वर्तमान भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का चुनाव चिन्ह धार्मिक है?

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हिमाचल और कर्नाटक विधानसभा में जीत के बाद छुई मुई – सी कांग्रेस पार्टी का फिर से बोलबाला होने की बात गाजे बाजे के साथ उठाई जा रही है। यह कांग्रेस पार्टी 28 दिसंबर 1885 को ए. ओ. हयुम, मौलाना आजाद, मोहन दास गांधी, जवाहरलाल नेहरू, लालबहादुर शास्त्री,मोरारजी देसाई और देवराज अर्स आदि के नेतृत्व वाली में लम्बे समय तक शासन करने वाली “कांग्रेस पार्टी” से पूर्णतः भिन्न है। हाथ के पंजे के साथ चुनाव लडने वाली ‘कांग्रेस’ इंदिरा गांधी, नरसिंह राव और बूटा सिंह द्वारा गठित की गई कांग्रेस (आई ) है , जिसने पहली बार 1980 में “हाथ के पंजे” चुनाव चिन्ह पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था।
देश में अधिक समय तक शासन करने वाली कांग्रेस (अंग्रेजी संज्ञा) के संस्थापक एलन आक्टोवियन ह्मयूम ने 28 दिसंबर 1885 को अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद भी ‘सतत, जब तक सूरज चांद रहेगा, भारत में अंग्रेजों का राज रहेगा’ के पृष्ठ पोषण की विचारधारा को क़ायम रखने की उद्देश्य पूर्ति के लिए बनाई थी। ए. ओ. ह्यूम वही व्यक्ति थे जिन्होंने बंगाल प्रांत में 20 वर्ष तक आईसीएस अधिकारी के रूप में काम किया था और आज के उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में 1857 के 131 क्रांतिकारियों पर 7 फरवरी 1858 को गोली चला कर मौत के घाट उतार दिया था!!

   देश की आजादी तक  'कांग्रेस' (अंग्रेजी संज्ञा) अर्थात वह महासभा जिसमें भिन्न-भिन्न स्थानों के प्रति निधि एकत्र होकर सार्वजनिक विषयों पर विचार-विमर्श करते हैं,का गठन किया था। उस समय इसका न तो कोई चिन्ह् था और न ही झंडा। 1931 में कांग्रेस ने पहली बार अपना झंडा द्वितीय विश्व युद्ध में 'मुक्त भारत की अंतः कालीन सरकार द्वारा' तैयार किया गया था। यह झंड़ा आज के तिरंगे की भांति ही था ,पर बीच में 'चरखा' अंकित हुआ करता था और इसका उपयोग पहली बार गांधी जी ने नमक कानून तोड़ो आंदोलन  के समय किया था।
  170 साल पुरानी पार्टी का दावा करने वाली कांग्रेस के दो बार  अध्यक्ष रहे मौलाना आज़ाद का जन्म 11 नवंबर 1888 को उस्मानी साम्राज्य मक्का में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद खैरूद्दीन भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के समय 1857 में कोलकाता छोड़कर मक्का चले गए थे और जब मौलाना आजाद 11 साल के थे तब मोतीलाल नेहरु के आग्रह पर पुनः कोलकाता लौट आए थे। मौलाना आजाद ने खिलाफत आंदोलन के नेताओं के साथ मिलकर जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना  1920 की थी। 
     कांग्रेस ने पहली बार 1951-52 में जवाहरलाल नेहरू की अगुवाई में लोकसभा का चुनाव  "दो बैलों की जोड़ी" चिन्ह  पर लड़ा था।  बैल जोड़ी चुनाव चिन्ह रखने के पीछे कांग्रेस  की सोच थी कि इस  चुनाव चिन्ह के माध्यम से किसानों और ग्रामीण जनता को रिझाया जा सकें और इसमें उस समिति कांग्रेस कामयाबी रही!!

नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने और अचानक ताशकंद में उनकी रहस्यमय मृत्यु के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनी। उस समय कांग्रेस का नियंत्रण कामराज के नेतृत्व में एक ‘सिंडीकेट’ के हाथों में था।
1967 के आम चुनाव में कांग्रेस को पहली बार जनसंघ और अन्य दलों से चुनौती मिली। लोकसभा की 520 सीटों में से कांग्रेस को 283 सीटें मिली। इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री तो बनी रहीं, लेकिन अंदरुनी कलाह के कारण 1969 में कांग्रेस टूट गई। मूल कांग्रेस कामराज व मोरारजी देसाई के हाथों में थी और इंदिरा गांधी ने नयी कांग्रेस (आर) का गठन कर लिया। कांग्रेस (ओरिजिनल) और कांग्रेस (आर) दोनों ने :बैल जोड़ी चुनाव चिन्ह पर दावा किया । चुनाव आयोग ने बैल जोड़ी चुनाव चिन्ह को फ्रिज कर दिया और इंदिरा गांधी गुट को बछड़े को दूध पिलाती हुई गाय “गाय बछड़ा” चुनाव चिन्ह आवंटित किया । 1971 का आम चुनाव कांग्रेस (आर) ने ‘गाय बछड़ा’ चुनाव चिन्ह पर लड़ा और 352 सीटें हासिल की। लेकिन इंदिरा गांधी से चुनाव हार उम्मीदवार राजनारायण की याचिका पर ** 12 जून, 1975 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी का चुनाव निरस्त कर उन पर छह साल तक चुनाव न लड़ने का प्रतिबंध लगा दिया और उनके मुकाबले हारे को चुनाव में विजयी घोषित कर दिया था। इस महीने से बौखला कर इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल घोषित कर दिया और जनता के सारे अधिकार छीन लिए गए। देश में आपातकाल लगाने और परिवार नियोजन का दुरपयोग के कारण 1977 में इंदिरा गांधी की कांग्रेस (आर)की बुरी तरह से हार गई और ब्रह्मानंद रेड्डी तथा देवराज अर्स ने इंदिरा गांधी को अलग कर दिया और एक बार फिर कांग्रेस ‘अर्स: और ‘आई’ के रूप में दो भागों में बट गई। चुंकि 1977 के चुनाव में ‘गाय बछड़ा’ चुनाव चिन्ह के साथ इन्दिरा गांधी संपूर्ण भारत में बदनाम हो चुकी थी। इंदिरा गांधी इस चुनाव चिन्ह से पीछा छुड़ाना चाहती थी और 1978 में कांग्रेस के दो दोनों गुट का झगड़ा इस चुनाव चिन्ह से पीछा छुड़ाने में राम बाण साबित हुआ और यह चुनाव चिन्ह फ्रिज हो गया।
1978 का चुनाव इंदिरा गांधी ने “हाथ का पंजा” के साथ लड़ा और पुनः सत्ता में आई!!
‘हाथ का पंजा’ चुनाव चिन्ह कांग्रेस (आई ) से पहले ‘भारतीय फारवर्ड ब्लाक रुईकर ग्रुप’ के पास था। इस चुनाव चिन्ह का कई वर्षों से उपयोग नहीं होने के कारण 1980 के आम चुनाव के समय चुनाव आयोग ने इंदिरा गांधी गुट के समक्ष विकल्प के रूप में रखा और नरसिम्हा राव व बूटा सिंह ने बिल्ली के भाग से टुटे छींके से गिरे “हाथ के पंजे” को हाथों हाथ लपक लिया!!
‘हाथ का पंजा’ फारवर्ड ब्लाक ने बहुत ही सोच- समझ, गहन शोध व अध्ययन के बाद अपना चुनाव चिन्ह बनाया था। हाथ के पंजे के पीछे की पृष्ठभूमि की समझ इंदिरा गांधी को पहले से थी और उन्होंने अपने पिता जवाहरलाल नेहरू से अन्य बातों के साथ ही यह भी सिखा था कि ‘भारत में धार्मिक सांस्कृतिक एवं सामाजिक विविधता के चलते सभी जाति और धर्म के लोग कभी भी एक साथ नहीं आएंगे।” यही सोच प्रथम कांग्रेस अध्यक्ष ह्यूम और बाद में अंग्रेज परस्त अध्यक्षों के साथ साथ सोनिया गांधी ने भी ‘फूट डालो और राज करो’ की नीति का अनुसरण जारी रखा। फूट डालो और राज करो की नीति और धार्मिक पृष्ठभूमि का ‘हाथ का पंजा’ नेहरू – गांधी परिवार के लिए दुधारू पशु की तरह लाभदायक सिद्ध हो रहा है!!
‘हाथ के पंजे’ का धार्मिक संबंध यह है कि यह इस्लाम समुदाय का धार्मिक प्रतीक है। जिस पर उर्दू में “अब्बास अलेह सलाम” लिखा है। जिसका अर्थ होता है। अब्बास जो पैग़म्बर मोहम्मद के दामाद हज़रत अली के शुरवीर पुत्र थे और जिनका करबला के युद्ध में वध हो गया था, को सलाम।
हाथ के पंजे का सीधा संबंध इस्लाम के पांच मूल स्तंभ : शहादा, नमाज़, रोज़ा, जकात और हज से है। शायद यही कारण है कि आजादी के बाद से प्रत्येक चुनाव चाहे वह लोकसभा का हो या राज्यों की विधानसभा सभा का हो या स्थानीय निकायों का, इस्लाम धर्म के मानने वाले अधिकांश मतदाता कांग्रेस के पक्ष में अपना मतदान धार्मिक प्रतीक से प्रभावित होकर मतदान करते आए हैं!!
एक तरह से लेफ्ट राजनीतिक दल जो प्रायः भारत को एकता के सुत्र में बंधे देखना-सुनना नहीं चाहते हैं। कांग्रेस के धार्मिक पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखने वाले चुनाव चिन्ह “हाथ के पंजे” के माध्यम से अपनी मंशा भी पूरी कर रहे हैं और गाहे-बगाहे भारत में इस्लामिक धार्मिक एकता भी अपने सामाजिक सुरक्षा की गारंटी के साथ आंख मूंदकर झुक जाती है जो भारतीय संविधान की मूल मंशा के विपरीत है !!

बलराम पवार

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