दिया गया।
भारत का रक्षा उत्पादन एक लाख करोड़ के पार जाना भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह भी सूचना है कि भारत हम रक्षा उपकरणों का ८५ देशों को निर्यात कर रहे हैं। यह उपलब्धि उस समय और भी अधिक महत्वपूर्ण हो जाती है जब हम यूपीए सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटोनी के उस वक्तव्य को ध्यान में रखते हुए चिंतन करते हैं जिसके अनुसार उन्होंने कहा था कि भारत के पास सैन्य बलों हेतु गोली खरीदने के लिए भी धन नहीं है। ऐसी स्थिति में २०१४ के पश्चात यदि भारत का रक्षा उत्पादन एक लाख करोड़ के पार पहुंच गया है तो यह निश्चित है कि २०१३ तक की सरकार के पास राजनीतिक इच्छा शक्ति और दूरदृष्टि का नितांत अभाव था। स्पष्ट है कि एक लाख करोड़ के पार पहुंचाने के लिए पहले आर्थिक संसाधनों की आवश्यकता रही होगी। जब २०१३ में देश के पास गोली क्रय करने के लिए भी संसाधन नहीं थे तब अचानक ही रक्षा क्षेत्र में उत्पादन करने के लिए उद्योग लगाने हेतु कहां से प्रकट हो गए? निश्चित सी बात है कि संसाधन तो थे लेकिन उनका प्रयोग करने की दृष्टि और इच्छाशक्ति तत्कालीन शासन में नहीं थी। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि इस परियोजना के इतनी दूर तक पहुंचने के रास्ते में न जाने कितना रोजगार सृजन होकर भारत के युवा को रोजगार के नए अवसर प्राप्त हुए होगें तथा उन परिवारों का भविष्य भी सुरक्षित हुआ होगा। रक्षा उत्पादन में भारत की यह एक बहुत बड़ी छलांग है। अब तक हम रक्षा उपकरणों के लिए विदेशों पर निर्भर रहते थे तथा एक भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा को इस पर व्यय करते थे। रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने से जहां एक ओर विदेशी मुद्रा का संरक्षण हो रहा है वही दूसरी ओर निर्यात करने के फल स्वरूप विदेशी मुद्रा प्राप्त भी हो रही है जिससे हमारा मुद्रा भंडार में पर्याप्त मात्रा में वृद्धि हो रही है जो अन्ततोगत्वा भारत की समृद्धि में काम आने वाला है। भारत ने यह एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है लेकिन आश्चर्यजनक है कि भारत की राजनीति में इस पर कोई चर्चा नहीं हो रही है।
दूसरा समाचार है जिसने भारत की राजनीति को आंदोलित कर दिया है, वह है कि भारतीय केंद्रीय बैंक द्वारा दो हजार के नोट को बंद करने का निर्णय। यह निर्णय कोई अकस्मात नहीं हुआ था यह तो लगभग पूर्व नियोजित था। केंद्रीय बैंक की एक नीति के अनुसार प्रत्येक नोट के प्रचलन की अवधि निर्धारित होती है तथा वर्ष १८-१९के उपरांत भारत के केंद्रीय बैंक ने इस नोट को छापना बंद कर दिया था ।अब प्रश्न इस बात का है कि यदि इस नोट को बंद करना ही था तो इसे आरंभ ही क्यों किया गया था? प्रश्न तर्कसंगत है । विमुद्रीकरण के समय जब ५०० और १००० के नोट को चलन हेतु प्रतिबंधित किया गया था तब यह तर्क दिया गया था कि यह नोट भ्रष्टाचार को बढ़ावा दे रहा है जिसके कारण देश में काले धन का प्रवाह बढ़ गया है।इसके अतिरिक्त शत्रु देश पाकिस्तान द्वारा नकली मुद्रा प्रचलन में लाकर आतंकवादी शक्तियों को भी इस बड़े नोट के माध्यम से पुष्पित पल्लवित किया जा रहा है। अब दो हजार के नोट को चलन में लाने से तो बताई गई समस्या और शीघ्रता से तथा अल्प समय में अत्यंत भयाक्रांत रूप से बढ़ने वाली थी, तब भारत सरकार ने यह दुविधा पूर्ण निर्णय आखिर क्यों लिया था? स्पष्ट है कि यदि विमुद्रीकरण के समय केवल ५०० का नोट ही प्रचलन में होता तब बाजार में मुद्रा के प्रवाह के लिए पर्याप्त समय लगना सुनिश्चित था और इससे बाजार और आर्थिक स्थायित्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ना निश्चित था । संभवत: इसीलिए सरकार ने दो हजार के नोट को निर्गत किया था ।इस निर्णय से नकदी की समस्या कुछ ही महीनों में हल हो गई लेकिन जो दुविधा एक हजार का नोट उत्पन्न कर रहा था दो हजार का उससे दुगनी मात्रा में उत्पन्न करने वाला था और सरकार इससे भली-भांति परिचित थी।
दो हजार के नोट , यद्यपि भारत के केंद्रीय बैंक ने अपनी मौद्रिक नीति के अंतर्गत वापस लिया है लेकिन एक विघ्न संतोषी नेता केजरीवाल जी ने इसे प्रधानमंत्री के साथ जोड़ दिया। उनका कहना है कि एक अनपढ़ प्रधानमंत्री होने के कारण दो हजार का नोट बंद किया गया लेकिन वे अपने वक्तव्य में कहीं भी यह नहीं बता पाए कि दो हजार का नोट प्रचलन में क्यों होना चाहिए और इससे भारत की अर्थव्यवस्था को क्या लाभ होगा? अब यह भी सत्य है कि यह नोट आरंभ भी इन्हीं प्रधानमंत्री द्वारा किया गया था। प्रश्न यह है कि क्या केजरीवाल आरंभ करने वाले निर्णय से सहमत हैं यदि हां तो क्या प्रधानमंत्री उस समय अनपढ़ नहीं थे? केजरीवाल के अनुसार भारत के प्रधानमंत्री अनपढ़ हैं लेकिन भारत को ऐसा पढ़ा लिखा प्रधानमंत्री भी नहीं चाहिए जो सरकार में कोई दायित्व ही ग्रहण नहीं करता हो और अपनी पढ़ाई लिखाई के बल पर एक बड़ा शराब घोटाला और शीश महल घोटाला कर लेता हो। भारत को एक ऐसा प्रधानमंत्री ही चाहिए जो व्यवहारिक ज्ञान रखता हो। देश कैसे प्रगति कर सकता है यह दृष्टि और नीति को लागू करने की इच्छा शक्ति उसमें हो। प्रधानमंत्री को हिरोशिमा में जी सेवन ग्रुप में, सदस्य न होते हुए भी मेहमान के रूप में आमंत्रित किया गया है। यहां तक तो ठीक था लेकिन जी सेवन के पढ़े-लिखे जो बाइडन और ऋषि सुनक जैसे शासनाध्यक्ष उनके साथ गले मिलने को आतुर रहते हों, इससे भारत की महत्ता अंतर्राष्ट्रीय पटल पर द्विगुणित हो गई है और इस सेवक का यह मत है कि ऐसे ” अनपढ़ ” प्रधानमंत्री को पर्याप्त समय तक भारत का नेतृत्व करना चाहिए । इसके अतिरिक्त जी सेवन की हिरोशिमा घोषणा में प्रधानमंत्री मोदी के मन्तव्य को भी सम्मिलित किया गया है और यह भारत के लिए गर्व की बात है। भारत के “अनपढ़ ” प्रधानमंत्री की इस उपलब्धि पर केजरीवाल के क्या विचार हैं?
८नवंबर २०१६ को भारत में विमुद्रीकरण हुआ था तथा वित्तीय वर्ष २०१६-१७ के अंतिम दिन अर्थात ३१. ३. १७ को लगभग ६ लाख करोड़ रुपए के गुलाबी नोट चलन में थे जो १८-१९ तक आते आते लगभग तीन लाख करोड़ की संख्या तक ही चलन में रह गए अर्थात चलन के एक-दो साल के भीतर ही लगभग आधे लोग चलन से बाहर हो चुके थे।२०१९ के उपरांत सामान्यत: गुलाबी नोट बाजार की रौनक नहीं के बराबर ही रहा। वह भ्रष्टाचारियों और काला बाजारियों की तिजोरी की रौनक बन चुका था। यह आधार उस समय चीख- चीख कर बोलने लगा जब पिछले दिनों पर्वतन निदेशालय और केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा मारे गए छापों में नेताओं और व्यापारियों के घर से इन गुलाबी नोटों का पाया जाना था। इन छापों में लगभग ९०% की संख्या में गुलाबी नोटों के पर्वत ही प्राप्त हुए । इसके अतिरिक्त एक बार फिर से ऐसी सूचनाएं मिलने लगी थीं कि पाकिस्तान द्वारा भारत में नकली मुद्रा का प्रचलन किए जाने का प्रयास किया जा रहा है।दो हज़ार के नोट से यह सुगमता से हो सकता था।
भारत डिजिटल मुद्रा की ओर तेजी से बढ़ रहा है। अब ठेलों पर सब्जी और फल बेचने वाले भी गूगल पे, यूपीआई, पेटीएम जैसे डिजिटल माध्यमों से भुगतान प्राप्त करने लगे हैं। डिजिटल करेंसी के प्रवाह से जहां एक और मुद्रा की छपाई और उस पर होने वाले व्यय में कमी आएगी वहीं दूसरी ओर समस्त लेन देन पारदर्शी रहेगा जिससे कालाबाजारी और कर चोरी पर अंकुश भी लगेगा। मेरे विचार में ५०० के नोट को भी प्रचलन से बाहर कर देना चाहिए। यदि किसी को ५०० अथवा इससे ऊपर का भुगतान करना है तो वह डिजिटल माध्यम से कर सकता है। २०० तक के नोट की उपलब्धि रहने पर भ्रष्टाचार पर भी अंकुश लगेगा। सीधी बात है यदि किसी को एक लाख का उत्कोच स्वीकार करना हो तो देने वाला बोरी में भरकर ही नोट देगा फल स्वरूप वह सब की दृष्टि में आएगा।
इस नोट बंदी से एक पारदर्शिता का आरंभ होगा। समस्या उन लोगों की है जो इस नोट के माध्यम से काला धन अपनी तिजोरियों में भर रहे थे। यह सही है कि केंद्रीय बैंक ने नोट को बदलने की सुविधा दी है लेकिन इस लेन देन में कुछ प्रतिबंध भी हैं। पिछले नोटबंदी में अधिकांशत: देखा गया कि काले धन वालों ने अपने कर्मचारियों को लाइन में लगवा कर अपने काले धन को सफेद कर लिया था लेकिन इस बार नोट बदलने वाले को अपनी केवाईसी देनी होगी अर्थात उसकी पहचान और नोटों की संख्या अधिकारियों के रडार पर होगी। दो हजार के नोट बंद होने के समाचार के पश्चात सोने के भाव अचानक ही आसमान छूने लगे। स्पष्ट है कि गुलाबी नोटों के स्वामी अपनी इस संपदा को सोने में नियोजित करना श्रेयस्कर कर मान रहे हैं। देखना रुचिकर होगा कि सोना बेचने वाले और सोना खरीदने वाले इस लेनदेन को किस प्रकार वैधता देंगे? सामान्य नागरिक को इस नोट बंदी से कोई समस्या नहीं होने वाली है। सामान्य नागरिक के पास गुलाबी नोट होता ही नहीं है। वह तो ५०० और अधिकतम २०० के नोट से काम चला लेता है, इसके अतिरिक्त अब वह डिजिटल भुगतान करने में विश्वास करने लगा है। कुल मिलाकर दोनों ही समाचार भारत की आर्थिक समृद्धि के लिए शुभ संकेत हैं।